Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. सभी दलों के तमाम प्रत्याशी चुनाव के कुरुक्षेत्र में कूद गए हैं और पूरे दम के साथ जोर लगा रहे हैं ताकि अपनी जीत सुनिश्चित कर लक्ष्य को हासिल कर सके. यूपी में बीजेपी मिशन 80 के इरादे से चुनाव में उतरी है. बीजेपी पूरे आत्मविश्वास के सहारे आगे बढ़ रही है कि पीएम मोदी सहारे जीत मिलेगी लेकिन यही ओवर कॉन्फिडेंस भारी पड़ सकता है.
बीजेपी ने कानपुर लोकसभा सीट से नए चेहरे रमेश अवस्थी पर दांव लगाया है. जिनका मुकाबला सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी आलोक मिश्रा से हैं. रमेश अवस्थी नया चेहरा होने की वजह से संगठन पर उनकी उतनी पकड़ नहीं है. वहीं उनके समर्थन में बीजेपी कार्यकर्ता उस तरह से ज़मीन पर उतर भी नहीं रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ सत्ता से बेदखल बैठी सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता जी-जान से मेहनत करते दिख रहे हैं.
बीजेपी को भारी पड़ सकता ओवर कॉन्फिडेंस
चुनाव ने सब कुछ जनता जनार्दन के हाथ में रहता था. लेकिन, इसमें कार्यकर्ताओं की मेहनत को दरकिनार नहीं किया जा सकता. चुनाव में जीत उम्मीद पार्टी के कार्यकर्ताओं की मेहनत से आंकी जाती है. कार्यकर्ता जितना एक्टिव होगा उस दल के प्रत्याशी की पकड़ जनता के बीच उतनी ही मजबूत होगी. जब तक कार्यकर्ता गली और मोहल्लों में अपनी पार्टी और प्रत्याशी के लिए घर-घर नहीं जाते तब तक वोटर्स के मन में प्रत्याशी की छाप नहीं बनती.
कानपुर में इस बार बीजेपी की अलग तस्वीर दिख रही है. बीजेपी द्वारा नए चेहरे पर दांव लगाने से इस सीट पर समीकरण कुछ और ही इशारा कर रहा है. यहां सिर्फ़ पार्टी के पदाधिकारी ही क्षेत्र में घूम रहे हैं और वो भी ज्यादातर फोटो खिंचवाते हुए. लेकिन, जमीनी कार्यकर्ता दिखाई नहीं दे रहा. ऐसे में स्थानीय जनता ख़ुद को बीजेपी के नए चेहरे रमेश अवस्थी से जोड़ नहीं पा रही है.
इसे मौसम का गर्म मिजाज कहे या बीजेपी कार्यकर्ताओं का ओवर कॉन्फिडेंस के वो घर से बाहर ज़्यादा निकल ही नहीं रहे हैं. वहीं सत्ता से बेदखल सपा और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को न तो गर्मी सता रही है और नहीं धूप..दोनों दलों के कार्यकर्ता प्रत्याशी तक ज्यादा से ज्यादा जनता के बीच जुड़ने की कवायद करते दिख रहे हैं. ऐसे में अगर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इसी तरह दूरी बनाए रखी तो यहां गठबंधन बाजी मार सकता है.
बीजेपी प्रत्याशी शायद इस खुमार से बाहर अभी नही निकल पा रहे हैं कि सिर्फ एक चेहरा ही जीत के लिए काफी नहीं होगा. पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच पहचान न होना और ओवर कॉन्फिडेंस पार्टी की रणनीति को खराब कर सकता है.