Lok Sabha Election 2024: अलीगढ़ की विधानसभा इगलास से चार बार के विधायक और अलीगढ़ से एक बार के सांसद रह चुके चौधरी बिजेंद्र सिंह पर समाजवादी पार्टी ने बड़ा दांव लगाया है. चौधरी बिजेंद्र सिंह कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं. चौधरी बिजेंद्र सिंह का नाता अलीगढ़ लोकसभा से काफी गहरा है.


जाट नेताओं में कांग्रेस को संजीवनी देने का काम चौधरी बिजेंद्र सिंह के द्वारा किया गया था. चौधरी बिजेन्द्र सिंह ने अलीगढ़ लोकसभा से लगातार तीन बार सांसद रहीं शीला गौतम को लोकसभा चुनाव 2004 में करारी शिकस्त देते हुये ये सीट कांग्रेस के खाते में पहुंचाई थी. यही कारण है अलीगढ़ की सियासत में सपा की लोकसभा जीत की सूखा को खत्म करने के लिए और 2024 की मुश्किलों को आसान करने के लिए पूर्व सांसद चौधरी बिजेंद्र सिंह पर दाव लगाते हुए जीत की उम्मीद की है.


चौधरी बिजेंद्र सिंह 26 वर्ष की उम्र में बन गए थे विधायक
चौधरी वीरेंद्र सिंह के पिता का नाम चौधरी गजेंद्र सिंह है. वह तहसील इगलास के बॉर्डर के गांव ढोंडा के रहने वाले हैं. चौधरी बिजेंद्र सिंह का जन्म किसान पुत्र के रूप में हुआ. चौधरी बिजेंद्र सिंह के पास दो विवाहित बेटियां हैं और उनकी पत्नी गृहणी होने के साथ ही राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमा चुकी है. कम उम्र में ही चौधरी बिजेंद्र सिंह का नाम राजनीति के धुरंधर के रूप में तब्दील हो गया था


मूल रूप से अलीगढ़ के इगलास विधानसभा के गोंडा ब्लाक के गांव टोंडा के रहने वाले चौधरी बिजेंद्र सिंह ने वर्ष 1977 में आगरा विश्वविद्यालय के डीएस डिग्री कॉलेज से स्नातक किया और 1980 में नागपुर विद्यापीठ से बीपीएड किया. इसी दौरान कांग्रेस से जुड़कर राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए और 1983 में यूथ कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजेंद्र मेहरा की कमेटी में इन्हें ब्लाक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. इसके बाद पार्टी में सक्रिय रहकर यह प्रदेश में महासचिव तक बने.


कैसा रहा राजनीतिक सफर..?
वर्ष 1989 में पहली बार पार्टी ने इन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश  की जाट बाहुल्य सीट अलीगढ़ के इगलास से टिकट दिया और पहली बार में ही चौ.राजेंद्र सिंह जैसे कद्दावर चेहरे को चुनाव हराकर विधायक बने. पार्टी ने इन्हें विधायक रहते ही पहली बार जाट नेता के रूप में वर्ष 1991 में सांसद का चुनाव लड़ाया, मगर शीला गौतम से चुनाव हार गए. इसके बाद वर्ष 1993 में लगातार दूसरी बार विधायक बने. वर्ष 1996 में विधायकी हार गए और 2002 में फिर से विधायकी जीत गए. विधायक रहते 2004 में पार्टी से टिकट मिलने पर सांसदी लड़े और शीला गौतम को हराकर पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे. इनके सांसद बनने पर इगलास सीट पर 2005 में उपचुनाव हुआ, जिसमें इनकी पत्नी राकेश कुमारी को टिकट मिला, मगर वह मुकुल उपाध्याय से चुनाव हार गईं. 


फिर 2007 में बिजेंद्र सिंह के राजनीति विरोधी मलखान सिंह की हत्या के बाद हुए चुनाव में इगलास से उनकी पत्नी राकेश कुमारी चुनाव लड़ीं, मगर लहर में यह चुनाव मलखान सिंह की पत्नी विमलेश चौधरी जीत गईं. फिर 2009 में बिजेंद्र सिंह पुन: सांसदी लड़े और 14 हजार वोटों से हारे और 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में उनके 63 हजार वोट आए. इसी बीच 2012 में अतरौली से भी चौ. बिजेंद्र सिंह विधानसभा लड़े, मगर 33 हजार वोट पाकर हार गए. 


वर्तमान में बिजेंद्र सिंह शहर के आईटीआई रोड किशोर नगर में रहते हैं. परिवार में पत्नी के अलावा दो विवाहित बेटियां हैं. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि पिछले 5 दशक से  चुनाव में इनके प्रयास और जाट चेहरा होने के नाते टिकट दिया है. जो कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए संजीवनी प्रदान करेगा मौजूदा समय में कांग्रेस का घटता जनाधार समाजवादी पार्टी पूरा करेगी ,गठबंधन के प्रत्याशी चौधरी बिजेंद्र सिंह को जनता दमदारी से चुनाव लड़ाती है तो निश्चित ही जीत मिल सकती है


कांग्रेस छोड़ थामा था सपा का दामन
कांग्रेस में खटास होने के चलते चौधरी बिजेंद्र सिंह ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया जिसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. समाजवादी पार्टी के द्वारा जीत की सूखा को खत्म करने के लिए चौधरी बिजेन्द्र सिंह पर 2024 के लोकसभा चुनाव में दांव लगाकर अलीगढ़ में अपनी डूबती नैया को पर लगाने का प्रयास किया जा रहा है.


जिससे सदियों से लोकसभा चुनाव में चलती चली आ रही हार को जीत के रूप में तब्दील किया जा सके. जाट वोटो में चौधरी बिजेंद्र सिंह का अपना अलग रुतबा है देखना होगा 2024 के चुनाव में चौधरी बिजेंद्र सिंह कोई करिश्मा कर पाएंगे या फिर नहीं यह तो आने वाला वक्त बताएगा.


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