Lok Sabha Election 2024: पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब तक इंडिया ब्लॉक में बड़ी दरार आ चुकी है.और अब अगला सवाल उत्तर प्रदेश को लेकर है.जहां के हालात भी लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. इस गठबंधन में यूपी की चार राजनीतिक पार्टियां थीं. पहली- कांग्रेस.दूसरी समाजवादी पार्टी.तीसरी- राष्ट्रीय लोकदल.और चौथी अपना दल(कमेरावादी). इसमें से जयंत चौधरी पहले ही किनारे हो गए.NDA के साथ जाने का ऐलान कर दिया. अपना दल(कमेरावादी) का रुख भी अखिलेश यादव को लेकर अब पहले जैसा नहीं रहा. दोनों के बीच राजनीतिक रिश्ता बचेगा या नहीं.इसपर सस्पेंस है और अब बचते हैं दो दल.समाजवादी पार्टी और कांग्रेस. इन दोनों पार्टियों के बीच भी स्थिति ऐसी है कि भविष्य को लेकर कोई पॉजिटिव मैसेज नहीं आ रहा.


अब सवाल है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच दूरी क्यों बढ़ रही है? क्या इसके पीछे कांग्रेस की ज्यादा सीटों वाली जिद है? या फिर अखिलेश यादव की मनमर्जी ?


राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा उत्तरप्रदेश में है.जब ये यात्रा बिहार में थी.तभी अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया था कि अमेठी और रायबरेली पहुंचने पर.वो इस यात्रा में शामिल होंगे. लेकिन जब यात्रा अमेठी पहुंची.तो अखिलेश यादव का चेहरा गायब था. अखिलेश यादव सामने तो आए.लेकिन कांग्रेस के सामने सीट बंटवारे का सवाल लेकर. उन्होंने सीधा कहा- जब तक सीट बंटवारा फाइनल नहीं होगा. रैली में वो शामिल नहीं होंगे.


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अखिलेश ने कहा था कि अभी बातचीत चल रही है, सूचियां उधर से आई इधर से भी गई, जिस समय सीटों का बंटवारा हो जाएगा समाजवादी पार्टी कांग्रेस की न्याय यात्रा में शामिल हो जाएगी.



सीट बंटवारा तो बिहार में भी फाइनल नहीं हुआ है. लेकिन तेजस्वी यादव ना सिर्फ राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हुए.बल्कि उनके सारथी भी बने.मंच भी साझा किया.एक सुर में 24 की लड़ाई की बात कही.फिर अखिलेश यादव ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं ?. बेशक अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश की सियासी लड़ाई में बड़े भाई की भूमिका में हैं.फिर भी वो कदम आगे क्यों नहीं बढ़ा पा रहे हैं ? आखिर वो कौन सी वजह है जो दोनों दलों के बीच दीवार बनकर खड़ी है ?


दीगर है कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 17 सीट देने के लिए तैयार हो गई है.लेकिन अभी भी कुछ सीटों पर पेच फंसा है. इसमें सबसे अहम सीट है- मुरादाबाद. जहां से सपा के एसटी हसन सांसद हैं. अब कांग्रेस चाहती है कि यहां से वो अपना प्रत्याशी उतारे. साल 2009 में ये सीट कांग्रेस के टिकट पर मोहम्मद अजहरूद्दीन ने जीती थी.तब से कांग्रेस लगातार यहां से हार रही है. 
 
मुरादाबाद को लेकर मामला यहां तक उलझ गया है कि अखिलेश यादव चाहकर भी इस सीट से प्रत्याशी नहीं उतार पा रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने आज 11 सीटों के लिए प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट जारी की.इस लिस्ट में भी मुरादाबाद सीट का जिक्र नहीं था. जबकि बाकी जिन सीटों पर सपा के सांसद हैं.वहां प्रत्याशी का ऐलान पहले ही फाइनल हो चुका है. कांग्रेस को उम्मीद है कि ये पेच भी जल्द सुलझ जाएगा. 


कांग्रेस की यूपी इकाई के अध्यक्ष अजय राय ने सोमवार को कहा था कि इंडिया गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ेगा. सीट बंटवारे पर जल्द ही सहमति बन जाएगी. गठबंधन मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा. 


इन सबके बीच समाजवादी पार्टी की तरफ से कांग्रेस को नया प्रस्ताव भेजा गया. इस प्रस्ताव में भी मुरादाबाद सीट का जिक्र नहीं था.यानि समाजवादी पार्टी मुरादाबाद सीट नहीं छोड़ना चाहती है. अब इसे दबाव की राजनीति कहिये.या कुछ और.लेकिन अखिलेश यादव कांग्रेस की सभी शर्तों पर झुकने को तैयार नहीं हैं. मुरादाबाद सीट को लेकर कैसी तनातनी है. 


मंगलवार को अखिलेश यादव मुरादाबाद के दौरे पर रहेंगे. यहां वो विधायक नवाब खान के पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होंगे. तो राहुल गांधी भी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिये मुरादाबाद में ताकत दिखाना चाहते हैं. 24 फरवरी को यूपी में यात्रा का दूसरा फेस मुरादाबाद से ही शुरू होगा. यानि सीट एक है.और इंडिया गठबंधन के दावेदार दो.


यह पहले भी देखा गया है कि एक सीट की वजह से अलायंस टूट जाते हैं. बयानों की वजह से दूरियां बढ़ने लगती हैं.तो क्या समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते का भी यही अंजाम होगा? दो लड़कों की जो जोड़ी यूपी में फिर से ताकत लगा रही है क्या वो चुनाव से पहले ही टूट जाएगी? हालात बताते हैं कि दोनों दल.मुरादाबाद के सियासी मोल-भाव को अंतिम वक्त तक ले जाना चाहते हैं. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कुछ और दिन यूपी में रहने वाली है. ऐसे में अगर अखिलेश रायबरेली भी नहीं पहुंचे.तो आगरा तक उनका इंतजार किया जाएगा. 
 
उत्तरप्रदेश के मामले में INDIA अलायंस में सीट शेयरिंग का सवाल अहम हो जाता है. अगर इस राज्य में भी बातचीत पटरी से उतरी, तो क्या होगा? अभी तक समाजवादी पार्टी कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली सीट छोड़ती आई है.ऐसा इस वजह से किया जाता था, क्योंकि राहुल गांधी और सोनिया गांधी यहां से चुनाव लड़ते थे लेकिन अब ये दोनों नेता यूपी से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. तो क्या समाजवादी पार्टी गठबंधन टूटने की स्थिति में यहां से भी प्रत्याशी उतारेगी?
 
सोमवार को राहुल गांधी भले ही अमेठी में थे.लेकिन कहीं भी उन्होंने अमेठी से चुनाव लड़ने का जिक्र नहीं किया. राहुल गांधी को पिछले चुनाव में हराने वाली स्मृति ईरानी भी आज अपने संसदीय क्षेत्र में थीं. उनका निशाना भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन पर था.