UP Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में है. वहीं कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय चौथी बार वाराणसी से ही लोकसभा चुनाव में ताल ठोक रहे हैं. वैसे अजय राय भारतीय जनता पार्टी से ही अपने सियासी सफर को शुरू करने वाल एक ऐसे राजनेता हैं जो वर्तमान समय में बीजेपी के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी को ही चुनावी मैदान में तीसरी बार टक्कर देते नजर आ रहे हैं.
इससे पहले अजय राय 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर वह वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. साल 2014 के चुनाव में उनको मात्र 75614 वोट मिला था, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 152548 वोट उन्हें मिले थे. इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उन्हें 5,22,116 वोट से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. इसके बाद 2022 यूपी विधानसभा में भी पिंडरा विधानसभा से उनकी हार हुई थी.
बीजेपी से ही राजनीतिक सफर शुरू करने वाले अजय राय
पूर्वांचल के सियासी सफर को बेहद नजदीक से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश शुक्ला ने एबीपी लाइव से बातचीत के दौरान बताया कि अजय राय ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की. इस दौरान वह संघ के भी सक्रिय कार्यकर्ता माने जाते थे. 90 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर बीजेपी के अन्य बड़े कार्यक्रमों में इनकी सहभागिता से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 2007 तक भारतीय जनता पार्टी के ही सिंबल पर यह तीन बार विधायक भी चुने गए. निश्चित ही 2009 तक पूर्वांचल सहित उत्तर प्रदेश में अजय राय भारतीय जनता पार्टी के चर्चित चेहरा हुआ करते थे.
बीजेपी से ही बागी होकर जब खोला मोर्चा
साल 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान अजय राय भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर समाजवादी पार्टी के सिंबल पर ही चुनावी मैदान में उतरे थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो वाराणसी से लोकसभा चुनाव में टिकट कटने पर अजय राय नाराज हो गए थे और उन्होंने साफ तौर पर वाराणसी से ही भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने की मांग की थी. लेकिन इस दौरान पार्टी ने सबसे वरिष्ठ नेता नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी को यहां से चुनावी मैदान में उतारा था. इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि अजय राय भाजपा वरिष्ठ नेता कलराज मिश्रा और राजनाथ सिंह के भी करीबी माने जाते थे.
बीजेपी के खिलाफ सख्त रहे हैं अजय राय के तेवर
हालांकि पार्टी से अलग होने के बाद अजय राय ने हमेशा से ही बीजेपी का खुलकर विरोध किया. वह अपने सख्त तेवर और अंदाज के साथ बीजेपी का विरोध करने में कभी पीछे नहीं हटे. बीते 1.5 दशक से वाराणसी भाजपा का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है. खासतौर पर 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी के यहां से सांसद बनने के बाद लगातार अगर किसी ने केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों का विरोध किया है उसमें सबसे पहला नाम अजय राय का ही रहा है.
लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी अजय राय कों भले ही करारी हार मिली हो लेकिन अजय राय ने बीजेपी के खिलाफ कभी भी अपने तेवर को नरम होने नहीं दिया. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी ने हार को भी अजय राय की छवि से दूर रखते हुए उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े सियासी सूबे में उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. वैसे 2024 लोकसभा चुनाव में देखना दिलचस्प होगा कि सभी पुराने सियासी समीकरण और आंकड़ों को पीछे छोड़ते हुए अजय राय बीजेपी को कितनी टक्कर दे पाते हैं.