Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में कांग्रेस को नहीं मिल रहे उम्मीदवार? इन सीटों पर फंस रहा पेंच!
Lok Sabha Election: कांग्रेस के दिग्गज चुनावी रणक्षेत्र में उतरने से पहले सरेंडर करते नजर आ रहे हैं. हार की आशंकाओं के बादल चेहरों पर दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है.
UP Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के लिए सत्ताधारी बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए गठबंधन चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है. कांग्रेस नेताओं के रुख को देखकर लग रहा है कि रणक्षेत्र में उतरने से पहले हार मान चुके हैं. अपनी ही सीट पर चुनाव नहीं लड़ना चाहते या मनचाही सीट गठबंधन की सहयोगी सपा के खाते में चले जाने से हताश दिख रहे हैं. दिग्गज चेहरों के इस तरह किनारा करने से कांग्रेस की दावेदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
अमेठी-रायबरेली
अमेठी-रायबरेली गांधी-नेहरू परिवार की परम्परागत सीट रही है. अब खुद इन सीटों से राहुल और प्रियंका गांधी लड़ने को बहुत इच्छुक नहीं हैं. परंपरागत अमेठी-रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ने के पीछे कई कारण हैं. अमेठी से मिली हार ने राहुल का मन और दिल तोड़ दिया. पांच साल में कुल चार बार उन्होंने अमेठी की यात्रा की. अमेठी में चलने वाले स्वयं सहायता समूह के पास दफ्तर और गाड़ी थी. चुनाव के समय राहुल की कोर टीम की तरह समूह की महिलाएं गांव-गांव में काम करती थीं. अब सब साल 2019 से बंद है.
राहुल का खुद का एक घर मुख्यालय गौरीगंज में है. साल 2019 से पहले जिले की राजनीति घर से चलती थी. राहुल की हार के बाद से घर बंद है. मुंशीगंज गेस्ट हाउस में 2019 के बाद से कर्मचारी रहने लगे हैं. सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने की बजाय खुद को राज्यसभा भेजे जाने का दबाव बनाया हुआ है.
रायबरेली की जनता को लिखे सोनिया गांधी के पत्र में प्रियंका राहुल को आशीर्वाद बनाये रखने तक का ज़िक्र नही था. भूयेमऊ सोनिया-राहुल-प्रियंका के घर से रायबरेली की राजनीति चलती रही है. घर को कई वर्षों से मालिकों के आने का इंतज़ार है.
हर पार्टी में टिकट बंटवारे का दौर चल रहा है. राहुल अभी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में जुटे हैं. दिल्ली में राजनैतिक गतिविधियां चरम पर हैं. सूत्रों का कहना है कि प्रियंका गांधी आज से पांच दिनों के लिए विदेश या स्वदेश वीराने में चली गई हैं.
यूपी और कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण सीटें अमेठी-रायबरेली पर पहली केंद्रीय चुनाव समिति में चर्चा तक नहीं हुई. यूपी पर चर्चा से अमेठी-रायबरेली पर फ़ैसला लेना पड़ता. इसलिये होल्ड कर दिया गया. गांधी परिवार की उदासीनता समझने के लिए सबसे बड़ा कारण है.
वाराणसी
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने बलिया से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. बलिया को प्रदेश में भूमिहार का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है. बलिया सीट गठबंधन के खाते में चली ग़ई. ऐसे में 2014 से लगातार पीएम मोदी के सामने हार रहे अजय राय बनारस सीट पर इस बार भी चुनाव लड़कर शहीद नहीं होना चाहते.
बाराबंकी
बाराबंकी से दलित नेता पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को कांग्रेस ने लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है. सूत्रों का कहना है कि कथित सेक्स सीडी प्रकरण में बाराबंकी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. इसलिए तनुज पुनिया सुनील बंसल के जरिए अब अमित शाह से मिलने की कोशिश में हैं. सूत्रों का कहना है कि हार की हैट्रिक से बचने के लिए तनुज पुनिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी से चुनाव लड़ने की जुगत में हैं.
फर्रुखाबाद
फर्रुखाबाद से पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद चुनाव की तैयारी में थे. सीट के गठबंधन में चले जाने पर सलमान खुर्शीद नाराज हो गए. कांग्रेस के दिग्गज मुस्लिम नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नाराजगी जाहिर की.
गोंडा
नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस में दूसरे बड़े अल्पसंख्यक नेता माने जाते हैं. उत्तर प्रदेश में कभी 18 विभाग चलाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी की इच्छा गोंडा सीट से लड़ने की थी. समझौते के तहत गोंडा सीट गठबंधन को मिल गई. अब कांग्रेस दूसरी सीट से चुनाव लड़ने का मौका देना चाहती है लेकिन नसीमुद्दीन सिद्दीकी तैयार नहीं हैं.
महाराजगंज
पिछले लोकसभा चुनाव में महाराजगंज सीट पर सुप्रिया श्रीनेत ज़मानत भी नहीं बचा पाईं थीं. गठबंधन में सुप्रिया श्रीनेत के लिए महाराजगंज सीट छोड़ दिया गया है, लेकिन सोशल मीडिया का काम और प्रवक्ता की भूमिका बताकर चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. फतेहपुर सीकरी से भी राजबब्बर चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं.
खीरी
खीरी के पूर्व सांसद रवि वर्मा को परंपरागत सीट की जगह सीतापुर से लड़ने के लिए कहा जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि फिलहाल रवि वर्मा सीतापुर के लिए राजी नहीं बताए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि खुद लड़ने के बजाय अपनी बेटी पूर्वी वर्मा को खीरी से चुनाव लड़वाना चाहते थे.
भदोही
बनारस के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा भदोही से चुनाव लड़ना चाहते थे. भदोही सीट भी गठबंधन में चली गई. मनपसंद सीट नहीं मिलने से उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. माना जा रहा है कि भदोही सीट से बीजेपी राजेश मिश्रा को चुनाव मैदान में उतार सकती है.
कहा जा रहा है कि कई पूर्व सांसद मनपसंद सीट नहीं मिलने से या तो चुनाव लड़ना नहीं चाहते या बीजेपी के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं. गाजियाबाद, मथुरा, बुलन्दशहर में कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार नहीं मिल रहा है. बड़े चेहरों के इस तरह किनारा करने से कांग्रेस की दावेदारी इन सीटों पर कमजोर पड़ती दिख सकती है. ऐसे में लड़ने से पहले पूरी कांग्रेस अपने सेनापति समेत सरेंडर के मूड में दिख रही है.