Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जातीय समीकरण को लेकर पार्टियों में हलचल तेज हो गई है. सभी दल अपने-अपने कोर वोटर्स के साथ ही दूसरे दलों के वोटर्स को भी लुभाने के लिए रणनीति बना रहे हैं. इसी बीच बसपा सुप्रीमो मायावती के अकेले चुनावी मैदान में उतरने के ऐलान से देश की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है. दलित मतदाताओं को बसपा का वोट बैंक माना जाता है. हर चुनाव में सभी पार्टियों की कोशिश इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की रहती है. यही वजह है इंडिया गठबंधन के कई नेता ये चाह रहे हैं कि मायावती विपक्ष के महागठबंधन में शामिल हो जाएं. 


आपको बताते हैं कि दलित वोट आखिर क्यों जरूरी है और पिछले कुछ चुनावों में दलित वोट का क्या असर रहा है. सीएसडीएस लोकनीति के आंकड़ों के अनुसार, यूपी में बीएसपी के जनाधार की बात करें तो पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली थी और कुल 19.77 प्रतिशत वोट मिला था. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की और 22.23 प्रतिशत वोट हासिल किया. 


पिछले चुनाव में बीएसपी का प्रदर्शन


इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने पिछली बार के मुकाबले शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 सीटों पर जीत का परचम लहराया था और पार्टी को 19.26 प्रतिशत वोट मिला था. वहीं 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिल सकी थी जबकि 12.88 प्रतिशत वोट हासिल किया था. 



दलित वोट कितना जरूरी है?


अब आते हैं उस सवाल पर कि आखिर दलित वोट कितना जरूरी है? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए पिछले चार लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालते हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 26 प्रतिशत, बीजेपी को 13 प्रतिशत, बीएसपी को 22 प्रतिशत और अन्य को 39 प्रतिशत दलित वोट मिला था. जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 27 प्रतिशत, बीजेपी को 12 प्रतिशत, बीएसपी को 20 प्रतिशत और अन्य को 41 प्रतिशत दलित वोट मिला था. दोनों ही बार देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार रही. 


इसके बाद 2014 के चुनाव में कांग्रेस को 19 प्रतिशत, बीजेपी को 24 प्रतिशत, बीएसपी को 14 प्रतिशत और अन्य को 43 प्रतिशत दलित वोट मिला था. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 प्रतिशत, बीजेपी को 34 प्रतिशत, बीएसपी को 11 प्रतिशत और अन्य को 35 प्रतिशत दलित वोट मिला था. 2014 और 2019 में देश में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार बनी. ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए दलित वोट कितना जरूरी है. 


मायावती ने किया ये ऐलान


मायावती ने सोमवार को कहा कि हमारी पार्टी लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ेगी. हम किसी गठबंधन में नहीं जाएंगे. गठबंधन से वोट बंट जाता है. हमारी पार्टी का सर्वोच्च नेतृत्व एक दलित के हाथ में है. गठबंधन करने पर हमारा वोट तो उन्हें मिल जाता है मगर उनका वोट खासकर सवर्ण वोट हमें नहीं मिलता है. साथ ही उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव की तुलना गिरगिट से की.  


बीजेपी और सपा ने क्या कहा?


बसपा सुप्रीमो के इस ऐलान पर बीजेपी नेता और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि उनके इस फैसले से बीजेपी पर कोई असर नहीं पड़ेगा. बीजेपी यूपी में सभी सीटों पर जीत हासिल करेगी. वहीं सपा प्रवक्ता राजपाल कश्यप ने कहा कि कौन सी पार्टी किस गठबंधन के साथ जाती है यह उसका अपना निर्णय है. जहां तक मायावती के बोलने का सवाल है, यह देखना होगा कि वो बोल रही हैं या उनसे बुलवाया जा रहा है. अखिलेश यादव संस्कारी नेता हैं.


ये भी पढ़ें- 


Lok Sabha Election 2024: मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान पर बोले बीजेपी नेता- 'इंडिया गठबंधन को होगा बड़ा नुकसान'