यूपी में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट? मायावती के इस प्लान से बढ़ीं सपा की धड़कनें, 11 सीटों पर पड़ सकता है असर
UP Lok Sabha Election 2024: यूपी में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तेज हो गई हैं. माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो इंडिया गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं है.
UP Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच इंडिया गठबंधन में इन दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती को शामिल करने के लिए कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं. कांग्रेस बसपा सुप्रीमो से बात कर रही हैं लेकिन, इस बीच प्रदेश में तीसरे मोर्चे को सुगबुगाहट तेज हो गई हैं. माना जा रहा है कि मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं हैं, वो तीसरे मोर्चे की तैयारी कर रही हैं.
बीजेपी को हराने के लिए यूपी में इंडिया गठबंधन ख़ुद को मज़बूत बनाने में जुटा है. अगर बसपा सुप्रीमो इस गठबंधन में शामिल होती है तो यूपी में गठबंधन को फ़ायदा हो सकता है, इसलिए इन दिनों अखिलेश यादव के सुर भी बसपा को लेकर नरम दिखाई दे रहे हैं, लेकिन मायावती इंडिया गठबंधन को झटका दे सकती हैं. ख़बरों के मुताबिक बसपा सुप्रीमो इन दिनों असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी के साथ संपर्क में हैं और तीसरे मोर्चे पर काम कर रही है.
तीसरे मोर्चे की तैयारी में बसपा
मायावती अगर अलग से मैदान में उतरती है तो इससे इंडिया गठबंधन के लिए मुसीबतें बढ़ सकती हैं. बसपा और एआईएमआईएम का गठबंधन होता है तो ये तीसरा मोर्चा पश्चिमी और पूर्वी यूपी की कई सीटों पर इंडिया गठबंधन का खेल बिगाड़ सकता है. यूपी में क़रीब ग्यारह ऐसी सीटें हैं जहां पर दलित और मुस्लिम वोटर अगर एकसाथ आते हैं तो निर्णायक भूमिका में रह सकते हैं.
इन सीटों पर पड़ सकता है असर
मायावती और ओवैसी की पार्टी अगर एकसाथ यूपी में चुनाव लड़ते हैं तो इससे कई सीटों पर असर पड़ सकता हैं. इनमें सहारनपुर की सीट शामिल हैं जहां मुस्लिम वोटर बीस फ़ीसद हैं. 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के दौरान बसपा ने यहां से जीत दर्ज की थी. इसके अलावा बिजनौर, मेरठ, बुलंदशहर और कैराना में भी दलित और मुस्लिम गठजोड़ इंडिया गठबंधन को नुक़सान पहुँचा सकता है.
इनके अलावा मुरादाबाद सीट भी 2019 में सपा ने जीती थी, लेकिन बसपा अलग रहकर इस सीट पर भी टक्कर दे सकती है. अलीगढ़ और संभल सीट पर भी मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका में हैं.
पूर्वांचल में घोसी, ग़ाज़ीपुर, आज़मगढ़ ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर बड़ी तादाद में हैं अगर दलित वोटर इसके साथ जुड़ जाएं तो मायावती यहां बड़ा खेल कर सकती हैं. अगर वो खुद भी न जीत पाएं तो भी वो 'इंडिया' गठबंधन की हार की वजह बन सकती है. 15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन हैं. इस दिन वो जो संदेश देंगी वहीं उनका आख़िरी फैसला होगा. अगर उन्होंने इंडिया गठबंधन या अखिलेश यादव के लिए नरमी नहीं दिखाई तो माना जा रहा है कि वो 2024 में करारा जवाब देने के लिए उतरने वाली है.
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