Raebareli Lok Sabha Constituency: उत्तर प्रदेश की रायबरेली कहने के लिए एक लोकसभा सीट है लेकिन कांग्रेस के लिए उसके सिर का ताज. ये वो किला है.जो साल 2014 और साल 2019 की आंधी में भी नहीं हिला है.बीते चार लोकसभा चुनाव से सोनिया गांधी यहां से जीतते आ रही है. हर बार उन्‍हें यहां से 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं जो बताने के लिए काफी है.कि यहां जनता ना कांग्रेस के सिवाय सोचती है और ना किसी और की बात करती है. 


अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में अगर 3 चुनावों को छोड़ दिया जाए तो ये सीट कांग्रेस के पास ही रही है 72 साल के चुनावी इतिहास में  रायबरेली सीट 66 साल तक कांग्रेस के पास रही है  लेकिन अब इसी रायबरेली में घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है और आने वाले वक्त में इसका हाल भी अमेठी जैसा हो सकता है. ऐसे में कांग्रेस सोनिया गांधी के लिए दक्षिण में सेफ सीट तलाशने में जुट गई है. वहीं इस बात की चर्चा है कि सोनिया की जगह प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ सकती है, जो लगातार यहां आती रहीं है.


लेकिन बड़ा सवाल ये है क्या प्रियंका के लिए रायबरेली की राह आसान होगी क्योंकि चुनाव दर चुनाव यूपी में कांग्रेस का ग्राफ गिरता जा रहा है. साल 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी में 10 सीटें जीती थी.जो साल 2004 में घटकर 9 पर आ गई लेकिन साल 2009 में कर्जमाफी और मनरेगा के दम पर कांग्रेस ने यूपी में बड़ा कमबैक किया और यूपी की 21 लोकसभा सीटें जीती.


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इसके बाद कांग्रेस का जो डाउनफोल शुरू हुआ वो नंबर बताने के लिए काफी है. साल 2014 में कांग्रेस ने यूपी में अमेठी और रायबरेली की दो सीट जीती लेकिन साल 2019 में 1 ही सीट जीत पाई.  यानी कहने के लिए कांग्रेस के पास यही रायबरेली बचा है.लेकिन मुश्किल ये है कि इसी रायबरेली में बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. सभी 6 सीट बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने आपस में बांट लीं. जो ये बताने के लिए काफी है कि रायबरेली में कांग्रेस के लिए स्पेस खत्म हो रहा है. इसकी बड़ी वजह ये है कि रायबरेली में कांग्रेस के जो  मजूबत चेहरे थे,वो अब बीजेपी के साथ हैं.


यानी मुश्किलें कम नहीं हैं...
अदिति सिंह रायबरेली से ही बीजेपी की विधायक है जबकि दिनेश प्रताप सिंह साल 2019 में खुद सोनिया गांधी को चुनौती दे चुके हैं.जो मौजूदा समय में योगी सरकार में मंत्री है, यानी मुश्किल कम नहीं हैं.


वहीं एक धड़ा ऐसा है जो मानता है कि कांग्रेस रायबरेली समाजवादी पार्टी की मेहरबानी से जीतती रही है सपा ने कभी यहां उम्मीदवार ही नहीं उतारा और अगर कभी उतारा तो इतना कमजोर जिसकी चर्चा तक नहीं हुई.


ऐसे में कांग्रेस को डर है कि अगर उसका समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हुआ और अगर समाजवादी पार्टी ने अपनी पूरी ताकत से रायबरेली में चुनाव लड़ा तो उसकी मुश्किल बढ़ जाएगी. वैसे भी अखिलेश यादव के दिल में मध्य प्रदेश वाली खटास अभी बाकी है.


इनको मैदान में उतारेगी बीजेपी?
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के पास कांग्रेस मुक्त यूपी बनाने का सुनहरा मौका है. जिस तरह 2019 में बीजेपी ने अमेठी जीता उसी तरह बीजेपी कांग्रेस के इस आखिरी किले को भी ढहा देना चाहती है. जिसके लिए बीजेपी रायबरेली में अपनी विधायक अदिति सिंह को मैदान में उतार सकती है जो ना सिर्फ रायबरेली में काफी लोकप्रिय है बल्कि महिला कार्ड भी उनके नाम पर आसानी से चल सकता है. अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह का रायबरेली में बड़ा कद था.वो निर्दलीय चुनाव जीतते थे.


पिछले 31 साल से रायबरेली विधानसभा सीट पर अदिति सिंह और उनके परिवार का ही कब्जा  है.  ऐसे में कांग्रेस को रायबरेली बचाना है तो यूपी में कुछ बड़ा करना होगा क्योंकि यूपी में 80 लोकसभा सीट हैं. जानकार इसे दिल्ली में सरकार बनाने का सबसे बड़ा रास्ता मानते हैं. इसी रास्ते पर चलकर साल 2014 और साल 2019 में बीजेपी ने सरकार बनाई और अब बीजेपी इसी यूपी से दिल्ली में हैट्रिक लगाने का दंभ भर रही है लेकिन कांग्रेस के लिए मुश्किल ये है कि इसी यूपी में उसके हाथ सबसे तंग है. उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा है.


कांग्रेस को बार-बार साल 2009 का वो आंकड़ा दिखाई देता है जब उसे यूपी की 80 में से 21 सीटों पर जीत मिली थी.तब कांग्रेस का वोट प्रतिशत 18 फीसदी से ऊपर था लेकिन बीजेपी कहती है अब भविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा.


ताज बचाने के लिए कांग्रेस का प्लान
हालांकि कांग्रेस ने इस तंगी को दूर करने के लिए एक बड़ा प्लान बनाया है. कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल की यात्रा और विरोधी दलों के एकजुट होने के बाद उसे कामयाबी जरूर मिलेगी.


राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा 11 दिन बिताएगी. 20 जिलों से गुजरते हुए 1 हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करेगी. जो लखनऊ, बरेली, सीतापुर, लखीमपुर , शाहजहांपुर ,रामपुर, मुरादाबाद अलीगढ़, संभल और बुलंदशहर को कवर करेगी.


राहुल ने जब भारत जोड़ो यात्रा की थी तब  कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों की छवि में बदलाव हुआ था. कांग्रेस अगर कर्नाटक और तेलंगाना जीती है तो इसके पीछे वो भारत जोड़ो यात्रा को ही श्रेय देती है लेकिन जिस यूपी की सियासी जमीन पर राहुल गांधी के कदम पड़ने वाले हैं वो कांग्रेस के लिए 35 साल से बंजर पड़ी है. ऐसे में इस बंजर जमीन पर कांग्रेस तीन महीने के भीतर वोटों की खेती कर पाएगी, ये कहना मुश्किल है. वैसे भी ये यात्रा ऐसे वक्त में निकलेगी जब अयोध्या का संदेश पूरे उत्तरप्रदेश और पूरे देश में फैल रहा होगा. ऐसे में कांग्रेस को इस यात्रा का फायदा कितना मिलेगा और क्या कांग्रेस रायबरेली का किला बचा पाएगी यह वक्त बताएगा.