UP Lok Sabha Chunav 2024: देश की सबसे चर्चित हाई प्रोफाइल वीआईपी सीट पर नामांकन प्रक्रिया 7 मई से शुरू हो चुकी है जो 14 मई  तक चलेगी.  शनिवार और रविवार अवकाश की वजह से नामांकन प्रक्रिया नहीं पूरी की जा सकेगी. जिला प्रशासन की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार इंडिया गठबंधन,  बसपा प्रत्याशियों समेत कुल 8 लोगों ने अब तक नामांकन दाखिल किया है. वाराणसी नामांकन के दौरान अनोखी तस्वीर देखने को मिल रही है. इस बार न केवल वाराणसी के आसपास के जनपद से बल्कि बिहार मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत से भी प्रत्याशी इस सीट पर चुनावी दाव आजमाना चाहते हैं.


वाराणसी की सीट पर नामांकन प्रक्रिया के बीच शुक्रवार के दिन पर्चा खरीदने के लिए लंबी कतार देखी गई. वाराणसी से दर्जनों की संख्या में निर्दल प्रत्याशी तो लाइन में लगे ही, साथ ही आसपास के जनपद के साथ-साथ मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत जैसे दूर दराज प्रदेशों से भी प्रत्याशी इस हाई प्रोफाइल सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं.  मध्य प्रदेश के बैदराम गुप्ता तो 25 हजार के कुल सिक्कों को लेकर है वाराणसी की लोकसभा सीट पर नामांकन करने के लिए पहुंच गए. दूसरी तरफ दशकों से अपने आपको सरकारी दस्तावेज में मुर्दा होने का दावा करने वाले संतोष मूरत भी वाराणसी से चुनाव लड़ना चाहते हैं. 


 



नामांकन के लिए प्रत्याशियों की लगी कतार


प्रत्याशियों को प्रस्तावक मिलना बना चुनौती
कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है, तो कोई अपने निजी मुद्दों को लेकर वाराणसी के सियासी अखाड़े में उतरने की इच्छा रखता है. वैसे शहर में इस बात की भी चर्चा लोगों के बीच खूब हो रही है कि क्या वाराणसी की लोकसभा सीट पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर लोग सिर्फ सुर्खियां बटोरना चाह रहे हैं. चुनाव आयोग की तरफ से जारी दिशा निर्देश के अनुसार लोकसभा सीट पर प्रमुख दल और निर्दल प्रत्याशियों को नामांकन के दौरान प्रस्तावकों की अनिवार्यता रहती है. इस दौरान इन प्रत्याशियों के सामने वाराणसी की लोकसभा सीट पर प्रस्तावक मिलना भी इतना आसान नहीं होगा. 


दरअसल यह दूर दराज से प्रत्याशी जब  वाराणसी के नामांकन स्थल पर पहुंच रहे हैं तो इनके साथ भी गिने चुने लोग ही देखे जा रहे हैं. इसलिए स्वाभाविक तौर पर इस बात की भी चर्चा है कि आखिर में इन प्रत्याशियों के प्रस्तावक कौन होंगे. हालांकि उनके पूरे नामांकन पत्र की जांच और सभी विवरण के आधार पर ही निर्वाचन अधिकारी, जिला प्रशासन तय करेंगे कि यह प्रत्याशी चुनाव लड़ने के योग्य है या नहीं लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव के दौरान वाराणसी में लघु भारत के लोकतांत्रिक आधार का एक जीता जागता उदाहरण देखने को मिल रहा है.


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