UP Politics: BSP से रेस में पीछे चल रही सपा और कांग्रेस, क्यों हो रही देर? इस दांव की खोज रहे काट
UP Lok Sabha Election 2024: साल 2019 में BSP की हाथी को समाजवादी पार्टी साइकिल की सवारी रास आई, लेकिन आम चुनाव के परिणाम के तुरंत बाद बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की राहें अलग हो गई.
UP Lok Sabha Chunav 2024: पश्चिमी यूपी में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती एक-एक करके कई सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर रहीं हैं. अब सवाल समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मायावती की सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने से क्यों घबरा रहें हैं? अखिलेश यादव और राहुल गांधी को किस बात का डर सता रहा है. हाथी की चाल के आगे साइकिल की रफ्तार और पंजे की पकड़ क्यों कमजोर पड़ी है. ये वो तमाम सवाल हैं जो पश्चिमी यूपी की सियासत में गूंज रहें हैं. 2019 में हाथी और साइकिल के गठबंधन में बहनजी ने 11 लोकसभा सीट जीती थी और सपा ने पांच, लेकिन इस बार दोनों के रास्ते अलग अलग हैं.
हाथी की चाल से साइकिल और हाथ को क्या है डर?
साल 2019 में हाथी को साइकिल की सवारी रास आई, लेकिन साल 2024 में बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की राहें अलग हो गई. अब पश्चिमी यूपी की पांच महत्वपूर्ण सीटों की बात करते हैं. साल 2019 में सहारनपुर से बसपा से फजलुर्रहमान, बिजनौर से मलूक नागर, नगीना लोकसभा से गिरीश चंद्र और अमरोहा सीट से कुंवर दानिश अली चुनाव जीते थे.
मेरठ से बसपा के हाजी याकूब दूसरे नंबर पर रहे और बहुत कम अंतर से हारे थे. ऐसे में ये सीट बसपा की महत्वपूर्ण सीट कही जाती हैं, लेकिन इनमे से किसी भी सीट पर सपा और कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित ना करना राजनीति पंडितों को भी सकते में डाल रहा है, जबकि बिजनौर लोकसभा से बहनजी ने चौधरी बिजेंद्र सिंह, अमरोहा लोकसभा से डॉक्टर मुजाहिद हुसैन को प्रत्याशी घोषित कर दिया, जबकि सपा और कांग्रेस टिकट घोषित करने की रेस में बहुत पीछे चल रहें हैं.
मुजफ्फरनगर और कैराना में जल्दी, बाकी सीटों पर देरी क्यों?
सपा और कांग्रेस में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर गठबंधन हो चुका है. अखिलेश यादव ने मुजफ्फरनगर लोकसभा से हरेंद्र मलिक और कैराना लोकसभा से इकरा हसन को प्रत्याशी घोषित कर दिया, लेकिन बिजनौर, नगीना, मेरठ और अमरोहा पर प्रत्याशी तय करने में अखिलेश को पसीने क्यों छूट रहें हैं? अखिलेश की तरह कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी काफी पीछे हैं. सहारनपुर सीट गठबंधन में कांग्रेस को मिली है लेकिन कांग्रेस भी न जाने किस डर में हैं कि प्रत्याशी के नाम पर मुहर ही नहीं लगा रही है. इसको लेकर सियासी गलियारों में बड़ी चर्चाएं हैं कि मुजफ्फरनगर और कैराना में टिकट दे दिए, लेकिन क्या डर है जो अखिलेश और राहुल गांधी ने बहनजी की सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने में हाथ पीछे बांध रखें हैं?
बीजेपी और आरएलडी गठबंधन भी आगे चल रहा
पश्चिमी यूपी में बसपा की जो पांच महत्वपूर्ण सीट हैं उनमें से बिजनौर से आरएलडी बीजेपी प्रत्याशी चंदन चौहान हैं, नगीना से बीजेपी ने नहटोर से तीन बार के विधायक ओम कुमार को मैदान में उतारा है और अमरोहा पर कंवर सिंह तवर को प्रत्याशी बनाया है.जबकि मेरठ, सहारनपुर पर मंथन चल रहा है. पश्चिमी यूपी में कई और सीटों पर बीजेपी अपने पत्ते खोल चुकी है. बीजेपी से आरएलडी का गठबंधन है जिसमें आरएलडी को दो सीट मिली हैं.
मायावती के सोशल इंजीनियरिंग दाव की काट ढूंढने में देरी न हो जाए
पश्चिमी यूपी में बसपा की सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने में अखिलेश और राहुल क्यों देरी कर रहें हैं, इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा का कहना है कि सोशल इंजीनियरिंग के मामले में मायावती नंबर वन हैं. मायावती के हर टिकट और हर फैसले पर अखिलेश और राहुल गांधी की नजर है. दोनों ही मायावती के दाव की काट ढूंढ रहे हैं और टिकटों के जातीय समीकरण पर नजर रखें हैं, लेकिन ये देरी ठीक नहीं है क्योंकि बहनजी के दाव की काट इतनी भी आसान नहीं है, लेकिन जितनी देरी से टिकट होंगे उतना ही खेल बिगड़ेगा, क्योंकि पश्चिमी यूपी में टिकट में देरी का मैसेज सही नहीं जा रहा है और लोगों को लग रहा है कि बहनजी से इस बार अलग होकर चुनाव लड़ने में अखिलेश के मन में कोई डर बैठ गया है.