Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव का शोर शुरू हो गया है. इस बीच कई बार आपको ऐसे शब्द सुनाई देंगे की विरोधी को ऐसी हार का सामना करना पड़ेगा कि जमानत भी नहीं बचा पाएंगे या जमानत जब्त हो जाएगी. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि जमानत जब्त होना क्या है और इसका यूपी से खास नाता है. 


दरअसल जमानत वो राशि है जो चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी द्वारा चुनाव आयोग को जमा कराई जाती है. अगर किसी को तय वोट नहीं मिलते हैं तो इस राशि को जब्त कर लिया जाता है. हालांकि ये राशि अलग-अलग चुनाव में अलग-अलग होती है. वोटों की तय संख्या में अलग-अलग चुनाव के हिसाब से ही होती है. 


जानें- क्यों होती है जमानत ज़ब्त?
नियम के मुताबिक अगर प्रत्याशी को कुल वोटों का छठा हिस्सा भी नहीं मिलता है तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है. लोकसभा चुनाव में ये निश्चित सुरक्षा राशि 25 हजार और विधानसभा चुनाव के लिए 10 हजार रुपये है. जो चुनाव आयोग में पहले ही जमा कराई जाती है. 


यूपी से जुड़ी है कहानी
आपको जानकर हैरानी होगी कि जमानत जब्त होने का सिलसिला यूपी से ही शुरू हुआ था. पहली बार साल 1952 में आजमगढ़ की सगड़ी पूर्वी विधानसभा सीट पर कांग्रेस के बलदेव खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी शंभू नारायण ने चुनाव लड़ा था. 


इस सीट पर कुल 83,438 वोट पंजीकृत थे, जिनमें से 32,378 लोगों ने वोट डाले, चुनाव में कांग्रेस के बलदेव (4,969 वोट) को शंभूनारायण (4348 वोट) पर जीत मिली, लेकिन जीतने के बाद भी उनकी जमानत जब्त हो गई थी क्योंकि उन्हें कुल वोटों का 1/6 फीसद वोट भी नहीं मिल पाया था. 


चुनाव में जमानत जब्त होने का अर्थ है कि संबधित प्रत्याशी को उस क्षेत्र की 1/6 फीसद जनता का भी समर्थन नहीं मिल पाया है. इसलिए अक्सर चुनाव के दौरान अपना वर्चस्व दिखाने के लिए नेता एक दूसरे को लेकर इस जमानत जब्त होने जैसी बातों का भी जिक्र करते हैं. 


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