UP Politics: पिछले कुछ दिनों में यूपी की सियासत में हुई जबरदस्त हलचल, जानें- अब तक क्या-क्या बदला?
UP Politics: लोकसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में सत्ता पक्ष और विरोधी दल दोनों अपना खेमा मजबूत बनाने में जुटे हैं.
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Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी की सियासत में इन दिनों जबरदस्त हलचल देखने को मिल रही है. जहां एक तरफ बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए विरोधी दल मजबूत गठबंधन बनाने में जुटे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी अपना कुनबा बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है. पिछले कुछ समय में यूपी की सियासत में काफी बदलाव देखने को मिला है. कई दल सपा गठबंधन छोड़कर चले गए तो कईयों को बीजेपी अपने साथ लाने में जुटी है. आईए आपको बताते हैं पिछले एक साल में यूपी की सियासत कितनी बदली है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार दावा कर रहे हैं कि इस बार उनका पीडीए फॉर्मूला यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक मिलकर बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएंगे. इसके लिए उन्होंने तमाम विपक्षी दलों को एकजुट होने का आह्वान भी किया है लेकिन हकीकत तो है ये एक साल में सपा गठबंधन में ही दरार देखने को मिली है. कई साथी उन्हें छोड़ कर जा चुके हैं. सपा के साथ 2022 का चुनाव लड़ चुके महान दल ने सपा से गठबंधन तोड़कर बसपा को समर्थन देने का एलान किया है तो वहीं ओम प्रकाश राजभर के भी बीजेपी के साथ जाने की चर्चा तेज हैं.
राजभर के दावे ने बढ़ाई हलचल
समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद चर्चा है कि ओम प्रकाश राजभर एक बार फिर बीजेपी के साथ जा सकते हैं. राजभर की दो बार बीजेपी के शीर्षस्थ नेताओं के साथ मुलाकात भी हो चुकी है. दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर बातचीत हो रही है, जल्द ही इसे लेकर कोई एलान भी हो सकता है, हालांकि राजभर ये भी दावा कर रहे हैं कि वो अपने साथ बसपा सुप्रीमो मायावती को भी लाएंगे. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है राजभर लगातार विपक्षी दलों से बसपा सुप्रीमो को पीएम का चेहरा बनाने की सलाह भी दे रहे हैं. उनका कहना है कि यूपी में मायावती ही ऐसी नेता हैं जो बड़ा उलटफेर कर सकती हैं.
जयंत चौधरी को लेकर भी चर्चाएं तेज
पश्चिमी यूपी में सपा और आरएलडी का गठबंधन हैं, लेकिन पिछले काफी दिनों से दोनों के बीच खींचतान की खबरें भी तेज हैं. निकाय चुनाव में कई सीटों पर दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ दिखाई दिए थे, जिसके बाद आरएलडी के सपा से अलग होने की चर्चा तेज हो गईं, हालांकि जयंत चौधरी ने इस बात का खंडन किया है और कहा है कि वो 18 जुलाई बंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होंगे. इस बीच आरएलडी और कांग्रेस के गठबंधन की भी बातें चल रही है.
दूसरी तरफ एक चर्चा ये भी है पश्चिमी यूपी में किसानों को अपने साथ लाने के लिए बीजेपी की नजर भी आरएलडी पर लगी हुई है. आरएलडी को साथ लाने के लिए बीजेपी के बड़े नेताओं को काम पर लगाया गया है. देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव से पहले क्या महाराष्ट्र की तरह बीजेपी यहां कोई तोड़फोड़ कर पाती है या नहीं.
गिले-शिकवे भूल साथ आए चाचा भतीजे
यूपी की सियासत में सबसे बड़ा घटनाक्रम उस वक्त देखने को मिला जब सारे गिले शिकवे भूलकर चाचा-भतीजे एक हो गए. मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की, जिसके बाद शिवपाल यादव और अखिलेश एक बार फिर से साथ आ गए. अखिलेश ने चाचा शिवपाल को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया.
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