UP News: उत्तर प्रदेश के कानपुर (Kanpur) में इन दिनों बीजेपी (BJP) के दिग्गज नेताओं के बीच जो कुछ भी हो रहा है, वो पार्टी के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं कहा जा सकता. बीजेपी सांसदों और विधानसभा अध्यक्ष के बीच छिड़ी जंग लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में यूपी के मिशन 80 को कानपुर और अकबरपुर (Akbarpur) सीटों पर कमजोर कर सकती है. एक तरफ यूपी विधानसभा (UP Assembly) के अध्यक्ष सतीश महाना (Satish Mahana) हैं तो दूसरी तरफ कानपुर से सांसद और योगी सरकार (Yogi Government) में मंत्री रहे सत्यदेव पचौरी (Satyadev Pachauri) हैं.


विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की समग्र विकास की पिछली बैठक को लेकर कानपुर, अकबरपुर और मिश्रिख के सांसदों की कड़ी आपत्ति के बावजूद इस बार फिर से मीटिंग बुलाई गई. सोमवार को डंके की चोट पर मंडलायुक्त कार्यालय में दोबारा बैठक बुलाई गई. इसमें जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के साथ बैठक करके साफ संकेत दे दिए गए कि महाना विकास की राजनीति से पीछे नहीं हटने जा रहे. इसके बाद बीजेपी से अकबरपुर के सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने बैठक को बुलाए जाने को लेकर फिर से आपत्ति जताई और यहां तक कह दिया कि महाना को इस बैठक को बुलाने का कोई विधिक अधिकार नहीं है.


सतीश महाना टिकट के प्रबल दावेदार


जानकारों के मुताबिक इस बैठक को महाना की लोकसभा चुनाव की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है और यही पचौरी खेमे की सबसे बड़ी चिंता की वजह है. इस बार सतीश महाना कानपुर संसदीय सीट से बीजेपी के टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. सत्यदेव पचौरी बीजेपी की तयशुदा उम्र सीमा को पार करते नजर आ रहे हैं. इसी फैक्टर को मद्देनजर रखते हुए महाना की दावेदारी प्रबल मानी जा रही है. महाना अपनी सक्रियता को भी किसी रूप में कम नहीं होने दे रहे है, लेकिन शहर के समग्र विकास को लेकर महाना की बुलाई गई बैठक से दूसरी बार दोनों सांसदों ने किनारा कर लिया.


2004 में पचौरी को मिली थी हार


दरअसल महाना और पचौरी के बीच असंतोष लंबे समय से चल रहा है. जानकर बताते हैं कि साल 2004 में पचौरी को 5 हजार से हार का सामना करना पड़ा, जिसमें महाना की भूमिका संदिग्ध मानी गई तो वहीं 2009 के लोकसभा चुनावों में सतीश महाना कानपुर से लड़े तो उन्हें करीब 18 हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा, इसमें पचौरी की भूमिका संदिग्ध मानी गई. अब हाल के कुछ घटनाक्रमों ने इसे विवाद में बदल दिया है. अभी मेयर के टिकट को लेकर दोनों आमने-सामने आ गए थे. पचौरी की पुत्री नीतू सिंह का टिकट अंतिम समय में कट गया था और महाना की पैरवी से दूसरी बार प्रमिला पांडे प्रत्याशी घोषित कर दी गई. प्रमिला पांडेय की जीत को महाना खेमा अपनी जीत मान रहा है.


बीजेपी की गुटबाजी और हो सकती है तेज


पिछले दिनों बीजेपी दक्षिण जिले की कार्यसमिति की बैठक में मेयर प्रमिला पांडे ने यह कह भी दिया कि एक सांसद ने अपने करीबी लोगों को दूसरे प्रत्याशी को वोट देने के लिए प्रेरित किया. इस पर मंच पर बैठे अकबरपुर के सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने आपत्ति जताई थी तो मेयर ने कह दिया था कि आप वह सांसद नहीं हैं. गौर करने वाली बात ये है कि बैठक में सांसद पचौरी मौजूद नहीं थे. अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में बीजेपी की गुटबाजी और तेज होगी, साथ ही कार्यकर्ता आपस में बंट जाएंगे.


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