UP Politics: जयंत चौधरी की अखिलेश यादव से दूरी और राहुल गांधी से नजदीकी, 2024 से पहले बढ़ेगी बीजेपी की टेंशन?
Lok Sabha Election 2024: निकाय चुनाव के नतीजों ने 2024 को लेकर बड़ी तस्वीर साफ कर दी है. अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के रिश्तों में चल रही खटास नई कहानी को जन्म दे रही है.
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UP News: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव (UP Nagar Nikay Chunav) में गठबंधन में जो दूरी दिखी, उसका असर नतीजों पर देखा गया. गठबंधन होने के बावजूद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की जोड़ी साथ नजर नहीं आई. निकाय के नतीजों के बाद अब ये हवा जोर पकड़ रही है है कि जयंत चौधरी की अखिलेश यादव से दूरी और कांग्रेस (Congress) नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से नजदीकी की बड़ी वजह बनती जा रही है. ये सुगबुगाहट भी है कि जयंत का एक बड़ा फैसला 2024 में बीजेपी को मुश्किल के डाल सकता है. निकाय चुनाव में सपा से दूरी के बावजूद पश्चिम यूपी में 23 निकाय सीट जीतकर जयंत चौधरी ने ये बता दिया है कि उनकी पकड़ कमजोर नहीं है.
निकाय चुनाव के नतीजों ने 2024 को लेकर बड़ी तस्वीर साफ कर दी है. अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के रिश्तों में चल रही खटास नई कहानी को जन्म दे रही है. जयंत चौधरी का निकाय चुनाव में मैदान में न आना और अखिलेश यादव का मैदान में आकर भी कुछ बड़ा न कर पाना बहुत कुछ कह रहा है. बीजेपी से सियासी लड़ाई का संकल्प लेकर जो सपा और आरएलडी का गठबंधन बना, वो इरादे से भटका हुआ नजर आ रहा है लेकिन वादे और इरादे के बीच 2024 की तैयारी में नए विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं.
'अखिलेश यादव बीजेपी को हराने में सक्षम'
यही वजह है कि गठबंधन में नए साथियों को जोड़ने की सुगबुगाहट दिखाई दे रही है. चर्चा है कि जयंत चौधरी, राहुल गांधी को गठबंधन में शामिल कर सकते हैं. अखिलेश यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए तो जयंत चौधरी, राहुल गांधी के साथ नए गठबंधन के विकल्पों को तलाश सकते हैं. हालांकि, सियासी हवा में तैर रही इन बातों पर सपा के नेताओं का कहना है गठबंधन को निकाय में फ्री छोड़ दिया गया था. सपा और बीएसपी से समझौता करके देख चुके हैं और अखिलेश यादव बीजेपी को हराने में सक्षम हैं.
निकाय चुनाव में सीटों के बंटवारे में फंसा पेंच
दरअसल, निकाय चुनाव में जयंत चौधरी और अखिलेश यादव में सीटों के बंटवारे पर खूब पेंच फंसा. जयंत चौधरी मेरठ और गाजियाबाद मेयर सीट आरएलडी प्रत्याशी को लड़ाना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव ने बात पूरी होने से पहले ही सपा से प्रत्याशियों की घोषणा कर दी. इसने रिश्तों में नई कड़वाहट को जन्म दिया. कई सीटों पर सपा और आरएलडी प्रत्याशी आमने-सामने लड़े और तल्खी इस कदर बढ़ गई कि जयंत चौधरी ने निकाय चुनाव में प्रचार करने से इंकार कर दिया.
प्रचार अभियान में नहीं गए जयंत चौधरी
अब अखिलेश यादव सहारनपुर और मेरठ सहित कई जगह रोड शो करने गए लेकिन दिग्गजों को जीत नसीब नहीं करा सके, जबकि राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी प्रचार अभियान में गए ही नहीं और पश्चिमी यूपी के 23 निकायों में आरएलडी ने जीत का परचम लहरा दिया. मतदाताओं की सपा से दूरी और आरएलडी से नजदीकी ने सियासी आसमान में छाई धुंध भी हटा दी. मुस्लिम वोट पश्चिम की तमाम सीटों पर अखिलेश यादव से छिटक गए.
मुस्लिम मतदाताओं ने दिया बड़ा संदेश
मुस्लिम मतदाताओं ने अपनी ताकत का एहसास करा अखिलेश यादव को बड़ा संदेश भी दे दिया कि सपा की नीतियां हों या फिर टिकट बंटवारे में गलत फैसला हों, मुस्लिम अब साथ नहीं हैं. एआईएमआईएम का कद बढ़ना, कांग्रेस और बसपा की तरफ मुसलमानों का एकदम बढ़ाना बहुत कुछ तस्वीर साफ कर रहा है. ऐसे में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत ने यूपी में, खास तौर से पश्चिम में सियासी हवा के तापमान में कुछ और गर्मी ला दी.
अखिलेश यादव का गुर्जर दांव हुआ फेल
खतौली में जहां जयंत चौधरी का गुर्जर दांव पास हुआ, वहीं मेरठ मेयर सीट पर अखिलेश यादव का गुर्जर दांव फेल हो गया. अब इस सियासी हवा ने और स्पीड पकड़ी कि जयंत चौधरी और राहुल गांधी के साथ मिलकर नई उम्मीदों को परवान चढ़ा सकते हैं. पहले आजम खान फैक्टर, फिर इरफान सोलंकी और अब अतीक मामले से भी मुस्लिम सपा से छिटका है और इसी के बाद नए विकल्पों पर मंथन शुरू हुआ है.
भारत जोड़ो यात्रा का आरएलडी कार्यकर्ताओं ने किया था स्वागत
यूपी विधानसभा चुनाव में जिस तरीके से एकमुश्त होकर मुस्लिम सपा की साइकिल चलाते नजर आए, वहीं निकाय चुनाव में मुस्लिमों ने सपा से काफी दूरी बना ली. अब ऐसे में सामने न सही लेकिन पर्दे के पीछे अखिलेश यादव भी ये सोच रहे हैं कि कांग्रेस के साथ जाया जा सकता है, जबकि जयंत चौधरी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में बागपत और शामली में आरएलडी कार्यकर्ताओं से भव्य स्वागत कराकर दूर का दांव चल दिया था.
बीजेपी के लिए भी खड़ी हो सकती हैं मुश्किलें
जयंत चौधरी ने राहुल गांधी को तपस्वी बताकर भविष्य के इरादे जता दिए थे. अब यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन बना तो बीजेपी के लिए भी मुश्किल खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि पश्चिम की करीब एक दर्जन से ज्यादा सीटें ऐसी हैं कि जहां जाट, मुस्लिम और अन्य बिरादरी मिलकर बीजेपी को मुश्किल में डाल सकते हैं. रालोद नेताओं का कहना है कि 24 आते-आते ये गठबंधन बड़ा स्वरूप लेगा, राजस्थान में हम कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं. ये बात साफ है कि पश्चिमी यूपी की सियासी हवा बहुत कुछ कह डालती है और पूरब तक बहुत कुछ बदलने की ताकत रखती है. अब सपा-आरएलडी गठबंधन के साथ या फिर आरएलडी और कांग्रेस अलग गठबंधन अन्य दलों के साथ मिलकर बनाते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.
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