ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में जाने के बाद उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी परिवार एक बार फिर सियासी सुर्खियों में है. पूर्वांचल की सियासत में एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि अब अंसारी परिवार किधर है?  दरअसल, बीजेपी से गठबंधन करने के बाद सुभासपा के सिंबल पर चुनाव जीते मुख्तार के बेटे अब्बास को ओम प्रकाश राजभर ने सपा विधायक बता दिया है.


इधर, सपा ने भी से अब्बास अंसारी से पल्ला झाड़ लिया है. सपा महासचिव शिवपाल यादव ने कहा है कि अगर अब्बास हमारे विधायक होते, तो साइकिल सिंबल से चुनाव जीतकर आते. उन्होंने कहा कि मुख्तार अंसारी को हमेशा से बीजेपी ने शह दी है. सपा ने मुख्तार से हमेशा दूरी बनाई है. 


यह पहली बार नहीं है, जब यूपी की सियासत में राजनीतिक दलों के लिए मुख्तार अंसारी परिवार सियासी फांस बन गया हो. इससे पहले सपा और बीएसपी भी मुख्तार मामले में बैकफुट पर आ चुकी है. सपा में मुख्तार की एंट्री को लेकर 2016 में शिवपाल और अखिलेश यादव में भारी झगड़ा हुआ था. 


वाराणसी, गाजिपुर, मऊ और घोषी में राजनीतिक दबदबा रखने वाला मुख्तार अंसारी का परिवार क्यों और कैसे सियासी अछूत बन गए हैं? आइए विस्तार से जानते हैं...


आजादी की लड़ाई में दादा बने थे कांग्रेस के अध्यक्ष
मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी आजादी की लड़ाई के अगुवा थे. 1927 के मद्रास अधिवेशन में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया था. उनकी गिनती महात्मा गांधी के बेहद करीबी लोगों में होती थी. 1936 में उनका निधन हो गया.


पिता की विरासत को बेटे सुब्हानउल्लाह अंसारी ने आगे बढ़ाया. हालांकि, वे कांग्रेस के बदले कम्युनिष्ट धारा से जुड़कर राजनीति शुरू कर दी. सुब्हानउल्लाह के रास्ते पर ही चलकर अफजाल ने राजनीति में एंट्री ली. अफजाल 1985 में मोहम्मदाबाद सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.


बाद में मुख्तार और सिगबतुल्लाह अंसारी भी राजनीति में आए. मुख्तार के चाचा हामिद अंसारी देश के उप-राष्ट्रपति रह चुके हैं. इसके अलावा, मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी भी सेना के ब्रिगेडियर थे, जिन्हें सेना का सर्वोच्च सम्मान में से एक महावीर चक्र मिला था.


मुख्तार की राजनीति में एंट्री कैसे हुई?
भाई अफजाल के विधायक बन जाने के बाद मुख्तार अंसारी ठेकेदारी करने लगे. उस वक्त पूर्वांचल में अपराधियों के लिए मलाईदार पेशा बन गया था. भाई के विधायक होने की वजह से मुख्तार का धंधा चल पड़ा था. इसी बीच 1988 में मंडी परिषद के एक ठेके को लेकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हो जाती है. 


इस केस में मुख्तार अंसारी को आरोपी बनाया जाता है. इसके बाद मुख्तार को कई हत्या में पुलिस नामजद आरोपी बनाती है. इनमें अवधेश राय और कृष्णानंद राय की हत्या का मामला प्रमुख है.


1996 में मुख्तार की पहली बार राजनीति में एंट्री होती है. मुख्तार पारंपरिक मोहम्मदाबाद सीट छोड़कर मऊ से चुनाव मैदान में उतरते हैं. मऊ मुस्लिम बहुल सीट है, जहां मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है. मुख्तार के मऊ से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद मायावती ने उन्हें बीएसपी का सिंबल थमा दिया.


मुख्तार 1996 का चुनाव जीतने में सफल रहते हैं और पहली बार विधानसभा पहुंचते हैं. मुख्तार इसके बाद 2022 तक मऊ से कोई चुनाव नहीं हारे. 2022 में उन्होंने अपनी विरासत बेटे अब्बास को सौंप दी. 2022 में अब्बास अंसारी मऊ सीट से बीजेपी के अशोक सिंह को 35 हजार वोटों से हराया. 


अंसारी परिवार से राजनीति में कौन-कौन?


मुख्तार अंसारी- मऊ से विधायक रहे हैं. 6 मामलों में अब तक सजा हो चुकी है. बांदा जेल में बंद हैं. फिलहाल, जज के सामने एक गवाह को धमकाने के केस में आरोपी बनाए गए हैं.


अफजाल अंसारी- गाजीपुर से सांसद रह चुके हैं. गैंगस्टर केस में सजा मिलने के बाद सांसदी की सदस्यता रद्द हो चुकी है. अभी एक केस में जेल में बंद हैं. राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट गए हैं.


अब्बास अंसारी- मुख्तार अंसारी के बेटे और मऊ से विधायक अब्बास अभी जेल में बंद हैं. उन पर हेट स्पीच का मामला दर्ज है. जेल नियमों का उल्लंघन करने का केस भी उन पर दर्ज है.


सुहैब अंसारी- मुख्तार के भतीजे सुहैब अभी मोहम्मदाबाद सीट से विधायक हैं. सुहैब वर्तमान में समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं. 2022 में सपा ने ही उन्हें मोहम्मदाबाद से टिकट दिया था. 


पूर्वांचल में कितने मजबूत अंसारी परिवार?
लोकसभा सीटों के हिसाब से देखा जाए तो अंसारी परिवार का घोषी, वाराणसी और गाजीपुर सीट पर काफी अधिक दबदबा है. 2009 में वाराणसी सीट पर मुख्तार अंसारी को 1.85 लाख वोट मिले थे. 2014 में भी मुख्तार ने वाराणसी सीट से लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन ऐन वक्त पर पीछे हट गए. 


मुख्तार 2014 में घोषी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें 1.66 लाख वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे. घोषी लोकसभा में 4 सीटें मऊ की और एक सीट बलिया की है. गाजीपुर सीट से 2019 में मुख्तार के भाई अफजाल ने जीत दर्ज की थी. 


अफजाल गाजीपुर सीट से 2004 से 2009 तक भी सांसद रह चुके हैं. 2019 में उन्होंने मोदी सरकार में मंत्री रहे मनोज सिन्हा को चुनाव हराया था. बलिया लोकसभा के अंदर मुख्तार परिवार का पारंपरिक मोहम्मदाबाद सीट आती है, इसलिए यहां के समीकरण तय करने में भी अंसारी परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.


फिर सियासी 'अछूत' क्यों बन गए?


दिग्गज चुनावी रेस से बाहर- अंसारी परिवार में मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी की लोकप्रियता लोगों में थी. वे अपना चुनाव जीतने के साथ-साथ संबंधित पार्टियों को अन्य सीटों पर भी फायदा पहुंचाते थे, लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है. 


मुख्तार और अफजाल को कोर्ट से सजा मिल चुकी है, जिस वजह से उनके चुनाव लड़ने पर सस्पेंस बरकरार है. ऐसे में अंसारी परिवार में चुनाव जीतने वाला कोई भी चेहरा नहीं बचा है. अफजाल और मुख्तार दोनों अभी जेल में बंद हैं, ऐसे में दलों को कोई उनसे फायदा भी नहीं मिल पाएगा.


मुख्तार परिवार से जो भी व्यक्ति अब चुनाव लड़ने योग्य हैं या जेल से बाहर हैं. लोगों में उनकी पकड़ ज्यादा मजबूत नहीं है. हालांकि, गाजीपुर सीट पर चुनाव होने की स्थिति में अफजाल के बेटी के चुनाव लड़ने की चर्चा है.


दर्ज मुकदमों में सजा - 2017 से पहले तक मुख्तार के खिलाफ सिर्फ केस दर्ज हुआ. किसी मामले में सजा नहीं सुनाई गई. उलटे कई मामलों में वे बाइज्जत बरी भी हो गए. इस वजह से राजनीतिक दल आसानी से उनका बचाव कर लेती थी.


हालांकि, अब उन्हें 9 महीने के भीतर ही 5 मामलों में सजा सुनाई जा चुकी है. मुख्तार पर 22 मामले अभी भी विचाराधीन है. माना जा रहा है कि इस साल तक कई और मामलों में कोर्ट का फैसला आ सकता है. 


कोर्ट से सजा सुनाए जाने की वजह से राजनीतिक दल बचाव करने को राजी नहीं है. पार्टियों को फायदे से अधिक नुकसान की चिंता सता रही है. 


पत्नी अब भी फरार- मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अभी पुलिस की रिकॉर्ड में फरार है. उन पर पुलिस ने ईनाम भी रखा हुआ है. हाल ही में पुलिस ने डुगडुगी बजाकर अफशां के खिलाफ मुनादी पिटवाई. 


अफशां पर दलितों के जमीन को फर्जी तरीके से लेने का आरोप है. इसके अलावा मुख्तार से जुड़े कई मामलों की जांच के लिए एजेंसी उन्हें तलाश रही है. अफशां फरार है, तो उनकी बहू निकहत चित्रकूट जेल में अभी बंद है. उन पर जेल में अवैध तरीके से मुलाकात करने का आरोप है.