1962 चुनाव : जब कांग्रेस के एकाधिकार वाले रुहेलखंड में चला जनसंघ का जादू
1962 के आम चुनाव तक कांग्रेस के एकाधिकार वाले रुहेलखंड की राजनीतिक हवा बदल गई। उस वक्त रुहेलखंड क्षेत्र में बिसौली लोकसभा सीट भी थी, जो बाद में आंबला संसदीय सीट हो गई।
1947 को देश आजाद हुआ और 1952 में आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव हुआ, ये वो दौर था जब देशभर में कांग्रेस की लहर थी।
1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में भी अमूमन कांग्रेस को लेकर ऐसा ही माहौल था। हालांकि इसके बाद रुहेलखंड का सियासी माहौल कुछ-कुछ बदलते लगा, लोगों का कांग्रेस से थोड़ा-थोड़ा मोहभंग होने लगा। और 1962 के आम चुनाव तक कांग्रेस के एकाधिकार वाले रुहेलखंड की राजनीतिक हवा पूर्णत: बदल गई।
1962 में केवल बिसौली सीट बचा पाई थी कांग्रेस
दरअसल, उस वक्त रुहेलखंड क्षेत्र में बिसौली लोकसभा सीट भी थी, जो बाद में आंबला संसदीय सीट हो गई। इसके अलावा रुहेलखंड में बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बदायूं संसदीय सीट भी आती थीं।
जब रुलेहखंड ने कांग्रेस का झटका ‘’हाथ’’
1962 के चुनाव में जनता ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया, पार्टी केवल बिसौली सीट ही बचा पाई थी। कांग्रेस उम्मीदवार अंसार हरवानी केवल 60 हजार 954 वोटों से ही जीत दर्ज कर पाए थे। जबकि बदायूं संसदीय सीट पर जनसंघ उम्मीदवार ओमकार सिंह ने 68 हजार 563 वोट हासिल कर जीत दर्ज की। जबकि बरेली सीट से बृजराज सिंह ने 60 हजार 771 वोट पाकर जीत का परचम लहराया था। पीलीभीत की सीट पर मोहन स्वरूप विजयी हुए थे।
जनसंघ को मिला जन समर्थन
दिलचस्प ये रहा कि यह पहला मौका था जब रुलेहखंड क्षेत्र में जनसंघ ने जन समर्थन प्राप्त किया था, जिसपर कांग्रेस का एकाधिकार हुआ करता था।
शाहजहांपुर से निर्दलीय प्रत्याशी को गले लगाया
इस चुनाव में मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी को भी गले लगाया। शाहजहांपुर संसदीय सीट से जनता ने निर्दलीय प्रत्याशी लखनदास को चुनाव जीताकर संसद पहुंचाया।