उत्तर प्रदेश की सियासत के कैनवास पर रुहेलखंड की अपनी एक अलग तस्वीर है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का रुहेलखंड क्षेत्र पैराणिक महत्व की समृद्ध विरासत के लिए ही केवल महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यहां के हर क्षेत्र की अपनी जमीनी और सियासी खासियत है। रुहेलखंड यानी की बरेली मंडल का इलाका.... बरेली मंडल के चार जिलों में पांच संसदीय क्षेत्र आते हैं, अकेले बरेली में दो लोकसभा सीटें आती हैं। आगे बढ़े, इससे पहले हम आपको बता दें कि बरेली मंडल की 5 लोकसभा सीटें हैं कौन-कौन सी....


बरेली मंडल की पांच लोकसभा सीटें




  1. बरेली

  2. शाहजहांपुर

  3. पीलीभीत

  4. आंवला

  5. बदायूं


2014 में चार सीटों पर लहराया भगवा


पिछले लोकसभा चुनाव (2014) में मोदी लहर के चलते यहां की चार लोकसभा सीटों (बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत, आंवला) पर भगवा लहराया था, लेकिन इसके बावजूद बीजेपी समाजवादी पार्टी के गढ़ कहे जाने वाले बदायूं का किला जीत नहीं सकी। इस चुनाव में जहां भाजपा के सामने अपनी चारों सीटों को बचाए रखने की चुनौती होगी, तो वहीं गठबंधन के वोट बैंक के सहारे सपा-बसपा कुर्सी पर काबिज होने की जुगत में नजर आएंगे। बदायूं सीट तो सपा की नाक के सवाल से कम नहीं है।


किस चरण में कहां होगा चुनाव


लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और 11 अप्रैल को पहले चरण का चुनाव होगा, जो की सात चरणों तक चलेगा। 19 मई को आखिरी चरण का मतदान होगा, जबकि परिणाम 23 मई को आएगा।




  • 23 अप्रैल (तीसरा चरण): बरेली, पीलीभीत, आंवला, बदायूं में चुनाव

  • 29 अप्रैल (चौथा चरण): शाहजहांपुर में चुनाव


अब आपके लिए यह भी जानना जरूरी है कि सियासी गलियारों में अहम भूमिका निभाने वाले रुहेलखंड इलाके के पांच प्रमुख चेहरे कौन-कौन हैं? जिन पर टिकीं है सबकी निगाहें


कौन मारेगा बाजी?


संतोष गंगवार- संसदीय क्षेत्र बरेली


सबसे पहले बात करेंगे बरेली लोकसभा सीट की, जहां के प्रमुख चेहरा हैं बीजेपी के संतोष गंगवार। गंगवार पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव को जीतकर संसद पहुंचे थे। वे इस सीट से सात बार चुनाव जीत चुके हैं, जिसमें छह बार तो लगातार उन्होंने जीत का स्वाद चखा। 2009 के चुनाव में गंगवार को झटका लगा, कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन ने उन्हें शिकस्त दी। 2014 में उन्होंने दोबारा खुद को साबित किया और जीत का सेहरा पहना।




  • 1989 में पहली बार संसद पहुंचे

  • 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में भी जीते

  • 2009 में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन से हारे

  • 2014 में फिर की वापसी

  • नवीं बार फिर से चुनावी मैदान में


अरुण सागर- संसदीय क्षेत्र शाहजहांपुर


अब नाम आता है अरुण सागर का, जिनपर भरोसा जताते हुए बीजेपी ने उन्हें शाहजहांपुर से चुनावी मैदान में उतारा है। 2014 के चुनावों में शाहजहांपुर सीट से कृष्णा राज ने भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर जीत दर्ज की थी। केंद्र में कृषि राज्यमंत्री पद संभाल रहीं कृष्णा राज की राजनीति पारी 1996 में विधानसभा चुनाव से शुरू हुई थी। हालांकि इस बार पार्टी ने कृष्णा राज पर भरोसा न जताते हुए उनका टिकट काट दिया है। उनकी जगह अरुण सागर को प्रत्याशी बनाया गया है।




  • अरुण सागर कभी बीएसपी के कार्यकर्ता थे।

  • 2006 में उन्हें बीएसपी का जिलाध्यक्ष बनाया गया।

  •  2007 में राजकीय निर्माण निगम का उपाध्यक्ष बनाकर दर्जा राज्यमंत्री का ओहदा मिला।

  • 2009 में संगठन विरोधी गतिविधियों का आरोप लगा और बीएसपी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।

  • पुवायां में विधानसभा उपचुनाव के दौरान बीएसपी में फिर लौटे।

  • 2012 में बीएसपी के टिकट पर पुवायां से विधानसभा चुनाव लड़े, हालांकि 50 हजार से अधिक मत पाकर भी हार का सामना करना पड़ा।

  • बीएसपी से संगठन विरोधी गतिविधियों में  शामिल होने के चलते 15 जून 2015 को फिर पार्टी से निकाल दिए गए।

  • इसके बाद उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ले ली।


वरुण गांधी - संसदीय क्षेत्र पीलीभीत


पीलीभीत...उत्तर प्रदेश का चर्चित संसदीय क्षेत्र है। खासकर वर्तमान में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का यहां से सांसद होना, इसे यूपी की HOT SEAT बनाता है। हालांकि इस बार मेनका की जगह उनके बेटे और बीजेपी नेता वरुण गांधी पीलीभीत के चुनावी रण में उतरे हैं। इससे पहले 2009 में भी मेनका ने वरुण गांधी के लिए पीलीभीत सीट छोड़ी थी।




  • वर्तमान में वरुण गांधी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से सांसद हैं।

  • वरुण के सियासी सफर की शुरुआत पीलीभीस से ही हुई थी।

  • उनकी मां मेनका गांधी पीलीभीत से छह बार सांसद रह चुकी हैं।

  • 2009 में वरुण ने अपनी मां की विरासत सीट पीलीभीत से रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी।

  • 2014 में उन्हें सुल्तानपुर की जनता ने संसद पहुंचा

  • 2019 में एक बार फिर पीलीभीत से चुनावी मैदान में


धर्मेंद्र यादव- संसदीय क्षेत्र बदायूं


यूपी की HOT SEATS में शामिल बदायूं लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ कहलाती है। मुलायम सिंह यादव के भतीजे और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव यहां से सांसद हैं। इस सीट पर सपा का किस हद तक दबदबा है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 2014 में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी बदायूं में कमल खिलाने में नाकामयाब रही थी और धर्मेंद्र यादव ने यहां से जीत दर्ज की थी। वे तीन बार से लगातार सपा के सांसद हैं।




  • धर्मेंद्र यादव ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत अपने होम ग्राउंट यानी सैफई से 2003 में ब्लॉक प्रमुख पद से की।

  • सपा को लगातार जीत दिलाते रहे इकबाल शेरवानी का टिकट काटकर 2004 में सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को चुनावी मैदान में उतारा था, पहले ही चुनाव में उन्होंने खुद को साबित किया और जीते।

  • तीन बार से लगातार सपा के सांसद हैं।

  • 2004 के बाद 2009 में भी जीते।

  • 2014 में मोदी लहर के बावजूद पार्टी को सीट जीताई

  • इस बार भी मैदान में।


धर्मेंद्र कश्यप- संसदीय क्षेत्र आंवला


आंवला सीट पर अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। इस सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां से बीजेपी पांच बार चुनाव जीती है। अब एक बार फिर बीजेपी के सामने 2019 में कमल खिलाने की चुनौती है। पिछले चुनाव में धर्मेंद्र कश्यम ने 40 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करके जीत दर्ज की थी। हालांकि, इस बार रुहेलखंड का हिस्सा आंवला में सपा और बसपा गठबंधन के बाद मुकाबला और भी कड़ा हो गया है।




  • 1995 में क्षेत्र पंचायत सदस्य निवार्चित हुए

  • फिर वर्ष 2000 में जिला पंचायत सदस्य चुने गए।

  • बढ़ती राजनीतिक पकड़ ने 2002 में विधानसभा की राह दिखाई। तब वह बसपा की टिकट पर जीते थे, हालांकि बाद में सपा में चले गए।

  • 2007 में सपा की टिकट पर दोबारा विधायक बने

  • 2009 के लोकसभा चुनाव में आंवला सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन उस वक्त भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी से बुरी तरह हारे।

  • 2014 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए और आंवला सीट से न सिर्फ प्रत्याशी बने बल्कि जीते भी।