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ईवीएम-वीवीपैट मिलान मामला: विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा झटका, पुनर्विचार याचिका की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम नतीजों का मिलान वीवीपैट की पर्चियों से कराने की मांग को खारिज कर दिया है। 21 विपक्षी दलों ने इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।
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नई दिल्ली, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम आने से पहले विपक्षी दलों को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम नतीजों का मिलान वीवीपैट की पर्चियों से कराने की मांग को खारिज कर दिया है। बता दें कि 21 विपक्षी दलों ने इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। मामले में मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि वह मामले पर पुनर्विचार का इच्छुक नहीं है।
पिछले आदेश में सुधार की जरूरत नहीं : कोर्ट
कोर्ट में सुनवाई के दौरान विपक्षी पार्टियों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कम से कम 25 या 33 फीसदी तक EVM-VVPAT मिलान की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि पिछले आदेश में सुधार की जरूरत नहीं है।
कोर्ट का पहले का आदेश क्या है?
आठ अप्रैल को हुई पिछले सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि याचिका में जो मांग की गई है, उससे मौजूदा मिलान प्रक्रिया 125 गुणा बढ़ जाएगी, जो कि पूरी तरह अव्यवहारिक होगा। बेंच ने कहा था कि इसके बावजूद भी हम इस दलील से सहमत हैं कि चुनाव प्रक्रिया को ज्यादा विश्वसनीय बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसलिए ये फैसला लिया जाता है कि हर विधानसभा क्षेत्र से पांच ईवीएम मशीनों का वीवीपैट (VVPAT)की पर्चियों से मिलान करवाया जाए। अपने इस फैसले में कोर्ट ने ईवीएम को वीवीपैट की पर्ची से मिलाने के आदेश को एक से बढ़ाकर पांच कर दिया था। बता दें कि पहले हर विधानसभा क्षेत्र से एक ईवीएम के नतीजों का मिलान वीवीपीएटी के पर्चियों से कराया जाता था।
विपक्ष की मांग क्या है?
दरअसल, आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, सीपीएम और तेलगु देशम समेत कुल 21 विपक्षी दलों ने मांग थी कि चुनाव आयोग एक क्षेत्र में ईवीएम मशीनों की आधी संख्या का मिलान वीवीपैट से निकली पर्चियों से करवाए। हालांकि, विपक्षी दलों की इस मांग के खिलाफ खुद चुनाव आयोग भी है। आयोग का कहना है कि इस मांग को मान लेने पर चुनाव परिणाम में देरी होगी।
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