अमेठी, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट का गांधी परिवार से गहरा नाता है। या ये भी कह सकते हैं कि जब भी इन दो सीटों की बात होती है, तो गांधी परिवार का जिक्र जरूर होता है। चुनावी यादों का ये किस्सा अमेठी सीट से जुड़ा है। यहां हर दौर में भावनाएं सियासत पर भारी पड़ी हैं।
भाई-बेटे, तो बहन का जोड़ा रिश्ता
1977 में गांधी-नेहरु परिवार के बड़े बेटे संजय गांधी ने यहां के लोगों से भाई और बेटे का रिश्ता जोड़कर इस भावनात्मक रिश्ते की शुरुआत की। रिश्तों और भावनाओं का ये सिलसिला छोटे भाई राजीव गांधी ने भी जारी रखा। राजीव के निधन के बाद सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक ये दौर जारी रहा। सिर्फ गांधी परिवार ने ही नहीं, 2014 में बीजेपी के टिकट पर अमेठी में चुनाव लड़ने आईं स्मृति ईरानी ने भी यहां के लोगों से बहन का रिश्ता जोड़ा।
भावनाओं की बयार कभी थमी, तो कभी खूब बही
ऐसा नहीं है कि भावनाओं के भवर में फंसकर हमेशा अमेठीवासियों ने गांधी परिवार के सिर ही जीत का सेहरा सजाया हो। 1977 में जब संजय गांधी ने अमेठी से भाई-बेटे का रिश्ता जोड़ा, तो उसी साल वे चुनाव हार गए थे। हालांकि, 1980 में जब चुनाव हुआ, तो संजय गांधी ने एक लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। भावनाओं की ये बयार 1998 में फिर थमी, जब भाजपा के संजय सिंह ने कैप्टन सतीश शर्मा को हराया। 1999 में एक बार फिर यह सीट गांधी परिवार के झोली में आ गिरी। 2014 में अमेठी की जिम्मेदारी राहुल गांधी को सौंपी गई। उन्होंने ये जिम्मेदारी बखूबी निभाई और पिछले तीन बार से लगातार उन्होंने इस सीट से संसद का रास्ता तय किया है।
2019 का रण
2019 के रण में एक बार फिर राहुल गांधी अमेठी से उतरे हैं। इस बार फिर उनके सामने बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी होंगी। हालांकि, इस बार राहुल अमेठी के अलावा केरल की वायनाड सीट से भी चुनावी दंगल में उतरे हैं।