हरदोई, एबीपी गंगा। राजधानी लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है हरदोई संसदीय क्षेत्र। हरदोई सीट के साथ ‘लाल’ कनेक्शन का एक बड़ा ही दिलचस्प संयोग जुड़ा रहा है। अतीत के पन्नों को पलटें तो हरदोई में ‘लाल’ हमेशा कमाल करते रहे हैं। यहां भी जनता भी लालों को अपना भरपूर प्यार देती आई है। ये अजीब सा संयोग ही है कि हरदोई से जीतकर संसद पहुंचने वाले तमाम नेताओं के नाम के आगे ‘लाल’ जुड़ा था। 1957 से 1989 तक यहां से कोई न कोई ‘लाल’ सांसद बनता रहा है, हालांकि जैसे-जैसे राजनीति बदली ‘लाल’ किनारे होते चले गए।
किंदर‘लाल’ का रिकॉर्ड आजतक नहीं टूटा
हरदोई के किंदरलाल ने जो रिकॉर्ड बनाया है, उसे आजतक कोई तोड़ नहीं पाया है। किंदरलाल को चार बार हरदोई की जनता ने दिल्ली पहुंचाया है।
अतीत के पन्नों से....
अतीत के पन्नों को पलटते हुए हम हरदोई से जुड़ा दिलचस्प किस्सा आपको बताने जा रहे हैं। 1957 में हरदोई लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के छेदालाल जीत दर्ज कर सांसद बने। 1962 के आम चुनाव में जनता ने अपना लाल बदला और कांग्रेस के किंदरलाल पर भरोसा जताते हुए उन्हें सांसद बनाया। 1967 में एक बार फिर किंदरलाल सांसद बने और 1971 में जीत की हैट्रिक लगाई। 1977 में मतदाताओं के बीच उनकी कमान कमजोर पड़ी और जनता ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। तब जनता ने एक और लाल को मौका देते हुए बीएलडी के परमाईलाल को जीत की माला पहनाई।
1980 का चुनाव: पहले, दूसरे और तीसरे पर लाल
1980 में जनता का मूड फिर बदला और हरदोई के मतदाताओं ने कांग्रेस के मन्नीलाल को संसद पहुंचाया। इस चुनाव में एक और दिलचस्प बात देखने को मिली। जहां पहले स्थान पर मन्नीलाल, दूसरे स्थान पर किंदरलाल और तीसरे स्थान पर परमाईलाल रहे थे। इसके बाद 1984 में फिर से जनता ने अपने पुराने लाल को मौका दिया और कांग्रेस के किंदरलाल एक बार फिर सांसद बने। 1989 में जनता दल ने इस सीट से परमाईलाल को निर्वाचित किया और इसके साथ ही राजनीति की हवा बदली।
जब नेता बदले, तो जनता का रुझान भी बदलता चला गया और इसकी के साथ फीका पड़ गया लालों का रंग या यूं कहें कि हरदोई में लाल का कमाल खत्म हो गया। हालांकि, 1991 में बसपा ने हीरालाल को चुनावी मैदान में उतरा, लेकिन उनका भी रंग न खिल सका और वे इस चुनाव में पांचवें स्थान पर रहे। इसके बाद 1996 में कांग्रेस ने मन्नीलाल पर भरोसा जताया, लेकिन जनता की कसौटी पर वे खरे नहीं उतरे। नतीजन चौथे स्थान पर रहे।
मिश्रिख में छाए रहे लाल
हरदोई की तीन विधानसभाएं मिश्रिख लोकसभा क्षेत्र में आती हैं। हरदोई का जितना प्रतिनिधित्व इस लोकसभा क्षेत्र मे रहा, उतना ही यहां की जनता ने लालों को मौका दिया। 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में रामलाल यहां से सांसद बने। हालांकि 1996 में वे हारे, तो परागीलाल को जनता ने संसद पहुंचाया।
नरेश अग्रवाल का गढ़ है हरदोई लोस सीट
अगर वर्तमान की बात करें, तो इस सीट को कभी सपा में रहे नरेश अग्रवाल का गढ़ कहा जाता है। यहां कि सियासत नरेश अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूमती है। मौजूदा समय में नरेश अग्रवाल बीजेपी में हैं और इस सीट पर भी बीजेपी का कब्जा है। 2014 में मोदी लहर में बीजेपी ने 1998 के बाद यहां कमल खिलाने में कामयाब रही थी और अंशुल वर्मा जीते थे। हालांकि इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर पूर्व सांसद जय प्रकाश रावत को चुनावी मैदान में उतारा है।