Analysis: इस बार करें वोट पर चोट, NOTA को कहें BYE-BYE
लोकसभा चुनाव 2014 में पहली बार नोटा (उपरोक्त में कोई नहीं) को शामिल किया गया था। इस बार फिर लोकतंत्र के महाकुंभ में नोटा चर्चा में हैं।
चुनावी मौसम में NOTA का भी खूब जिक्र होता है। जो नहीं जानते उनके लिए जानना जरूरी है कि आखिर ये नोटा है क्या? नोटा मतलब ‘नन ऑफ द एब’। सीधा समझा जाए तो- मतदाता को कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है। यह हमेशा बहस का विषय रहा है कि चुनाव में नोटा होना चाहिए या नहीं। इसके समर्थन और विरोध में तर्क भी दिए जाते रहे हैं। हालांकि पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच नोटा का इस्तेमाल करना एक तरह से मतदान से दूरी बनाने जैसा ही है। आंकड़ें बताते हैं कि नोटा चुनाव का गणित बिगाड़ने में सक्षम है। 2014 के चुनाव में कई ऐसी सीटें थीं जहां अगर मतदाता नाराजगी न दिखाते तो इन सीटों का नाजारा कुछ और ही होता।
2014 लोस चुनाव में पहली बार इस्तेमाल हुआ NOTA
सबसे पहले आपको ये बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 में पहली बार नोटा (उपरोक्त में कोई नहीं) को शामिल किया गया था। इस बार फिर लोकतंत्र के महाकुंभ में नोटा चर्चा में है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कुल पड़े मतों में 0.8 फीसदी वोट नोटा को गया था। लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी नोटा का ग्राफ बढ़ता दिखा। विधानसभा चुनाव 2017 में 757643 मतदाताओं ने नोटा को विकल्प चुना। ऐसे में आपका एक वोट चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है, ऐसे में यह जरूरी है कि आप सोच-समझकर वोट करें।
- 2014 में सबसे ज्यादा मैनपुरी लोकसभा सीट पर मतदाताओं ने नोटा बटन को दबाया था, ये करीब 63 फीसदी था।
- मैनपुरी के उप चुनाव में 66 फीसदी नोटा को वोट मिले थे।
- सबसे कम मथुरा लोस सीट पर नोटा को 18 फीसदी वोट मिले थे।
Nota को लेकर 2014 लोस चुनाव का आंकड़ा
लोकसभा सीट नोटा के मत नोटा% कुल पड़े वोट मतदान%
मैनपुरी 6323 0.63 9.99 लाख 60.45
मैनपुरी उप चुनाव 6623 0.66 10.14 लाख 61.32
एटा 6201 0.67 9.26 लाख 58.72
आगरा 5191 0.48 10.70 लाख 58.99
फीरोजाबाद 4654 0.42 11.04 लाख 67.49
फतेहपुर सीकरी 2677 0.28 9.67 लाख 61.24
मथुरा 1953 0.18 10.76 लाख 64.2
आंकड़ों पर नजर डालें
- पूरे देश में पिछले लोकसभा चुनाव में 1.1 फीसदी मत नोटा पर पड़े
- 0.8 फीसदी मत लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में नोटा पर पड़े
- 0.9 फीसदी मत पिछले उत्तर प्रदेश चुनाव में नोटा पर पड़े
क्यों पड़ी NOTA की जरूरत?
आखिर नोटा की जरूरत पड़ी क्यों? यह भी जानना जरूरी है। नोटा का मलतब- जितने भी प्रत्याशी हैं, उनमें से कोई भी पसंद नहीं है। ईवीएम में पार्टी के प्रत्याशियों को खारिज करने का यह अधिकार मतदाताओं को 2013 में मिला। भारत अपने मतदातों को नोटा का विकल्प देने वाला विश्व का 14वां देश है। ईवीएम को जब आप देखेंगे तो सबसे नीचे 'गुलाबी रंग' का बटन नोटा का है। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी, ताकि पार्टियां अच्छे प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारें। चुनाव आयोग भी यह स्पष्ट रूप से कह चुका है कि नोटा के मतों को गिना तो जाएगा, लेकिन इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। यानी नोटा का बटन दबाना वोट न देने के बराबर है।