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Loksabha Election 2019: स्टारडम की चकाचौंध में नहीं फंसा लखनऊ, दिग्गजों के महामुकाबले का रहा साक्षी

उत्तर प्रदेश का भारतीय राजनीति में स्थान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना अंगूठी में नगीने का होता है और इस नगीने को चमक देने का काम किया है अवध ने। जहां प्रदेश की राजधानी लखनऊ दिग्गजों के महामुकाबले का साक्षी रहा है और यहां आज भी भाजपा की छाप बरकरार है।

लखनऊ, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है और इसी के साथ दिल्ली दरबार के लिए कुर्सी की जंग भी छिड़ चुकी है। कहते हैं कि सियासत की इस लड़ाई में दिल्ली तक पहुंचने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। इतिहास के पन्ने पलटकर देखें जाए, तो उत्तर प्रदेश का दिल्ली कनेक्शन कितना गहरा है, इसे आसानी से समझा जा सकेगा। पिछले चुनाव यानी कि 2014 में भाजपा का विजय रथ उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीटें जीतकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ था। जिसमें 71 सीटें भाजपा अकेले अपने दम पर जीती थी, जबकि दो पर सहयोगी अपना दल ने जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश का भारतीय राजनीति में स्थान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना अंगूठी में नगीने का होता है और इस नगीने को चमक देने का काम किया है अवध ने। जहां प्रदेश की राजधानी लखनऊ दिग्गजों के महामुकाबले का साक्षी रहा है और यहां आज भी भाजपा की छाप बरकरार है।

1991 से BJP का लखनऊ सीट पर कब्जा

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से लखनऊ भाजपा का गढ़ रहा है। राजनीति के आजातशत्रु कहने जाने वाले अटल जी की पहचान रही लखनऊ संसदीय सीट पर आज भी भाजपा का बोलबाला है। यह सीट इस लिहाज से भी खास है, क्योंकि इसे अटल जी की कर्मभूमि भी कहा जाता है और अगर अतीत में जाएं तो 1991 से भाजपा ने इस सीट को अपने कब्जे में ले रखा है।

वर्तमान में गृहमंत्री राजनाथ सिंह हैं लखनऊ से सांसद

वर्तमान में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ सीट से सांसद हैं और 2019 का चुनाव भी उनका यहीं से लड़ना तय माना जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं प्रो.रीता बहुगुणा जोशी को भारी मतों से इस सीट से हराया था। राजनाथ सिंह ने 5,61,106 वोट हासिल कर जीत का स्वाद चखा था, जबकि रीता बहुगुणा जोशी 2,88,357 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं थीं। हालांकि विधानसभा चुनाव में रीता बहुगुणा जोशी ने भाजपा का दामन थाम लिया और वर्तमान में वे योगी सरकार में वे कैबिनेट मंत्री हैं, जिन्हें महिला और बाल कल्याण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

इन्होंने ने भी लखनऊ से की जोर-आजमाइश, हुए नाकाम

जिस तरह रायबरेली और अमेठी से गांधी परिवार का पुराना और गहरा नाता है। उसी तरह भाजपा का लखनऊ से अटूट बंधन रहा है। यहीं कारण है कि बड़े-बड़े धुरनधर भी भाजपा के सामने यहां टिक नहीं सके। फिल्मी दुनिया के चमकते सितारे भी यहां पर जोर आजमाइश करते दिखे, लेकिन लखनऊ स्टारडम में भी नहीं फंसा।

उमराव जान जैसी यादगार फिल्म बनाने वाले फिल्म निदेशक पद्म श्री  मुजफ्फर अली हो या बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता राज बब्बर या फिर मिस इंडिया नफीसा अली। लखनऊ ने किसी भी सेलिब्रिटी कैंडिडेट को भाव ही नहीं दिया। यहां तक की जाने-मानें वकील राम जेठमलानी और दिग्गज राजनेता डॉ.कर्ण सिंह को भी इस शहर ने उल्टे पांव लौटा दिया। डॉ.कर्ण सिंह को तो कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी को हराने के लिए कश्मीर से बुलाया था, लेकिन लखनऊ ने अटल को सिर आंखों पर बैठाया। बात अगर 2014 के लोकसभा चुनाव की करें, तो आम आदमी पार्टी ने भी बॉलीवुड अभिनेता जावेद जाफरी पर भरोसा जताया और लखनऊ सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन लखनऊ ने उन्हें भी तवज्जो ने दी और जावेद की जमानत तक जब्त हो गई। राजनाथ सिंह की बंपर जीत हुई और उन्हें पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा।

अतीत के झरोखे से...

लखनऊ संसदीय क्षेत्र के अतीत में जाएं, तो 1991 से भाजपा का इस सीट पर कब्जा रहा है। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सीट को जनता दल के मांधाता सिंह से छीन लिया था। इससे पहले 1989 में भाजपा ने जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लखनऊ से जनता दल के मांधाता सिंह को संयुक्त प्रत्याशी बनाया गया। उनके खिलाफ भारतीय जनसंघ के संस्थापक प्रो.मधोक निर्दलीय लड़े। उन्हें हिंदूवादियों का समर्थन मिला और ऐसा माना जा रहा था कि वे जीत भी जाएंगे। लेकिन इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने एक लाइन का बयान दिया....कि 'मधोक हमारे प्रत्याशी नहीं हैं।' उनका बस ये बयान देना था और पूरा चुनावी रुख पलट गया,  मधोक हार गए।

वाजपेयी लखनऊ संसदीय सीट से लगातार पांच बार सांसद रहे। मगर दो बार इस सीट से उन्होंने हार का स्वाद भी चखा था। 1991 में उन्होंने लखनऊ और विदिशा दोनों जगह से चुनाव लड़ा और जीते। तब उन्होंने लखनऊ सीट को अपने पास रखा। तब से लगातार लखनऊ से लड़े और जीते। साथ ही प्रधानमंत्री भी बने।

दो बार लखनऊ से हारे भी अटल

ऐसा नहीं है कि लखनऊ ने हमेशा भाजपा पर भरोसा दिखाया। अतीत में थोड़ा और पीछे जाएं तो अटल जी दो बार लखनऊ सीट से हार भी चुके हैं। उन्हें 1957 और 1962 का चुनाव हारना पड़ा था। 1957 में भारतीय जनसंघ के बैनर तले चुनावी मैदान में उतरे अटल बिहारी वाजपेयी को कांग्रेस उम्मीदवार पुलिन बिहारी बनर्जी से हराया था। इस चुनाव में पुलिन को जहां 69,519 वोट मिले थे, तो वहीं अटल जी 57,034 मत हासिल कर सके थे।

वहीं, 1962 में भी अटल जी को कांग्रेस उम्मीदवार बीके धवन से हार का सामना करना पड़ा। धवन को 1,16,637 और अटल को 86,620 मत मिले थे।

कभी कांग्रेस का लखनऊ में रहा था बोलबाला

आज जहां भाजपा का परचम लहराया रहा है, वहां कभी कांग्रेस का बोलबाला हुआ करता था। कांग्रेस की शीला कौल 1971, 1980 और 1984 में लखनऊ से सांसद चुनी गईं थीं। हालांकि बीच में 1977 में बीएलडी से हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस की शीला कौल को चुनाव हराकर संसद में पहुंचे थे।

वाजपेयी की विरासत को टंडन ने संभाला

साल 2009 में जब ढलती उम्र के कारण अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति से दूर हुए तो उनकी कर्मभूमि लखनऊ लोकसभा सीट का उत्तराधिकारी भाजपा ने अटल के खास माने जाने वाले लालजी टंडन को बनाया। लालजी टंडन ने यह चुनाव आसानी ने जीता और संसद पहुंचे। 2014 के चुनाव में लालजी टंडन से यह सीट राजनाथ सिंह की झोली में चली गई। इस बार भी राजनाथ सिंह के लखनऊ से चुनाव मैदान में उतरने के आसार हैं।

2014 का रिजल्ट

प्रत्याशी    पार्टी मत
राजनाथ सिंह भाजपा 561106
प्रो.रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस 288357
नकुल दुबे बसपा   64449
अभिषेक मिश्रा सपा 56771
जावेद जाफरी आप 41429

2009 का रिजल्ट

सेलिब्रेटी का चमकता ताज लेकर जब पूर्व मिस इंडिया नफीसा 2009 में लखनऊ से सपा की सीट पर चुनावी मैदान में उतरीं तो उनकी सभाओं में भीड़ तो खूब नजर आई, लेकिन उनको स्टारडम को भाव नहीं मिला और वे चौथे स्थान पर रहीं।

प्रत्याशी  पार्टी   मत
लाल जी टंडन भाजपा 204028
रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस 163127
डॉ. अखिलेश दास बीएसपी 133610
नफीसा अली सपा 61,475

2004 का रिजल्ट

2004 में जाने माने वकील रामजेठमलानी भी निर्दलीय चुनाव लड़कर लखनऊ में राजनीति करने उतरे थे, लेकिन लखनऊ के लोगों ने उनको अटल बिहारी बाजपेयी के मुकाबले तकरीबन पौने तीन लाख वोटों से हराकर वापस दिल्ली भेज दिया था। उनके बाद कभी भी राजनीति क्षेत्र में कदम रखने के लिए जेठमलानी लखनऊ नहीं लौटे।

प्रत्याशी पार्टी  मत
अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा 3,24,714
डॉ. मधु गुप्ता सपा  1,06,339
रामजेठमलानी निर्दलीय 57,685
नासिल अली सिद्दीकी बीएसपी 53,566

1999 का रिजल्ट

कश्मीर के राजशाही घराने से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता डॉ.कर्ण सिंह ने भी 1999 में लखनऊ में अपना दमखम दिखाने की सोची, लेकिन उनको भी मुंह की खानी पड़ी।

प्रत्याशी                 पार्टी                मत
अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा  3,62,709
डॉ. कर्ण सिंह कांग्रेस 2,39,085
भगवती सपा 78,826

1998 का रिजल्ट

मशूहर फिल्म निदेशक मुजफ्फर अली 1998 में समाजवादी पार्टी के झंडे से तले चुनाव लड़ने उतरे, लेकिन अटल के मुकाबले दो लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

प्रत्याशी              पार्टी              मत
अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा 4,31,738
मुज्जफर अली सपा 2,15,475
डॉ. दाऊजी गुप्ता बीएसपी 56,887
रंजीत सिंह कांग्रेस  38,636

1996 चुनाव रिजल्ट

वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर 1996 में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने आए थे, तब वे स्टारडम की दुनिया में टॉप पर छाए हुए थे। लेकिन लखनऊ ने जनता ने वाजपेयी के प्रति अपना प्यार बनाए रखा और राजबब्बर सवा लाख वोटों से हार गए।

प्रत्याशी    पार्टी                मत
अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा  3,94,865
राजबब्बर सपा 2,76,194
वेद प्रकाश ग्रोवर बीएसपी 42,993
लखनऊ के अबतक के सांसद
  1. राजनाथ सिंह 2014 से अब तक
  2. लालजी टंडन 2009-2014
  3. अटल बिहारी वाजपेयी 1991-2009
  4. मांधाता सिंह 1989-91
  5. शीला कौल 1984-89
  6. शीला कौल 1980-84
  7. हेमवती नंनद बहुगुणा 1977-80
  8. शीला कौल 1971-77
  9. आनंद नारायण मुल्ला 1967-71
  10. बीके धवन 1962-67
  11. पुलिन बिहारी बैनर्जी 1957-62
  12. सरोजनी नायडू 1952-57
  13. विजय लक्ष्मी पंडित 1951
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