लखनऊ, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होना है। पहले चरण में पश्चिमी यूपी की आठ लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी। बीते चुनाव में विरोधी दलों का सूपड़ा साफ करने वाली भाजपा के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं दिख रहा है। विश्लेषकों की माने तो भाजपा उम्मीदवारों को कई सीटों पर सपा-बसपा प्रत्याशी की तरफ से कड़ी टक्कर मिल सकती है। वहीं बात अगर पश्चिमी यूपी की हो तो ये लड़ाई और भी दिलसच्प हो जाती है। दरअसल, यहां सपा-बसपा के साथ राष्ट्रीय लोक दल ने भी हाथ मिलाया है। रालोद का यूपी के इस हिस्से में खासा असर है। बहरहाल, ऐसे में चुनावी मुकाबले में एक-एक वोट की अहमियत बढ़ जाती है। लिहाजा, चुनावी अखाड़े में उतरे उम्मीदवारों की टेंशन नोटा और बढ़ा सकता है।


दरअसल, बीते लोकसभा चुनाव में पहले चरण की जिन सीटों पर मतदान हुआ था, वहां के मतदाताओं ने नोटा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया था। यही वजह है कि नोटा ने सभी दलों के प्रत्याशियों चिंताओं को बढ़ा दिया है। साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी इन आठ लोकसभा सीटों के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर भी मतदाताओं ने नोटा पर खुलकर बटन दबाया था। इनमें सबसे ज्यादा गाजियाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर सबसे ज्यादा नोटा पर बटन दबाए गए थे। यहां की जनता ने नोटा में सबसे ज्यादा 8256 मत मिले थे।


बतादें कि हाल ही में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में नोटा ने प्रत्याशियों की हार-जीत में अहम भूमिका निभाई थी। दरअसल, एमपी की कई सीटों पर नेताओं को हार का सामना इसलिए करना पड़ा था क्योंकि उनकी जीत के अंतर से ज्यादा लोगों ने नोटा पर अपना भरोसा दिखाया था।


2014 लोस चुनाव में पहली बार इस्तेमाल हुआ NOTA
सबसे पहले आपको ये बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 में पहली बार नोटा (उपरोक्त में कोई नहीं) को शामिल किया गया था। इस बार फिर लोकतंत्र के महाकुंभ में नोटा चर्चा में हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कुल पड़े मतों में 0.8 फीसद वोट नोटा को गया था। लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी नोटा का ग्राफ बढ़ता दिखा। विधानसभा चुनाव 2017 में 757643 मतदाताओं ने नोटा को विकल्प चुना। आपका एक वोट चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है, ऐसे में यह जरूरी है कि आप सोच-समझकर वोट करें।