लखनऊ, एबीपी गंगा। राजनीति के अखाड़े में रिश्तों की महाभारत का चक्रव्यूह रच चुका है। द्वापर युग की महाभारत की तरह ही कलयुग की सियासी महाभारत में भी अपने-अपनों के खिलाफ खड़े हैं। किरदार भले ही बदल गए, लेकिन महाभारत युद्ध की कटु सच्चाई आज भी राजनीतिक गद्दी की जंग में नजर आती है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक मंच पर रिश्तों की महाभारत देखने को मिल रही है। जहां चाचा-भतीजे, मां-बेटी, भाभी-देवर, बाप-बेटे एक-दूसरे को सत्ता की रेस में पछाड़ने में जुटे हैं।
राजनीतिक मंच पर रिश्तों की जंग
चाचा-भतीजे की जंग, अधर में मुलायम
सैफई परिवार की सियासी जंग किसी से भी छिपी नहीं है। समाजवादी कुनबे की कलह का नतीजा ही कहेंगे कि पिछले विधानसभा चुनाव में सपा को बिखराव का खामियाजा भुगतना पड़ा। चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव एक-दूसरे को चुनौती दिए सियासी अखाड़े में खड़े हैं। जिस समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव ने खड़ा किया, वहीं नेताजी अब बैकफुट पर नजर आ रहे हैं, जबकि फ्रंट में बेटे अखिलेश खड़े हैं। वहीं, कभी सपा में दूसरा सबसे बड़ा कद रखने वाले शिवपाल यादव ने ‘साइकिल’ की सवारी छोड़, सत्ता हासिल करने के लिए ‘चाभी’ पर दांव चला है। और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाकर अखिलेश को चुनौती देने मैदान में उतर पड़े हैं।
इतना ही नहीं, नेताजी के साथ हर मोड़ में खड़े रहने वाले शिवपाल यादव पहली बार अपने बड़े भाई मुलायम सिंह के नामांकन के प्रस्तावक नहीं बने हैं। इतना ही नहीं, मुलायम के नामांकन दाखिल करने के दौरान भी वे नजर नहीं आए। ये पहला मौका है, जब सपा दो खेमों में बंटकर लोकसभा चुनाव के दंगल में उतरी है। फीरोजाबाद में तो शिवपाल यादव अपने भतीजे और रामगोपाल वर्मा के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। परिवार की इस जंग पर हर किसी की निगाहें टिकीं हैं।
मां कृष्णा और बेटी अनुप्रिया के बीच जंग
सैफई परिवार की तरह ही अपना दल के परिवार की खींचतान भी जगजाहिर है। डॉ.सोनेलाल पटेल ने अपना दल की नींव रखीं और उनके निधन के साथ पार्टी की कमान पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाली। सहयोग में बेटी अनुप्रिया पटेल खड़ीं रहीं। 2012 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया वाराणसी की रोहनिया सीट से लड़ीं और जीतीं।
2014 में बीजेपी के साथ मिलकर अपना दल चुनावी मैदान में उतरी। अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर सीट से लड़ीं और संसद पहुंची। जिस कारण रोहनिया विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। ऐसा कहा जाता है कि रोहनिया सीट पर हुए उपचुनाव में टिकट को लेकर मां-बेटी की जंग शुरू हुई। विवाद इतना बढ़ गया कि कृष्णा पटेल ने अनुप्रिया पटेल को समर्थकों संग पार्टी से बाहर निकाल दिया। इसी के साथ अपना दल दो खेमों में बंट गई। एक मां की पार्टी ‘अपना दल (कृष्णा)’ और दूसरी बेटी की पार्टी ‘अपना दल (सोनेलाल)।
2019 के रण में परिवार की रार और गहरी हो गई। हाल ही में अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अपना दल (कृष्णा) पर बैन लगाने की मांग की है।
इसके अलावा अब अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल की भी राजनीतिक में एंट्री हो चुकी है। 2019 के चुनाव में एक बार फिर अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है, जबकि कृष्णा पटेल कांग्रेस के साथ खड़ी हैं। उधर, बहन पल्लवी पटेल के पति पंकज निरंजन को कांग्रेस ने फूलपुर संसदीय सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। तो गोंडा सीट से मां कृष्णा पटेल चुनावी मैदान में हैं। इस जंग का परिणाम क्या होगा...ये तो चुनावी नतीजे बताएंगे।
गांधी परिवार, दो बहुएं और भतीजा
कलयुग में अपने हुए पराए की इस जंग से गांधी परिवार की दो बहुएं भी अछूती नहीं है। गांधी परिवार की बड़ी बहू और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से चुनावी मैदान में है, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी (वायनाड से भी लड़ रहे) से चुनाव लड़ रहे हैं। जहां इस बार सुल्तानपुर सीट से गांधी परिवार की छोटी बहू और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी चुनावी मैदान में हैं, जबकि बेटा वरुण गांधी अपनी मां की विरासत सीट पीलीभीत से एक बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं।
2019 के महासंग्राम में मेनका गांधी ने क्या भतीजे राहुल गांधी और क्या भतीजी प्रियंका गांधी...किसी को भी नहीं बख्शा है। मेनका ने यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी कितनी भी कोशिश कर लें, वो कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं। तो प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में आने पर मेनका ने कहा कि उनका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
ऐसा नहीं है कि गांधी परिवार की रार पहली बार देखने को मिली है। इससे पहले 1984 के चुनाव में मेनका गांधी अमेठी सीट से अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय लड़ीं थीं। तब भी मेनका ने तीखे तीर चलाए थे। हालांकि, इसके बावजूद वो ये चुनाव जीत नहीं सकीं थीं।
एक-दूसरे के खिलाफ भाभी और देवर
सत्ता की इस जंग ने भाभी और देवर को भी एक-दूसरे के खिलाफ लाकर खड़ा कर दिया है। मंजरी राही को कांग्रेस ने मिश्रिख लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि उनके देवर सुरेश राही सीतापुर के हरगांव क्षेत्र से बीजेपी के विधायक हैं। परिवार एक और पार्टी अलग-अलग...ऐसे में पार्टी की तरफ वफादारी निभाते हुए सुरेश राही ने भाभी मंजरी राही के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
बाप-बेटे में टकराव
ऐसा ही टकराव बीजेपी एमएलसी और पूर्व मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह और उनके बेटे डॉ.अरविंद सिंह के बीच भी देखने को मिल रहा है। अरविंद को कांग्रेस ने गौतम बुद्धनगर से अपना प्रत्याशी बनाया है। इसे पिता जयवीर ने कांग्रेस की साजिश करार दिया है। बता दें कि बीएसपी में मंत्री रहे जयवीर सिंह ने एमएलसी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें दोबारा वान परिषद भेजा। अब पिता बीजेपी में है और बेटा कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।
पहले भी अपने हुए पराए
- कल्याण सरकार में कृषि मंत्री रहे दिवाकर विक्रम सिंह को 2002 के चुनाव में उनके ही बेटे आदित्य विक्रम सिंह ने हराया था।
- 2017 के विधानसभा चुनाव में अमेठी में गरिमा सिंह ने अमीता सिंह को चुनाव में परास्त किया था। बता दें कि गरिमा सिंह कांग्रेस सासंद व पूर्व मंत्री डॉ.संजय सिंह की पहली पत्नी हैं, जबकि अमीता सिंह दूसरी पत्नी हैं।