देहरादून, एबीपी गंगा। टिहरी लोकसभा की सियासी पृष्ठभूमि इस बात की गवाह है कि यहां राजपरिवार का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोलता रहा है। हालांकि जब कभी देश में किसी भी तरह के परिवर्तन की क्रांति का आगाज हुआ तब कई बार दिग्गजों ने शाही परिवार को शिकस्त भी दी है। ये जादू उतरता, लेकिन फिर चढ़ जाता। इस सीट पर हुए 10 आम चुनाव और एक उप चुनाव में राजपरिवार से ही सांसद चुने गए। यही वजह है कि इस सीट को राजपरिवार की सियासी जागीरदारी यूं ही नहीं माना जाता है।


दरअसल, पहले आम चुनाव में राजपरिवार की महारानी कमलेंदुमति शाह हों या फिर कांग्रेस और भाजपा के टिकट से सांसद बनें महाराजा मानवेंद्र शाह। टिहरी के मतदाताओं ने राज परिवार पर ही अधिक भरोसा किया। आज भी इस सीट पर राजपरिवार की महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह सांसद हैं। 1952 के बाद सबसे पहले यह सीट भारतीय लोकदल के त्रेपन सिंह नेगी ने राजपरिवार से छीनी। इसके बाद शिकस्त तो राज परिवार को कई बार मिली, लेकिन टिहरी सीट पर दबदबा राजपरिवार का ही रहा। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही टिहरी राजपरिवार की इज्जत भी दांव पर लगी है। पार्टी ने फिर से माला राज्यलक्ष्मी शाह पर दांव लगाया है।


इस बार दिलचस्प है मुकाबला
राज्य की अन्य सीटों की तरह यहां भी मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस के बीच है। माला राज्यलक्ष्मी शाह के मुकाबले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह मैदान में हैं।


भौगोलिक स्वरूप
पचास के दशक में टिहरी लोकसभा सीट में बिजनौर के उत्तरी क्षेत्र के हिस्से तक शामिल थे, लेकिन बाद में बदलाव किया गया। आज टिहरी सीट का बड़ा भूभाग पर्वतीय है। मतदाताओं की संख्या के लिहाज से इसका मैदानी क्षेत्र अधिक महत्वपूर्ण है। मैदान और पहाड़ के मिश्रित भूगोल वाली इस सीट पर अब तक हुए अधिकांश चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ही चिर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। जेपी आंदोलन, राम मंदिर और अन्य राष्ट्रीय घटनाओं के प्रभाव से ये सीट भी अछूती नहीं रही। ऐसे मौकों पर मतदाता लहर के साथ चले।


टिहरी लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा सीटें
टिहरी, घनसाली, प्रताप नगर, धनौल्टी, पुरोला, यमुनोत्री, गंगोत्री, चकराता, विकासनगर, सहसपुर, रायपुर, राजपुर रोड, देहरादून कैंट, मसूरी विधानसक्षा के क्षेत्र आते है। यह सीट तीन जनपदों उत्तरकाशी, टिहरी और देहरादून तक फैली है।


जातीय समीकरण (प्रतिशत में)
ठाकुर 45
ब्राह्मण 30
एसी व एसटी 17
अल्पसंख्यक व अन्य 08


टिहरी संसदीय क्षेत्र के मुख्य मुद्दे और जनसमस्याएं
इस लोकसभा सीट में टिहरी, उत्तरकाशी जिलों के अलावा देहरादून जनपद की सात विधानसभा सीटें आती है। पर्वतीय क्षेत्र टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून की चकराता विधानसभा क्षेत्र में एक जैसी समस्याएं हैं। किसानों को खेतों से फसल उठाकर मंडी तक ले जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सरकार की तरफ से मार्केटिंग की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण आधा कृषि उत्पाद खेतों में ही सड़ जाता है और किसान को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। इसके चलते किसान की खेती की लागत निकलना भी मुश्किल हो रहा है। सड़कों की हालत इतनी खराब है कि खतरनाक मोड़ के पास हर पखवाड़े कोई बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। वहीं, बरसात में दैवीय आपदा आने से हर वर्ष जान माल का भरी नुकसान झेलना पड़ता है।


पहाड़ों की रानी कही जाने वाली मसूरी विधानसभा भी इसी लोकसभा में है, सालों से यहां पेयजल की किल्ल्त बनी हुई है। राजधानी देहरादून को स्मार्ट सिटी घोषित होने के बावजूद यहां काम शुरू ना होने को लेकर लोगों में नाराजगी भी है। टिहरी में विश्वस्तरीय झील अभी तक विश्व पर्यटन के नक्शे पर नहीं आ सकी, जबकि यहां पर हजारों युवाओ को रोजगार मिल सकता है।