बरेली, एबीपी गंगा। पांच साल बाद फिर से लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने का मौका देश की जनता को मिलने जा रहा है। ऐसे में जनता को ऐसे प्रत्यासी को चुनना होगा जो विकास पुरुष हो। बात करें बरेली संसदीय सीट की, तो बरेली में संतोष गंगवार बीजेपी के सांसद हैं। वे यहां से सात बार सांसद रह चुके हैं, लेकिन बरेली अभी भी एक दो नहीं बल्कि कई बड़ी समस्याओं से घिरा हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कानून व्यवस्था, सांप्रदायिक विवाद, सीवेज, पानी, जाम, पार्किंग, गंदगी आदि बरेली की प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं।


शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता बरेली


यूं तो बरेली को एजुकेशनल हब कहा जाता है। यहां पर तीन निजी मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें राजश्री, एसआरएमएस और रुहेलखंड शामिल हैं। इसके अलावा गंगाशील आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी है, लेकिन कोई भी सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं है। बरेली में करीब दो दर्जन मैनेजमेंट एंड इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। 2894 बेसिक स्कूल, 416  माध्यमिक विद्यालय, 52 सीबीएसई, 7 आईसीएससी स्कूल हैं।


बरेली की आबादी करीब 45 लाख है, लेकिन यहां पर शिक्षा के लिए कोई खास इंतजाम नहीं हैं। यहां स्थित महात्मा गांधी ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय को लंबे समय से केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग की जाती रही है। इसके आलावा बरेली कॉलेज को विश्वविद्यालय या डीम्ड यूनिवर्सिटी बनाने की मांग भी की जाती रही है, लेकिन कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। लड़कों के लिए कोई सरकारी कॉलेज नहीं होना ये भी बड़ी समस्या है। इकलौता बरेली कॉलेज है, जिसमें छात्र और छात्राएं दोनों पढ़ते हैं। हर साल स्नातक , परास्नातक में एडमिशन के लिए मारामारी होती है और मजबूरी में विद्यार्थिओं को निजी कॉलेजों में एडमिशन लेना पड़ता है। इतना ही नहीं सुभाष नगर, सीबीगंज में लंबे अरसे से लड़कियों के लिए डिग्री कॉलेज खोले जाने की मांग की जाती रही है।


बरेली कॉलेज के लॉ विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रदीप ने बताया की बरेली में सबसे बड़ी समस्या क्वालिटी एजुकेशन की है। जिसकी समय-समय पर समीक्षा होती रहनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसके आलावा विद्यार्थी केवल एग्जाम देने आते हैं, जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही, बरेली कॉलेज और रुहेलखंड विश्वविद्यालय लंबे समय से घोटाले की वजह से सुर्खियों में रहा है, जिससे काफी छवि धूमिल हुई है।


बरेली में एम्स की मांग


बरेली को शिक्षा के साथ-साथ मेडिकल हब भी कहा जाता है। बरेली में 343 निजी अस्पातल है, जबकि 15 CHC, 18 अर्बन हेल्थ पोस्ट है। एक जिला अस्पताल और एक जिला महिला अस्पताल भी है। इतना ही नहीं, बरेली में मानसिक चिकित्सालय भी है, लेकिन देश और प्रदेश की राजधानी के बीच बसे बरेली में लंबे समय से एम्स की मांग हो रही है। चुनाव के वक्त तो नेता बड़े-बड़े वायदे करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वो भूल जाते है। हालांकि, बरेली में तीन निजी मेडिकल कॉलेज हैं।


आधा दर्जन से अधिक बड़ी फैक्ट्रिया बंद, 10 हजार से अधिक कर्मचारियों की छीनी नौकरी


सुरमे-मांझे के लिए प्रसिद्ध बरेली को एक जमाने में औद्योगिक नगरी कहा जाता था। बरेली में सिंथेटिक एंड केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड (रबड़ फैक्ट्री) के बंद होने से यहां के कर्मचारियों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। यहां काम करने वाले करीब 2000 कर्मचारियों में से एक दर्जन कर्मचारियों ने तो आत्महत्या कर ली, जबकि कई परिवार भूख और गरीबी के कारण इस दुनिया से चल बसे।


नेकपुर चीनी मिल उत्तर प्रदेश राज्य निगम की मिल थी, जिसमें करीब 1000  कर्मचारी काम करते थे, लेकिन मायावती के शासन में फैक्ट्री के बंद हो जाने से एक बार फिर कर्मचारियों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।


इंडियन टरपेन टाइन एंड रोजिन कंपनी में भी करीब 700  कर्मचारी काम करते थे, लेकिन वो भी बंद हो गई। इसके आलावा बहेड़ी कटाई मिल जिसमें करीब 1200 कर्मचारी काम करते थे, वो भी बंद हो गई। देश भर में बरेली की पहचान माचिस फैक्ट्री विमको से होती थी, लेकिन दो साल पहले ये फैक्ट्री भी बंद हो गई। इसके आलावा छोटे बड़े करीब 100 उद्योग बंद हो गए। इस तरह से करीब 10  हजार कर्मचारियों से रोजगार छीन गया और लोग सड़क पर आ गए। इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई छूट गई, तो कई लड़कियों की शादियां भी नहीं हो पाई। पिछले 35 सालों से लोगों ने संतोष गंगवार को ही अपना सांसद देखा, लेकिन इनके कार्यकाल में ही कई फैक्ट्रियां बंद होती चली गई, लेकिन सांसद और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया।


सीवेज बनी बड़ी समस्या


बरेली में सीवर लाइन एक बड़ी समस्या है। सीवर लाइन बरेली के महज आधे से भी कम हिस्से में है, लेकिन वो भी जर्जर हो चुकी है। इसके बावजूद विधायक, सांसद, मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष, पार्षद और अफसर किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। जगह-जगह चोक सीवर यहां की पहचान हो गई है। बरेली की सभी पांच सीटों पर बीजेपी के ही विधायक हैं, दो लोकसभा सीट है जिस पर भी बीजेपी का ही कब्जा है। इसके आलावा मेयर और जिला पंचायत अध्यक्ष भी बीजेपी का ही है। यूपी सरकार में वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल कैंट से विधायक हैं, तो सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह आंवला से विधायक हैं। इसके आलावा बरेली से सांसद संतोष गंगवार केंद्र में श्रम एवं रोजगार मंत्री हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद बरेली विकास में पिछड़ा हुआ है।


गंदगी


जगह-जगह कूड़े के ढेर बरेली की पहचान बन गई है । सड़क के किनारे , बाजारों और पॉस कॉलोनियों में भी जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे मिल जाएंगे। कहने को बरेली स्मार्ट सिटी है, लेकिन यहां गंदगी इस कदर है की लोग परेशान हैं। यहां पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट तो बना, लेकिन वो भी विवादों की वजह से नहीं चल सका।


जाम


बरेली में जाम बहुत बड़ी समस्या है। जाम लगने की मुख्य वजह ये है की शहर में कहीं भी पार्किंग की सुविधा नहीं है। पार्किंग नहीं होने की वजह से लोग सड़कों पर ही वाहन खड़े कर देते है, जिस वजह से जाम लग जाता है।


कानून व्यवस्था


सांप्रदायिक दृष्टि से बरेली अति संवेदनशील जिलों में आता है। बरेली में 2010  में हुए दंगे में करीब एक महीने कर्फ्यू लगा था। दंगे के दौरान सैकड़ों घरों, दुकानों को फूंक दिया गया था। इसके बाद दंगा यहां की पहचान बन गया। 2012  में फिर से दंगा हुआ, जिसमें चार लोगों की हत्या कर दी गई। तब से अब तक हर त्यौहार पर बरेली में तनाव रहता है।


वर्जन


यह चिंता का विषय है कि लोकसभा के चुनाव में भी राष्ट्र स्तर के मुद्दे चर्चा/ बहस से बाहर हैं। यहां हर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े वायुसेना के त्रिशूल एयरबेस को उत्पन्न खतरे से अवगत हैं, परंतु सिकुड़ती (प्रतिबंधित) सुरक्षा परिधि के प्रति निजी स्वार्थों के कारण आंखे मूंदे रहे हैं। रक्षामंत्री रह चुके दिवंगत मनोहर पर्रिकर ने 2016 में त्रिशूल का दौरा किया था, तब बाउन्ड्री वॉल के निकट ऊंचे पेड़ों को काटा गया था, परंतु अतिक्रमण सौ मीटर दूरी की बजाए 8-10 मीटर तक हो चुका है। पठानकोट हमले/बालाकोट स्ट्राइक जैसे अवसरों पर सुरक्षा कड़ी होती है, फिर आदतन ढील! वायुसेना व प्रशासन (बरेली विकास प्राधिकरण सहित) में प्रामाणिक भ्रष्ट व गद्दार अफसर काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं। त्रिशूल से ही सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लान्ट का मुद्दा जुड़ा है, जो बीजेपी की सरकारों के बावजूद बीजेपी के ही महापौर ने निजी स्वार्थ के चलते ठप्प करा ररवा है। प्लॉन्ट ठप्प होने से स्मार्ट सिटी योजना में दर्ज बरेली की स्थिति स्वच्छता अभियान को ठेंगा दिखाते हुए "नारकीय" बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि त्रिशूल की सुरक्षा के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने प्लान्ट  के लिए 12 करोड़ रुपए खर्च किए थे।