जब जनता को चुनाव में भाई नेताओं की सादगी... दिग्गज भी हुए चित
कुछ ऐसे भी प्रत्याशी होते हैं जो बिना संसाधनों और सादगी से ही चुनाव जीत जाते हैं। ऐसा कई बार हुआ है जब प्रत्याशी बिना संसाधन और सादगी, ईमानदारी के साथ चुनावी मैदान में उतरा और जीता भी।
मेरठ, एबीपी गंगा। चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार आमतौर पर सभी हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं। कई नेता तो साम दाम दंड भेद की नीति का इस्तेमाल करने से भी नहीं चुकते हैं। बात चाहे पैसे खर्च करने की हो, या फिर दूसरे लोक-लुभावन तरीकों की। वो सब किया जाता है जिनसे चुनाव जीतने की राह आसान हो सके। हालांकि कुछ ऐसे भी प्रत्याशी होते हैं जो बिना संसाधनों और सादगी से ही चुनाव जीत जाते हैं। ऐसा कई बार हुआ है जब प्रत्याशी बिना संसाधन और सादगी, ईमानदारी के साथ चुनावी मैदान में उतरा और जीता भी।
महाराज सिंह भारती ये किस्सा साल 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान मेरठ सीट का है। कांग्रेस की टिकट पर लगातार तीन बार चुनाव जीतकर शाहनवाज खान चौथे चुनाव में मैदान में थे। जबकि उनके सामने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर महाराज सिंह भारती उतरे थे। केंद्र में मंत्री की भूमिका निभा रहे शाहनवाज खान की गिनती उस समय कद्दावर नेताओं में थी। चुनाव लड़ने के लिए संसाधनों की उनके पास कोई कमी ना थी। जबकि भारती उनके सामने कहीं नहीं ठहरते थे, लेकिन उनके हौसले में कोई कमी ना थी।
अरनावली गांव के भारती ने प्रचार के लिए मेरठ टैक्सी स्टैंड से एक कार किराये पर ली थी और उस पर लाउडस्पीकर बांध दिया था। कभी वो पूरे क्षेत्र में कार से घूमते तो कभी कंधे पर ही लाउडस्पीकर को रखकर निकल पड़ते। जिस चौराहे पर वो खड़े हो जाते वहीं नुक्कड़ सभा लग जाती। मेरठ की जनता को भी भारती की सादगी उन्हें भा गई। चुनाव के बाद नतीजा जो आया वो चौंकाने वाला था। तीन हार के सांसद शाहनवाज चुनाव हार चुके थे, भारती ने उन्हें करीब 40 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
यशपाल सिंह ने भी दिखाया था कमाल पश्चिमी यूपी की एक और सीट कैराना लोकभा में भी कुछ ऐसा हुआ था। कैराना की जनता ने 1962 में जाट नेता यशपाल सिंह को चुनकर संसद भेजा था। उन्होंने कांग्रेस के अजित प्रसाद जैन को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।