Allahabad High Court: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के एक न्यायाधीश एक मेधावी दलित छात्रा की योग्यता से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वयं अपनी जेब से उक्त छात्रा को बतौर फीस 15 हजार रूपये दे दिये. छात्रा गरीबी के कारण समय पर फीस नहीं जमा कर पायी थी जिस कारण वह आईआईटी में दाखिले से वंचित रह गयी थी.
आईआईटी को दिया ये निर्देश
इसके साथ ही अदालत ने ज्वाइंट सीट एलोकेशन अथारिटी और आईआईटी बनारस हिन्दू विश्वविदयालय बीएचयू को भी निर्देश दिया कि इस छात्रा को तीन दिन के भीतर दाखिला दिया जाये और यदि सीट न खाली रह गयी हो तो उसके लिए अलग से सीट की व्यवस्था की जाये.
छात्रा गरीब है
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह सिंह ने सोमवार को छात्रा संस्कृति रंजन की याचिका पर सुनवायी करते हुए पारित किये. छात्रा इतनी गरीब है कि वह अपने लिए एक वकील का भी इंतजाम भी नहीं कर सकी थी. इस पर अदालत के कहने पर अधिवक्तागण सर्वेश दुबे और समता राव ने आगे आकर छात्रा का पक्ष रखने में अदालत का सहयेाग किया.
1469 वीं रैंक आई थी
दरअसल छात्रा दलित है. उसने दसवीं की परीक्षा में 95 प्रतिशत तथा बारहवीं कक्षा में 94 प्रतिशत अंक हासिल किये थे . वह जेईई की परीक्षा में बैठी और उसने मेन्स में 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किये तथा उसे बतौर अनुसूचित जाति श्रेणी में 2062 वां रैंक हासिल हुआ. उसके बाद वह जेईई एडवांस की परीक्षा में शामिल हुई जिसमें वह 15 अक्टूबर 2021 को सफल घोषित की गयी और उसकी रैंक 1469 आयी.
15 हजार की व्यवस्था नहीं कर सकी
इसके पश्चात आईआईटी बीएचयू में उसे गणित एवं कम्पयूटर से जुड़े पंच वर्षीय कोर्स में सीट आवंटित की गयी. किन्तु वह दाखिले की लिए जरूरी 15 हजार की व्यवस्था नहीं कर सकी और समय निकल गया. वह दाखिला नहीं ले पायी. उसने याचिका दाखिल कर मांग की थी कि उसे फीस की व्यवस्था करने के लिए कुछ और समय दे दिया जाये.
पिता बीमार हैं
उसने याचिका में कहा कि उसके पिता के गुर्दे खराब हैं और उसका प्रत्यारोपण होना है. अभी उनका सप्ताह में दो बार डायलेसिस होता है. ऐसे में पिता की बीमारी एवं कोविड की मार के कारण उसके परिवार की आर्थिक हालत बुरी होने के कारण वह समय पर फीस नही जमा कर पायी, जबकि वह प्रारम्भ से ही एक मेधावी छात्रा रही है.
अदालत ने जेब से पैसे दिए
याचिका में कहा गया कि उसने ज्वांइट सीट एलोकेशन अथारिटी को कई बार पत्र लिखा कि उसे थोड़ा और समय दे दिया जाये किन्तु उसके पत्र का उसे कोई जवाब नहीं दिया गया. ऐसे में वह अदालत की शरण में आयी है. यह देखकर कि छात्रा प्रारम्भ से ही मेधावी है और यदि उसे राहत न दी गयी तो उसे बहुत क्षति उठानी पड़ेगी, अदालत ने न केवल संबधित संस्थान को उसे दाखिला देने का आदेश दिया अपितु स्वयं ही अपनी जेब से उक्त छात्रा को 15 हजार रूपये दिये ताकि उसकी पढ़ायी में कोई विघ्न न होने पाये.
ये निर्देश दिया
अदालत ने बीएचयू को भी निर्देश दिया कि जब कोई नियमित सीट खाली हो जाये तो उस पर उसका समायोजन कर लिया जाये अन्यथा उसे अलग से ही सीट बढ़ाकर उसकी पढ़ायी चालू रखी जाये. अदालत ने मामले को अगली सुनवायी के लिए अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का आदेश रजिस्ट्री को दिया है.
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