यूपी: BJP महामंत्री धर्मपाल सैनी के सामने 2024 चुनाव से पहले बड़ी चुनौतियां, क्या अनुभव का मिलेगा फायदा?
उत्तर प्रदेश बीजेपी संगठन में हुए बदलाव के बाद धर्मपाल सैनी को बड़ी जिम्मेदारी मिली है. बड़ी जिम्मेदारी के साथ ही उनके सामने बड़ी चुनौतियां भी हैं.
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UP News: उत्तर प्रदेश बीजेपी (BJP) में संगठन में भले ही बदलाव हो चुके हो लेकिन अब इंतजार महामंत्री संगठन धर्मपाल सैनी (Dharmpal Saini) के लखनऊ (Lucknow) आने का है. सुनील बंसल (Sunil Bansal) उत्तर प्रदेश में 8 साल रहते हुए जिस तरीके से कामयाबी की नई इबारत लिखी थी, उसके बाद आप धर्मपाल सैनी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है और माना जा रहा है कि ये राह इतनी आसान नहीं है.
एबीवीपी में भी रहकर किया है काम
धर्मपाल सैनी को झारखंड की बजाय अब उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई है. धर्मपाल सैनी एक या दो दिन में अपना कार्यभार ग्रहण करेंगे लेकिन माना जा रहा है कि जिस तरह से सुनील बंसल ने आठ वर्षों में उत्तर प्रदेश में जीत की नई इबारत लिखी उस रिकॉर्ड को मेंटेन रखना नए प्रदेश महामंत्री संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी. हालांकि धर्मपाल सैनी उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले हैं. एबीवीपी में पहले उत्तर प्रदेश में पश्चिम क्षेत्र में काम भी किया है और इन अनुभवों का फायदा उन्हें जरूर मिलेगा.
इन चुनौतियों को पार कर पाएंगे सैनी ?
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 80 में 80 सीट जीतने का जो लक्ष्य रखा है. 2014 और 2019 में जब बीजेपी ने यूपी में शानदार सफलता हासिल की थी तब भी 80 सीट जीत पाने का सपना अधूरा रह गया था. वही 2024 तक सरकार के खिलाफ जो एन्टी इनकंबेंसी का माहौल होगा उससे निपटना भी एक बड़ी चुनौती होगी. साथ ही साथ सांसदों के क्षेत्र में लोगों की जो नाराजगी है, उसे कैसे कम करेंगे यह भी काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. वहीं पार्टी के संगठनात्मक विस्तार में जाति और क्षेत्रीय समीकरण के संतुलन को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी. 2022 के विधानसभा चुनाव में ऐसा भी देखने को मिला है कि ओबीसी का एक बड़ा तबका पार्टी से संतुष्ट नहीं है ऐसे में उन्हें अपने साथ कैसे लाएंगे यह भी देखना होगा.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और आरएलडी का गठबंधन और किसानों का लगातार विरोध भी लोकसभा चुनाव में अहम मुद्दा होगा. जब बोर्ड निगम में कार्यकर्ताओं का एडजस्टमेंट किया जाएगा तब कार्यकर्ता असंतुष्ट ना हों यह भी काफी महत्वपूर्ण होगा. इसके अलावा सहयोगी दल भी इससे कहीं नाराज ना हों, यह भी एक बड़ी चुनौती होगी. इन सबके अलावा सबसे बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के बीच सामंजस्य बनाकर रखने की होगी.
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