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Madrasa Survey: मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन बोले- 'दारुल उलूम पर बहस सूरज को दीया दिखाने जैसा'
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में मदरसों का सर्वे कराया गया था जिसमें यह जानकारी मिली थी कि दारुल उलूम देवबंद को यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता नहीं मिली हुई है.
![Madrasa Survey: मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन बोले- 'दारुल उलूम पर बहस सूरज को दीया दिखाने जैसा' lucknow darul uloom deoband does not need recognition from up board says uttar pradesh madrasa education council chairman ann Madrasa Survey: मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन बोले- 'दारुल उलूम पर बहस सूरज को दीया दिखाने जैसा'](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/10/24/a0926e1744e47269eeea95198d28dfdd1666595423450490_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
UP News: उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद (Uttar Pradesh Madrasa Education Council) के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को तंगनजरी से देखना अच्छे संकेत नहीं है. अहमद जावेद ने कहा कि यूपी में मदरसा सर्वे (Madrasa Survey) के मकसद नए मदरसों को लेकर जानकारी प्राप्त करना था जिससे हम वहां पढ़ने वाले बच्चों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर उन्हें देश की मुख्यधारा में लाकर उनका बेहतर विकास कर सकें.
दारुल उलूम पर बहस करना सूरज को दीया दिखाने जैसा - अहमद जावेद
अहमद जावेद ने कहा कि पिछले सात सालों से मदरसा बोर्ड ने किसी मदरसे को मान्यता नहीं दी है. उन्होंने कहा, 'दारुल उलूम देवबंद जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को तंगनज़री से देखना अच्छे संकेत नहीं है. ऐसी संस्थाएं पूरी इस्लामिक दुनिया के लिए एक नजीर हैं. ऐसी संस्था पर बहस करना सूरज को दीया दिखाने जैसा है. दारुल उलूम देवबंद केवल अपनी शिक्षा ही नहीं बल्कि अपनी विचारधारा के लिए दुनिया में जानी जाती है.' दरअसल, सहारनपुर में मदरसों के सर्वे के दौरान यह जानकारी सामने आई थी कि दारुल उलूम देवबंद समेत कई मदरसों को यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता नहीं मिली हुई है.
दारुल उलूम को मान्यता की जरूरत नहीं - अहमद जावेद
डॉ. जावेद ने कहा कि अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविख्यात इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद जो 156 सालों से देश और दुनिया में अपनी शिक्षा और अपनी एक अलग पहचान व विचारधारा के लिए जानी जाती है, ऐसी संस्था को मदरसा बोर्ड से मान्यता लेने की ज़रूरत नहीं है. दारुल उलूम देवबंद जो ख़ुद देश भर में 4500 से ज्य़ादा मदरसों को मान्यता दे चुका हो उनकी निष्ठा और शिक्षा के ऊपर बहस करना सूरज को दीया दिखाने जैसा होगा. गौरतलब है कि 1857 में जब आज़ादी की पहली लड़ाई लड़ी गई और अंग्रेज़ों ने शिक्षा के तमाम केंद्रों को बंद किया उसी के बाद दारुल उलूम देवबंद की स्थापना हुई थी. डॉ. जावेद ने कहा कि इतने बड़े कद के संस्था को जो ख़ुद मान्यता दे कर शिक्षा को बढ़ावा दे रहा हो उसे मदरसा बोर्ड से मान्यता की कोई जरूरत नहीं है.
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