लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में कभी किसानों की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने वाली आरएलडी आज हाशिए पर है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का कभी दबदबा हुआ करता था लेकिन पिछले चार चुनाव में पार्टी की स्थिति बद से बदतर होती गई. हाथरस में जयंत चौधरी पर हुए लाठीचार्ज को लेकर पार्टी ने बड़ा मुद्दा बनाते हुए यूपी में खोई अपनी जमीन को वापस पाने की कवायद शुरू कर दी है.


गिरता चला गया आरएलडी का ग्राफ
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी किसानों के हितों की बात करने वाली आरएलडी की धमक हुआ करती थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आरएलडी के तमाम विधायक जीतकर आते थे और कई सरकारों में मंत्री भी बने. लेकिन, 2014 से आरएलडी का ग्राफ लगातार गिरता चला गया.


क्या कहते हैं आंकड़े
2009 में आरएलडी के उत्तर प्रदेश में 5 सांसद जीत कर आए थे. 2012 में यूपी के विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी और विधान परिषद में भी उनका एक सदस्य हुआ करता था. लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का सिर्फ एक विधायक ही जीत हासिल कर पाया. हालांकि, बाद में उसने भी पार्टी छोड़ दी थी. विधान परिषद में आरएलडी का कोई भी सदस्य नहीं था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी आरएलडी लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई.


जाट समुदाय के लोग हैं नाराज
हाथरस में जिस तरीके से जयंत चौधरी पर पुलिस ने लाठी चलाई अब उसे लेकर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय के लोग नाराज हैं. उनकी सहानुभूति आरएलडी और जयंत चौधरी के साथ नजर आ रही है और यही वजह है कि राजनीतिक विश्लेषक भी ये मानते हैं कि हाथरस की घटना ने आरएलडी को उत्तर प्रदेश में खुद को खड़ा करने के लिए ऑक्सीजन देने का काम किया है.


आज भी मजबूत है आरएलडी
मुजफ्फरनगर में आरएलडी ने महापंचायत बुलाई और उसे किसान महापंचायत का नाम दिया गया. केंद्र सरकार के कृषि कानून के विरोध में तमाम पार्टियों के सांसदों और नेताओं को इकट्ठा किया. लेकिन, इसके पीछे मकसद ये दिखाना था कि आरएलडी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी मजबूत है और अगर उसके नेता पर कोई लाठी चलाएगा तो लोग उसके साथ खड़े रहेंगे.


किसानों का आरएलडी से मोह भंग हो चुका है
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले यूपी सरकार के मंत्री बलदेव सिंह हलक का कहना है कि दरअसल, आरएलडी ने इस महापंचायत को जो नाम दिया है वो ठीक नहीं है क्योंकि ये आरएलडी की रैली है जाटों की रैली नहीं. जाट आज भी बीजेपी के साथ हैं. आरएलडी इससे पहले भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुकी है. लेकिन न उसका एक विधायक जीता, न ही सांसद. अब किसानों का भी आरएलडी से मोह भंग हो चुका है.


जनता के संदेश देना चाहती है आरएलडी
चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है. उनकी सियासत उनके बेटे अजीत सिंह ने संभाली. केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन दल-बदल की अपनी आदत के चलते आरएलडी की ऐसी स्थिति हुई कि आज किसानों का भी मोह आरएलडी से भंग हो चुका है. अजीत सिंह की विरासत को अब जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. ऐसे में जब 2022 के चुनाव करीब हैं, आरएलडी इस फिराक में है कि कम से कम इस मुद्दे के सहारे ही जनता के बीच ये संदेश दिया जाए कि आरएलडी आज भी कमजोर नहीं हुई है.



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