UP Politics: लखनऊ में सफाई के ठेकों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के पार्षद ही आपस में भिड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. पार्षदों का एक गुट चाहता है कि कूड़ा प्रबंधन का काम निजी कंपनियों को दिया जाए. जबकि नालियों और सड़कों की साफ सफाई का काम पहले की तरह ही ठेकेदारों को दिया जाए. वहीं एक गुट ऐसा है जो सफाई के सारे कामों को बड़ी कंपनियों को दिए जाने के पक्ष में दिखाई दे रहा है. मेयर सुषमा खर्कवाल भी बड़ी कंपनियों को ठेके देने के पक्ष में हैं..
सफाई व्यवस्था को लेकर पिछले कई दिनों से पार्षदों के बीच तनातनी देखने को मिल रही है. जिसे देखते हुए महापौर ने रविवार को बीजेपी पार्षदों की बैठक बुलाई थी इस बैठक में पार्षदों ने सफाई के मुद्दे को उठाया लेकिन, महापौर ने कहा कि इस तरह मुद्दे को भटकाने की कोशिश न की जाए और तैयारियों पर बात हो. जिसके बाद बैठक में ज़बरदस्त हंगामा होने लगा. बात इतनी बढ़ी कि महापौर सुषमा खर्कवाल अपनी सीट से जाने लगी. हालांकि बाद में दूसरे पार्षदों ने मामले को संभाला.
बीजेपी पार्षदों में दिखी गुटबाजी
पार्षदों ने नगर निगम का नया दफ्तर बनाने की मांग पर कहा कि शहर के विकास के बजट से बिल्डिंग का निर्माण कराना ठीक नहीं होगा. इसलिए शासन से इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान कराना चाहिए. वहीं पार्षद नागेंद्र सिंह ने सफाई का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अगर सड़कों और नालियों के निर्माण और सफाई नहीं होगी तो चुनाव में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
इससे पहले 22 अगस्त को भी इसी तरह की एक बैठक हुई थी, जिसमें सफाई के ठेकों को लेकर महापौर को घेरने की कोशिश की गई थी. इस दौरान बीजेपी के पार्षदों व पार्षद पतियों ने सफाई का काम निजी कंपनियों को देने पर आपत्ति जताई थी. इस पर बीजेपी दल के उपनेता सुशील तिवारी ने नगर आयुक्त को पत्र लिखा और पूछा कि किस के आदेश पर सभागार का आवंटन किया गया था. इस चिट्टी में पार्षद पतियों और पार्षद बेटों को बाहरी बताया गया था.
इसके जवाब में सरोजिनीनगर के पार्षद राम नरेश रावत ने भी पत्र लिखा और सुशील तिवारी पर निशाना साधते हुए उनके उपनेता पद पर सवाल उठाए और पूछा कि नगर निगम के किस अधिनियम में उपनेता पद का जिक्र है.
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