Lucknow News: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की सियासत में हाशिए पर जा चुकी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने एक बार फिर से मुसलमानों पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है. चुनावी माहौल में मुसलमानों के मुद्दों को लेकर मायावती मुखर हैं और अपना खोया हुआ मुस्लिम वोट बैंक वापस पाने के लिए न सिर्फ बीजेपी और सपा पर निशाना साध रही हैं बल्कि मुसलमान नेताओं को पार्टी में शामिल करा रही हैं.
मुसलमान वोट बैंक मायावती के कोर वोट बैंक का हिस्सा रहा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने 99 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे, जबकि 2022 में 60 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिए थे. चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिलने पर उनके मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी में चला गया तो छोटा सा हिस्सा बीजेपी के खाते में भी आया. अभी भी मुसलमानों का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ ज्यादा है.
जाहिर है अगर मायावती मुस्लिम वोटर को अपनी तरफ खींचेंगी तो सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी का ही होगा. जिस तरह से समाजवादी पार्टी की राजनीति एमवाई फैक्टर पर आधारित है उसी तरह मायावती फिर से एमडी यानि मुस्लिम दलित सेक्टर बनाने की कोशिश कर रही हैं.
मुस्लिम नेताओं को पार्टी से जोड़ने में जुटी
यही वजह है वो मुस्लिम नेताओं को पार्टी से जोड़ने में जुट गई हैं. मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समाज के बड़े चेहरे इमरान मसूद को समाजवादी पार्टी से बसपा में शामिल कराया. एआईएमआईएम के गोरखपुर अध्यक्ष इरफान मलिक भी बसपाई हो चुके हैं. हाल ही में मलिहाबाद नगर पंचायत की चेयरपर्सन अस्तम आरा खां ने सपा का दामन छोड़कर बसपा का हाथ थामा था. अस्तम आरा समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक मरहूम अजीज हसन खां की पत्नी हैं. अब माफिया अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता भी एआईएमआईएम छोड़कर बसपा से जोड़ने की तैयारी कर रही हैं.
मायावती आज राजनीति के ऐसे मुकाम पर हैं जहां उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन अगर यूपी के करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी करने में वो कामयाब हो जाती हैं तो खुद को बारगेन करने वाली स्थिति में ला सकती हैं. 2024 के लिए जिस तरह से बीजेपी को हटाने के लिए संयुक्त विपक्ष का ताना-बाना तैयार हो रहा है, मायावती न सिर्फ उसमें शामिल होने बल्कि सीट शेयरिंग के लिए खुद को तैयार कर रही हैं. दरअसल, मुस्लिम वोट बैंक का सीट शेयरिंग से सीधा संबंध है. मायावती का प्रयास है कि कुछ सीटों पर प्रभाव दिखाकर वो संयुक्त विपक्ष का हिस्सा बन सकें.
यही वजह है मायावती ने बीजेपी के पसमांदा सम्मेलन को लेकर भाजपा और आरएसएस पर हमला किया. उन्होंने ट्वीट करके कहा कि ये भाजपा और आरएसएस का नया शिगूफा है. मुस्लिम समाज के प्रति इनकी सोच, नियत, नीति क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है. रामपुर और मैनपुरी उपचुनाव के परिणाम पर भी सवाल उठाते हुए मायावती ने ट्वीट किया और इसे सपा और भाजपा की मिलीभगत का परिणाम बताया. अपने ट्वीट में मायावती ने मुस्लिम समुदाय को चेताया भी. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को चिंतन करने और समझने की जरूरत है जिससे आने वाले चुनाव में धोखा खाने से बचा जा सके.
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