UP News: उत्तर प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों ने गरीब बच्चों के एडमिशन से बचने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है ताकि राइट टू एजुकेशन एक्ट (Right To Education) के तहत वो अपने स्कूल में ऐसे बच्चों का दाखिला लेने से बच सकें. आपको जानकर हैरानी होगी कि गरीब बच्चों को पढ़ाने से बचने के लिए सरकारी पोर्टल पर कई निजी स्कूल (Private School) खुद को बंद दिखा रहे हैं, जबकि हकीकत में वो पूरी तरह संचालित हैं. इस मामले को राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लिया है और अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा को जांच के निर्देश दिए हैं.

  


शिक्षा का अधिकार यानी आरटीई (RTE Act) अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में कुल सीटों का एक चौथाई हिस्सा गरीब बच्चों को दाखिला मिलता है, लेकिन प्रदेश में कई ऐसे प्राईवेट स्कूल हो जो गरीब बच्चों को पढ़ाने से बचने के लिए सरकारी वेबसाइट पर अपने स्कूल को ही बंद दिखा रहे हैं. आरटीई पोर्टल पर राजधानी लखनऊ के 2053 विद्यालयों का ब्यौरा उपलब्ध है, जिनमें से शहरी क्षेत्र के 1692 विद्यालय में से 220 को बंद दिखाया जा रहा है.  


पोर्टल पर खुद को बंद दिखा रहे हैं निजी स्कूल


इसी तरह आगरा में 267, कानपुर नगर में 181, गोरखपुर में 142, गाजियाबाद में 97, बरेली में 90, गौतम बुद्ध नगर में 81 स्कूल पोर्टल पर बंद दिखाई जा रहे हैं, जबकि ये स्कूल संचालित हैं. बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा को आरटीई की वेबसाइट पर बंद दिखाए जा रहे सभी स्कूलों की स्थलीय जांच के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही ऐसे स्कूलों की सही स्थिति को वेबसाइट पर प्रदर्शित करने को कहा हैं. आयोग ने इस मामले में एक सप्ताह के अंदर जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है. 


दरअसल प्रदेश सरकार आरटीई में दाखिला पाने वाले गरीब और कम आय वाले छात्रों को पढ़ाई की किताबें, यूनिफार्म और फीस में रियायत देती है. यूनिफॉर्म के लिए प्रति छात्र 5000 रुपये दिए जाते हैं और स्कूलों को 450 रुपये प्रतिमाह की दर से 5400 रुपये की सालाना फीस भी दी जाती है. इस व्यवस्था को ठीक से संचालित करने के लिए आरटीई यूपी पोर्टल बनाया गया है, जिसपर निजी स्कूलों का जुड़ना अनिवार्य है ताकि स्कूलों में गरीब बच्चों के एडमिशन को लेकर जानकारी मिल सके, लेकिन अब निजी स्कूलों ने ऐसे दाखिलों से बचने के लिए ये अनोखा तरीका ढूंढ निकाला है.


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