लखनऊ: कोरोना वायरस को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हम और आप आए दिन सुनते हैं, कई तरह के कयास भी लगाए जाते है. जैसे जिसको कोरोना हो जाए उसमे एंटीबॉडी बन जाती है. एंटीबॉडी 3 महीने तक रहती है. जिसको ज्यादा दिन तक कोरोना रहे उसमें अधिक एंटीबॉडी रहती है और भी तमाम ऐसी बातें. लेकिन, KGMU के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने हाल ही में जो स्टडी की है उसके नतीजे चौंकाने वाले हैं. कोरोना से जंग जीत चुके 800 लोग अब तक प्लाज्मा डोनेट करने के लिए KGMU पहुंचे हैं जिनमें से 41.5 फीसदी ऐसे लोग मिले जिनमें एंटीबॉडी नहीं थी.


800 लोगों को स्टडी में शामिल किया गया
KGMU के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग ने प्लाज्मा डोनेट करने आए 800 लोगों को अपनी स्टडी में शामिल किया. विभाग की अध्यक्ष डॉ तूलिका चंद्रा ने बताया की इन 800 में 400 लोग प्लाज्मा डोनेट कर पाए और 400 का प्लाज्मा नहीं लिया जा सका. जिन 400 का प्लाज्मा नहीं लिया जा सका उसके अलग-अलग कारण थे. इनमें 332 लोग ऐसे थे जिनमें कोरोना से जंग जीतने के बाद भी एंटीबॉडी नहीं मिली. वहीं, 68 लोग ऐसे थे जिनका प्लाज्मा HIV, हेपेटाइटिस या अन्य वजह से संक्रमित होने के चलते नहीं लिया जा सका.


चर्चाओं पर लगेगा विराम
रिसर्च में एक और खास बात सामने आई है. जिनमें एंटीबॉडी नहीं थी उनमें अधिकतर की उम्र 50 साल से अधिक थी. इससे ऐसा लगता है कि अधिक उम्र के लोगों में एंटीबॉडी नहीं बन रही. सबसे अच्छी एंटीबॉडी 30 से 40 साल की उम्र के लोगों में मिली. इस रिसर्च के बाद कई तरह की चर्चाओं पर विराम भी लगेगा.


जारी है गहन स्टडी
दरअसल, एक चर्चा ये भी होती रही है कि जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण अधिक होते हैं उनमें एंटीबॉडी भी अधिक होने का अनुमान है. वहीं लक्षण विहीन कोरोना पॉजिटिव लोगों में एंटीबॉडी कम होने की बात अक्सर होती है. लेकिन, इस स्टडी में बिल्कुल उलट नतीजे सामने आए हैं. जिनमें वायरस का असर अधिक रहा उनमें कम और जिन पर वायरस का असर कम रह उनमें अधिक एंटीबॉडी मिली हैं. डॉ तूलिका चंद्रा का कहना है की वो लोग अब इस पर और गहन स्टडी कर रहे हैं.



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