Lucknow University: गंगा-जमुनी तहजीब की जब बात आती है तो सबसे पहले यूपी की राजधानी लखनऊ का ज़िक्र आता है. लखनऊ की बोली-भाषा, संस्कृति, खानपान और पहनावा पूरे विश्व में विख्यात है. अभी तक अवध की संस्कृति लोगों ने लोगों तक पहुंचाना है. क्योंकि जिसने भी यह संस्कृति (Culture) देखी समझी है वो अपने करीबियों को अवध क्या है बताता ज़रूर है. लेकिन अब नई शिक्षा नीति (New Education Policy)के तहत अवध कल्चर की पढ़ाई शुरू होने जा रही है. लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) इसकी शुरुआत करने जा रहा है. 


लखनऊ की संस्कृति और इतिहास के बारे छात्र करेंगे पढ़ाई
लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग ने एमए (MA) इन अवध कल्चर का कोर्स तैयार किया है. अब छात्र-छात्राएं लखनऊ की संस्कृति, उसके इतिहास के बारे में विस्तार से पढाई करेंगे और आने वाले समय में इसका विस्तार करेंगे. विश्वविद्यालय (University) ने इस कोर्स को नए सत्र (New Season) से धरातल पर उतारने की पूरी योजना बना ली है. इस कोर्स के पहले बीच में 60 सीटें रखी गई है. कोर्स की मंजूरी के लिए इसे जल्द ही बोर्ड के समक्ष रखा जायेगा.  


अवध की संस्कृति को किया जाएगा शामिल
इस कोर्स में अवध की संस्कृति से जुडी हर चीज़ को शामिल किया गया है. पाठ्यक्रम में अवध का रहन-सहन, भोजन, भाषा, उत्सव, पोषक, इमामबाडा, से लेकर अन्य भवनों के आर्किटेक्चर (architecture) के सहित अन्य चीज़े शामिल की गई हैं. इसके साथ ही अवध की किस्सागोई शैली (story telling style), कहानी (Story) कहने की परंपरा, शायरी लिखने, सूफियाना कलम को समझने से लेकर अन्य सभी चीजों को प्रमुखता से शामिल किया गया है. 


अवध है विविध कलाओं के लिए मशहूर
आपको बता दें कि जो लोग अवध की संस्कृति (Culture) को जानते हैं उन्हें मालूम है की यहाँ की पोशाक खासी लोकप्रिय है. जिसमें दो पल्ली टोपी, शेरवानी, पुरुषों के चौड़े पायजामे, महिलाओं के कपड़ों पर भारी कढाई वाला काम और चिकन कारीगरी काफी मशहूर है. यही नहीं खाने में लखनऊ की बिरयानी, कबाब, कुलचा आदि भी खासे लोकप्रिय हैं. उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अब्बास रजा नैय्यर ने बताया कि अवध की संस्कृति के बारे में विद्यार्थियों को पढ़ाने के उद्देश्य से यह मास्टर्स कोर्स तैयार किया गया है. इसमें विशेषज्ञ के तौर पर क्रिस्चियन डिग्री कॉलेज से रिटायर्ड असोसिएट प्रोफेसर अहमद अब्बास रुदौली और विद्यांत डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर अस्मत मलीहाबादी का सहयोग लिया गया है.


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