जालौन। उत्तर प्रदेश के जालौन में शक्ति पीठ शारदा देवी मंदिर स्थित है. इस ऐतिहासिक मंदिर की दूर-दूर तक मान्यता है. यहां नवरात्र ही नहीं बल्कि 12 महीने 365 दिन लोग दर्शन के लिए आते हैं. नवरात्र में तो यहां पर भव्य तरीके से आयोजन किए जाते हैं. यह मंदिर आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वीराज और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा-ऊदल के युद्ध का का भी गवाह रहा है.


शारदा देवी का यह मन्दिर यूपी के जिला जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में बना हुआ है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं. मां शारदा देवी की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है. मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मन्दिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल द्वारा ग्यारहवीं सदी में कराई गई थी.


आदिकाल में हुआ था निर्माण
किवंदतियों के अनुसार यह मन्दिर आदिकाल में निर्मित कराया गया था और मां शारदा की मूर्ति मन्दिर के पीछे बने एक कुंड से निकली थी. प्राचीन किवंदतियों के अनुसार कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थी. इसीलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है. मां शारदा शक्ति पीठ के बारे में दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है. सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है. जिनके दर्शनों के लिये पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालू दर्शन करने आते हैं.


पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी
मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है. पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवीं सदी के बुन्देलखंड के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दि देव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी. उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी. आल्हा-उदल राजा परमाल के मंत्री होने के साथ वीर योद्धा भी थे. बैरागढ़ के युद्ध में आल्हा-उदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया.


आल्हा को मिला था वरदान
बताया गया कि आल्हा और उदल मां शारदा के उपासक थे. जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पाएगा. उदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी. पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोक को सीधा कर पाए. इसके बाद आल्हा ने युद्ध से बैराग ले लिया.


इसीलिए नाम पड़ा बैरागढ़
सांग आज भी मन्दिर के मठ के ऊपर गड़ी है. यह सांग 30 फीट से भी ऊंची है और जमीन में इतनी ही अधिक गड़ी है. मन्दिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता को दर्शाती है. जब आल्हा ने युद्ध से बैराग लिया तभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया. देश में यह मन्दिर दो ही स्थान पर है. जिसमें एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जनपद के मैहर में स्थित है. मन्दिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं.


पहले लगता था विशाल मेला
मन्दिर के पुजारी श्याम जी महाराज का कहना है कि मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा-उदल आते थे. उन्होंने बताया कि लोग अपनी मनोकामनाओं के लिए चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर मंदिर में मां के दर्शन करने आते हैं. इस दौरान यहां विशाल मेला लगता है, जो पूरे एक माह चलता है. मन्दिर के पुजारी के मुताबिक मन्दिर के पीछे एक कुंड है. इस कुंड में नहाने से सभी प्रकार के चरम रोग ख़त्म हो जाते हैं.


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