एमपी में इस मुद्दे पर एक Akhilesh Yadav और मायावती! क्या यूपी में बदलेंगे समीकरण? जानें- क्या हैं इसके मायने
MP के चुनावी समर में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने हुंकार भरी. अखिलेश यादव ने एमपी के दामोह में चुनावी सभा की. वहीं मायावती ने अशोक नगर में जनसभा को संबोधित किया.
मध्य प्रदेश के चुनावी समर में सोमवार को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने हुंकार भरी. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एमपी के दामोह में चुनावी सभा की. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अशोक नगर में जनसभा को संबोधित किया. दोनों के संबोधन के केंद्र में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस रही.
बसपा प्रमुख ने अशोकनगर में जहां एमपी में मतदाताओं को कांग्रेस और बीजेपी से दूर रहने की सलाह दी है. अशोक नगर में यूपी की पूर्व सीएम ने कहा कि लोगों को इनके हवा हवाई बातों और बहकावों में नहीं आना चाहिए. पिछड़े वर्ग को खासतौर से इनसे सावधान रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पिछली पार्टियों की सरकारों ने आरक्षण का कोटा पूरा नहीं किया है. पदोन्नति में आरक्षण को पूर्ववर्ती सरकारों ने कोर्ट की आड़ में खत्म कर दिया है. इन वर्गों के लोगों को प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण दिए जाने के बिना ही ज्यादातर कम कराए जा रहे हैं.
इसके अलावा दामोह में अखिलेश यादव ने कहा- "दो लोगों के बीच में राजनीति चल रही है कभी बीजेपी कभी कांग्रेस, कभी कांग्रेस कभी बीजेपी. मैं आप लोगों से कहना चाहता हूं जिन-जिन प्रदेशों में किसानों की, गरीबों की, पिछड़े, दलित, आदिवासियों की ताकत एक हो गई है वहां भारतीय जनता पार्टी का और कांग्रेस पार्टी का सफाया हो गया."
जातिगत जनगणना को लेकर भी अखिलेश यादव बीजेपी और कांग्रेस पर हमलावर रहे. उन्होंने रविवार को दावा किया कि कांग्रेस ने अतीत में जातिगत जनगणना और मंडल आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन रोक दिया था और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी आज इसी तरह का रुख अपना रही है.
अभी तक की सियासी तस्वीर देखें तो समझेंगे कि बसपा, किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. वहीं सपा, I.N.D.I.A. अलायंस में शामिल है. लेकिन दोनों का विरोध बीजेपी और कांग्रेस से है. दोनों की कोशिश है कि वह एमपी में कांग्रेस और बीजेपी विरोध कर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में है.
वहीं यूपी में भी दोनों दलों- सपा और बसपा की रणनीति है कि वह विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ धुंआधार प्रचार कर गृह प्रदेश में भी अपनी जमीन तैयार कर लें. यूं तो सपा और बसपा दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन बीजेपी और कांग्रेस विरोधी इनकी रणनीति अगर जारी रही तो आगामी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों को यूपी में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.