Uttarakhand News: महाशिवरात्रि के पूर्व संध्या पर देर शाम शिव की ससुराल दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिव की घंटे घड़ियालों और बड़े-बड़े डमरूओं की थाप पर विशेष आरती की गई. इससे पहले शिव के विग्रह का भव्य श्रृंगार हुआ. महाआरती में भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया. पुराणों के अनुसार फाल्गुन चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का मां पार्वती के साथ विवाह हुआ था. शिव के विवाह के इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं शिव की ससुराल दक्षेश्वर मंदिर को भव्य रूप से सजाया गया हैं.
दक्षेश्वर महादेव मंदिर के अखाड़े के श्री महंत और अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी का कहना है की कनखल भगवान शंकर की ससुराल है फाल्गुन मास की चतुर्दशी को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है दक्षेश्वर महादेव मंदिर में इस दिन विशेष महा आरती का आयोजन होता है और शिव के विग्रह का भव्य श्रृंगार किया जाता हैं.
कब हुआ था मंदिर का निर्माण
दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की भीड़ हमेशा लगे रहती हैं. इसका नाम सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है. जिसके बाद इसका पुननिर्माण 1962 में किया गया था. यह महा शिवरात्रि पर शिव भक्तों के लिए तीर्थ स्थान हैं.मान्यता है की इस जगह पर वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर काटा था. दुनिया के हर शिव मंदिर में भगवान की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है बस यही एक मंदिर है जहा शिव के साथ दक्ष प्रजापति के कटे सिर की भी पूजा होती है.इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने हुए हैं. वहीं, दक्ष महादेव मंदिर के निकट गंगा नदी बहती हैं. जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करते हैं.
माता सती ने यहीं त्यागे थे अपने प्राण
कनखल को भगवान शिव जी का ससुराल माना जाता है. दक्षेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के कनखल, हरिद्वार में स्थित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री देवी सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था. मान्यता है कि यह वहीं मंदिर है, जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था. इस यज्ञ में भगवान शिव के अलावा राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया गया था. माता सती अपने पिता द्वारा पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. मान्यता है कि जिस यज्ञ कुण्ड में माता सती ने प्राण त्याग किए थे. वह आज भी मंदिर में अपने स्थान पर है.
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