महिलाओं के लिए संन्यासी बनना नहीं है आसान, करनी पड़ती है कठिन तपस्या, पहनने पड़ते हैं ये कपड़े
Mahakumbh 2025: संन्यासिन बनना इतना आसान नहीं हैं इसके लिए 12 साल तक कड़ी तपस्या करनी पड़ती है. कड़ी साधना के बाद महिलाओं को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है.
Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां जोरो-शोरों से चल रही है. इस बीच प्रयागराज में देश भर से साधु-संतों और अखाड़ों का पहुंचना भी शुरू हो गया है. कुंभ नगरी में संन्यासिन भी बड़ी संख्या में दिख रही है. साधु संतों के बारे में तो लोग बहुत जानते हैं लेकिन, संन्यासिनों की जिंदगी को लेकर बहुत कम ही लोगों को पता है. संन्यासिन बनना इतना आसान नहीं हैं. इसके लिए कड़ी तपस्या करनी पड़ती है. कड़ी साधना के बाद महिलाओं को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है.
कहते हैं समुद्र मंथन के दौरान चार जगहों पर अमृत की बूंदे गिरीं थी, इसकी वजह से देवताओं और असुरों के बीच 12 दिन तक युद्ध चला था, जो 12 सालों के बराबर था. यही वजह कि 12 साल में एक बार कुंभ लगता है. संन्यासी जीवन में भी इस संख्या का महत्व हैं. संन्यासिन बनने के लिए भी 12 का कड़ा तप करना पड़ा था. घर परिवार का त्याग करने के बाद संन्यास जीवन की ओर बढ़ने वाली महिलाओं को इस पदवी तक पहुंचने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है.
आसान नहीं संन्यासिन बनना
शुरुआती दिनों में संन्यासिन बनने के लिए सफेद वस्त्र धारण किए जाते हैं. दिनभर में वो एक बार ही भोजन करती है. इस दौरान दिनभर वो भगवान की भक्ति में लीन रहती है. जमीन ही उनका बिस्तर होता है. ईश्वर की साधना करते हुए वो धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान लेती है अध्यात्म के बारे में समझती है. इसके साथ ही उन्हें सभी कर्मकांड और संस्कारों को समझना होता है. भावनाओं से दूर वो अपने स्वजनों के लिए आंसू नहीं बहा सकती है. हर तरह की मोह माया से परे होकर ईश्वर का ध्यान करना होता है.
अपना पूरा समर्पण करके आराध्य के प्रति समर्पण भाव का होना आवश्यक है. इसके बाद उन्हें ख़ुद अपने हाथों पिंड दान करना होता है. कुंभ या महाकुंभ में स्वंय का पिंडदान करके उन्हें संन्यासिन की उपाधि विधिवत तरीके से दी जाती है. इसके लिए ऐसा नहीं है कि कोई भी सीधा आकर संन्यासिन बन सकता है. इसके लिए पहले उन्हें अखाड़ों से संपर्क करना होता है, अखाड़े उनके परिवार और उनसे जुड़ी हर जानकारी जुटाते है. अखाड़ों की जांच में खरा उतरने के बाद ही उन्हें आश्रम में रखा जाता है.
ये संन्यासिन महिला महंतों की देखरेख में रहती है जहां वो ईश्वर के प्रति अपने समर्पण के साथ जीवन को व्यतीत करती है. इस दौरान वो अखाड़ों के आश्रम में रहती है या फिर कुछ को उन मंदिरों में रखा जाता है जहां महिला महंत होती है.
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