महाकुंभ से पहले साधु-संतों में छिड़ा घमासान, महंत दिनेंद्र दास ने मारी पलटी, वापस लिया समर्थन
Mahakumbh 2025: महाकुंभ शुरू होने से पहले ही साधु संतों की सबसे बड़ी संस्थाओं के बीच घमासान छिड़ गया है. निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास ने निरंजनी अखाड़े को दिए समर्थन पत्र से पलटी मार ली है.
Mahakumbh 2025 Prayagraj: प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ से पहले साधु-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में घमासान छिड़ गया है. जिसके चलते अखाड़ा परिषद के दो धड़ों में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई है. मामला अखाड़ा परिषद को दिए गए समर्थन पत्र से जुड़ा है. जहां श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य और अखिल भारतीय श्रीपंचमी रामानंदीय निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास शुक्रवार को निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी के अखाड़े को दिए समर्थन पत्र से मुकर गए हैं.
महंत दिनेंद्र दास ने दावा किया कि उन्होंने महंत रवींद्र पुरी और हरि गिरि के पक्ष में जो पत्र दिया था वो उनसे धोखे से लिखवाया गया था. जिसके बाद उन्होंने इस समर्थन पत्र को वापस ले लेते हुए घोषणा कर दी कि महाकुंभ निर्मोही अखाड़े के सचिव राजेंद्र दास के नेतृत्व में कराया जाएगा. उनके इस फैसले से अखाड़ा परिषद को जबरदस्त झटका लगा है.
महंत दिनेंद्र दास ने वापस लिया समर्थन
इससे पहले महंत दिनेंद्र दास से सीएम योगी के साथ हुई अखाड़ा परिषद बैठक में महंत रवींद्र पुरी और महंत हरि गिरि के नेतृत्व में ही भरोसा जताया था और दोनों संतों के नेतृत्व पर भरोसा जाते हुए अपना समर्थन देने का ऐलान किया था. इसके साथ ही महाकुंभ की बैठकोंके लिए उन्होंने खुद अपना नाम भी प्रस्तावित किया था. लेकिन, अब उन्होंने अपना समर्थन वापस लेकर सबको हैरान कर दिया है.
उन्होंने अपना नया समर्थन पत्र जारी करते हुए जगन्नाथ मंदिर अहमदाबाद के महंत राजेंद्र दास को अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अखाड़े का अध्यक्ष और अखाड़े का महामंत्री बताया. उन्होंने कहा कि महाकुंभ मेला अब महंत राजेंद्र दास के ही नेतृत्व में होगा. इसके सात ही महाकुंभ को लेकर जो बैठक या अन्य कार्य होंगे उनका नेतृत्व भी वहीं करेंगे. हम इसका पूरा समर्थन करते है और इससे पहले जो समर्थन पत्र जारी किया गया था उसे निरस्त करते हैं.
हिन्दी न्यूज़ पेपर अमर उजाला से बात करते हुए महंत दिनेंद्र दास ने इस पर सफाई दी और कहा कि हनुमानगढ़ी के उनके विश्वासपात्र संत को लेकर कुछ लोग उनके पास आए थे. इसी दौरान उन्होंने महंत रवींद्र पुरी के समर्थन में पत्र लिखवा लिया. जब उन्हें इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने इसे रद्द कर दिया.
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