Mahakumbha 2025: 13 जनवरी से महाकुंभ मेले की शुरूआत हो रही है, महाकुंभ में छत्र-चंवर से सुसज्जित चांदी के सिंहासन पर बैठे महामंडलेश्वर की सवारी निकलती है जिसे देखकर हर कोई आकर्षित हो जाता है और लगता है कि उनसे ज्यादा वैभवशाली व्यक्ति दूसरा नहीं है, लेकिन आपको पता है कि महामंडलेश्वर का जीवन त्याग से परिपूर्ण होता है. महामंडलेश्वर की पदवी पाने के लिए किसी संत को अखाड़े की पांच स्तरीय जांच, ज्ञान-वैराग्य की परीक्षा में खरा उतरना  पड़ता है.


पदवी मिलने के बाद भी उसे तमाम प्रतिबंध से आजीवन बंधकर रहना पड़ता है. नियमों की अनदेखी करने पर अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है. 13 अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद महामंडलेश्वर का पद आता है. हर अखाड़े में 30 से 40 महामंडलेश्वर हैं. कुंभ महाकुंभ में नए महामंडलेश्वरों का पट्टाभिषेक किया जाता है. 


"ज्ञानी के साथ पराक्रमी भी होना जरूरी"
श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के  अनुसार महामंडलेश्वर सनातन धर्म के ध्वजावाहक हैं. जो ज्ञानी के साथ पराक्रमी भी होते हैं. जब जब धर्म पर संकट आया है तब महामंडलेवरों ने अपनी विद्वता व प्रभाव के बल पर उसे दूर किया है. अखाड़ों से कोई व्यक्ति संन्यास अथवा महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए संपर्क करता है तो उसे अपना नाम, पता, शैक्षिक योग्यता, सगे-संबंधियों का ब्योरा और नौकरी व्यवसाय की जानकारी देनी होती है. अखाड़े के थानापति के द्वारा उसकी पड़ताल कराई जाती है. 


थानापति की रिपोर्ट मिलने पर अखाड़े के सचिव व पंच अलग-अलग जांच करते हैं. कुछ लोग संबंधित व्यक्ति के घर जाकर स्वजन व रिश्तेदारों से संपर्क करके सच्चाई का पता लगाते हैं.  संबंधित व्यक्ति ने जहां से शिक्षा हासिल की उस स्कूल-कॉलेज भी संतों की टीम जाती है. स्थानीय थाना से जानकारी मांगी जाती है कि कोई आपराधिक संलिप्तता तो नहीं है. इसकी जांच पुलिस से कराई जाती है. सभी रिपोर्ट अखाड़े के सभापति को दी जाती है. वह अपने स्तर से जांच करवाते हैं. फिर अखाड़े के पंच उनके ज्ञान की परीक्षा लेते हैं.


"योग्यता की इन कसौटियों पर खरा उतरना जरूरी"
महामंडलेश्वर का पद बड़ी जिम्मेदारी वाला है. इसके लिए शास्त्री, आचार्य होना जरूरी है, जिसने वेद-पुराण की शिक्षा हासिल की हो. यदि ऐसी डिग्री न हो तो व्यक्ति कथावाचक हो, उसके वहां मठ होना आवश्यक है. मठ में जनकल्याण के लिए सुविधाओं का अवलोकन किया जाता है. देखा जाता है कि वहां पर सनातन धर्मावलंबियों के लिए विद्यालय, मंदिर, गोशाला आदि का संचालन कर रहे हैं या नहीं? अगर अपेक्षा के अनुरूप काम होता है तो पदवी मिल जाती है. 


महामंडलेश्वर बनने वाले व्यक्ति का न्यूनतम पांच वर्ष संन्यासी जीवन होना चाहिए. अखाड़े की ओर से उन्हें विधि-विधान से संन्यास दिलाया जाता है. संन्यास लेने पर उन्हें स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है. मुंडन करके उनकी शिखा (चोटी) रखी जाती है. फिर उन्हें दीक्षा दी जाती है. दीक्षा देने वाले गुरु, अखाड़े के आराध्य व आचार्य महामंडलेश्वर उनके सबकुछ होते हैं. उत्कृष्ट योगदान देने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में महामंडलेश्वर पद का पट्टाभिषेक किया जाता है. पट्टाभिषेक पूजा विधि से संपन्न होती है. दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है.


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