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Gandhi Jayanti 2024: महात्मा गांधी का मसूरी से था खास कनेक्शन, सिल्वर्टन मैदान में दिया था ऐतिहासिक भाषण

Uttarakhand News: मसूरी में महात्मा गांधी की यादें आज भी जीवंत हैं. शहर के लाइब्रेरी चौक पर उनकी एक प्रतिमा स्थापित है, जो शहर के सबसे प्रमुख और व्यस्त स्थानों में से एक है.

Uttarakhand News: महात्मा गांधी का उत्तराखंड के मसूरी से गहरा लगाव था, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण क्षणों में अहिंसा और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा दी थी. महात्मा गांधी सबसे पहले 1929 में मसूरी आए थे. जब वे 15 अक्टूबर को हरिद्वार में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मसूरी पहुंचे. इसके बाद, 16 अक्टूबर को वे देहरादून में एक कार्यक्रम में शामिल हुए और 18 अक्टूबर को मसूरी पहुंचे. 

इस यात्रा के दौरान, उन्होंने मसूरी के यूरोपीय नगर पालिका पार्षदों को संबोधित किया और अहिंसा के सिद्धांतों पर बल दिया. गांधीजी 24 अक्टूबर तक मसूरी के हैप्पी वैली क्षेत्र में स्थित बिड़ला हाउस में ठहरे और इस दौरान कई राष्ट्रीय नेताओं के साथ बैठकें कीं.

महात्मा गांधी का मसूरी से था खास लगाव
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार, गांधीजी का मसूरी दौरा न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि उन्होंने यहां की प्राकृतिक सुंदरता से भी खुद को जुड़ा महसूस किया. मसूरी से दिखाई देने वाली हिमालय की शानदार दृश्यावली ने गांधीजी को बहुत प्रभावित किया, जिसका उन्होंने 'मसूरी एंड दून गाइड बुक' में उल्लेख भी किया. गांधीजी के मसूरी प्रवास के दौरान, उन्होंने स्थानीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाने का आह्वान किया.

1946 में महात्मा गांधी ने मसूरी का दूसरा दौरा किया इस बार वे 28 मई को मसूरी पहुंचे और कुलड़ी स्थित सिल्वर्टन मैदान में एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया. इस सभा में उन्होंने जनता को अहिंसा का महत्व समझाया और स्वतंत्रता की लड़ाई में धैर्य और आत्मबल के साथ आगे बढ़ने का संदेश दिया. गांधीजी ने कहा कि आजादी का मार्ग कठिन है, लेकिन यदि हम अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का पालन करेंगे, तो हम सफल होंगे.

मसूरी के बिड़ला हाउस में ठहरे थे गांधी
गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि जब 1946 में गांधीजी मसूरी के बिड़ला हाउस में ठहरे थे, तो उन्होंने अपने पिता ऋषिराज भारद्वाज को वहां बुलाने के लिए एक रिक्शा भेजा था. स्थानीय लोग महात्मा गांधी का सम्मान करते थे और उनके मसूरी प्रवास के दौरान उन्होंने गांधीजी को एक चांदी की छड़ी और रिक्शा भेंट किया था. महात्मा गांधी ने इन उपहारों की नीलामी की और 800 रुपये में उन्हें बेच दिया. प्राप्त धनराशि को उन्होंने खादी ग्रामोद्योग के लिए दान कर दिया, जो उनकी सादगी और सेवा की भावना को दर्शाता है.

मसूरी में महात्मा गांधी की यादें आज भी जीवंत हैं. शहर के लाइब्रेरी चौक पर उनकी एक प्रतिमा स्थापित है, जो शहर के सबसे प्रमुख और व्यस्त स्थानों में से एक है. हालांकि, इस चौक पर आवारा पशुओं की समस्या भी एक चुनौती बनी हुई है. यहां दिनभर आवारा जानवरों का जमावड़ा लगा रहता है, जिससे पर्यटकों को काफी असुविधा होती है. मसूरी आने वाले सैलानी लाइब्रेरी चौक से दून वैली की खूबसूरत वादियों का आनंद लेने आते हैं, लेकिन आवारा जानवरों के कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

महात्मा गांधी का मसूरी दौरा, चाहे वह 1929 का हो या 1946 का, आज भी स्थानीय जनता और इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में याद किया जाता है. उन्होंने न केवल मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता की प्रशंसा की, बल्कि यहां की जनता को भी अहिंसा और सत्याग्रह का संदेश दिया, जो आज भी उनके जीवन और विचारों को प्रेरणा देता है.

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