महात्मा गांधी ने गीता प्रेस की 'कल्याण' पत्रिका के पहले अंक में लिखा था लेख, जानें- खास बातें
गीता प्रेस से प्रकाशित 'कल्याण' पत्रिका के पहले अंक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लेख लिखा था. गीता प्रेस के उत्पादन प्रबंधक डॉ लालमणि तिवारी बताते हैं कि 'कल्याण' का प्रकाशन 95 वर्षों से हो रहा है. अब तक इसकी अब तक 16 करोड़ 25 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं.
गोरखपुर: विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस से प्रकाशित 'कल्याण' पत्रिका के पहले अंक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लेख लिखा था. 'कल्याण' पत्रिका का प्रकाशन 1926 से हो रहा है. इस पत्रिका के पहले अंक में महात्मा गांधी ने 'स्वाभाविक किसे कहते हैं' इसे परिभाषित किया है. इसमें उन्होंने स्वाभाविक की परिभाषा को बहुत ही स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है, जो आज भी सार्थक है. 'कल्याण' 95 वर्ष से प्रकाशित हो रही है. 'कल्याण' पत्रिका की अब तक 16 करोड़ 25 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं.
95 वर्षों से हो रहा है प्रकाशन गोरखपुर के गीता प्रेस के उत्पादन प्रबंधक डॉ लालमणि तिवारी बताते हैं कि 'कल्याण' का प्रकाशन 95 वर्षों से हो रहा है. हर माह छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' इस बार जनवरी का विशेषांक 650 पेज का छाप रही है. जो हर साल 500 पेज का छपता है. डाक खर्च के साथ इसकी कीमत 250 रुपए मात्र है. आमतौर पर ये 48 पेज की छपती है. खास बात ये है कि महात्मा गांधी के ही आह्वान पर गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली 'कल्याण' पत्रिका और अन्य पत्रिकाओं में भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया जाता है.
महात्मा गांधी ने लिखा लेख डॉ लालमणि बताते हैं कि शुरुआत में कल्याण पत्रिका का प्रकाशन एक साल तक मुंबई (बंबई) से हुआ. इसके बाद इसका प्रकाशन गोरखपुर से शुरु हुआ. उन्होंने बताया कि 'कल्याण' पत्रिका के पहले अंक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 'स्वाभाविक किसे कहते हैं' विषय पर लेख लिखा था. वे बताते हैं कि वो लेख आज के समय में भी प्रासंगिक है. इसके बाद उन्होंने कल्याण के लिए कई लेख लिखे. उस समय भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार कल्याण के संपादक थे. भाईजी स्वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रभावित रहे हैं. वे स्वतंत्रता आंदोलन में रुचि रखते रहे हैं.
16 करोड़ 25 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं गांधी जी से भाईजी के काफी अच्छे ताल्लुकात रहे हैं. कल्याण में काफी क्रांतिकारी विचारधारा के लेख प्रकाशित होते रहे हैं. उन्होंने जब कल्याण का पहला अंक देखा था, तो उन्होंने कहा था कि कल्याण में किसी भी तरह का विज्ञापन मत निकालिएगा. इसके साथ ही किसी भी पुस्तक की समीक्षा मत छापिएगा. उनकी इस बात को ध्यान में रखते हुए उनकी बात आज भी मानी जाती है. कल्याण में आज भी विज्ञापन और किसी भी पुस्तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है. डॉ लालमणि तिवारी ने बताया कि कल्याण की अब तक 16 करोड़ 25 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. इसके वर्तमान संपादक राधेश्याम खेमका हैं. इसके आदि संपादक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार रहे हैं. उन्होंने बताया कि पत्रिकाओं और धार्मिक पुस्तकों में गीता प्रेस किसी भी तरह का विज्ञापन प्रकाशित नहीं करता है.
विज्ञापन नहीं छापने का लिया संकल्प गीता प्रेस के लाइब्रेरी इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी बताते हैं कि 'कल्याण' पत्रिका 1983 संवत् से गीता प्रेस से प्रकाशित हो रही है. मानव मात्र के कल्याण के लिए धार्मिक-आध्यात्मिक लेख छापे जाते हैं. इसमें कल्याण के पहले अंक में स्वाभाविक किसे कहते हैं उसे लेकर लेख छपा था. मनुष्य के दैनिक दिनचर्या को इंगित करता लेख काफी प्रभावित करता है. उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी जी के आह्वान पर भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने विज्ञापन नहीं छापने का संकल्प किया था. 95 साल से कल्याण पत्रिका प्रकाशित हो रही है.
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