Mahoba News: UP के महोबा जिले में घूंघट से निकल कर शीला नाम की महिला ने हैंडपंप मिस्त्री बन नलों को ठीक करना शुरू किया तो वो महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गईं. 64 साल की शीला देवी ने अपने हौंसलों के दम पर खुद को स्वावलंबी बनाया और दूसरी महिलाओं के लिए भी मिसाल बन गई हैं. वो अब तक 500 से ज्यादा हैंडपंप की मरम्मत कर चुकी हैं. यही नहीं वो गांव की महिलाओं को भी ये काम सिखाती है और गांव में 20 से 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखा चुकी हैं.
महिलाओं के लिए बनी मिसाल
शीला देवी ने अपनी जिन्दगी में कई तरह के उतार चढ़ाव देखते हैं. उन्होंने बताया कि बेटा के जन्म के कुछ समय बाद ही पति की मौत हो गई. जिसके बाद उनके ससुराल वालों ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. मजबूरी में आकर उन्हें मायके रहना पड़ा और यहीं से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई. पहले उन्होंने गांव में रहकर मजदूरी करना शुरू किया और अपने बेटे को पालने लगी, जिसके बाद उन्होंने हैंडपंप को ठीक करने का काम सीख लिया. इसके बाद शीला को ग्रामीण उन्नति संस्थान का साथ मिला और धीरे-धीरे ये काम उनका जुनून बन गया. उन्होंने यूनिसेफ से हैंडपंप सुधारने की भी ट्रेनिंग ली इसके साथ ही उन्हें वहां से एक टूलकिट भी दी गई.
छोटी सी उम्र में छूटा पति का साथ
महोबा जिले के कबरई ब्लॉक के तिंदौली गांव की रहने वाली शीला की शादी 1966 में हो गई थी. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 9 साल थी. 16 साल की उम्र में उन्होंने बेटे को जन्म दिया और बेटे की जन्म के दो साल बाद ही पति की मौत हो गई. ससुराल वालों के परेशान करने वो मायके पनवाड़ी आकर रहने लगीं. 13 साल वह अपने मायके में रहीं और उन्होंने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की. साल 2000 में यूनिसेफ की ओर से उन्होंने हैंडपंप मरम्मत का प्रशिक्षण लिया और यहीं से उन्हें टूलकिट मिली और फिर उन्होंने हैंडपंप को ठीक करने का काम शुरू कर दिया.
500 हैंडपंप ठीक कर चुकी हैं शीला देवी
शीला बताती हैं कि शुरुआत में वो घूंघट डालकर साइकिल चलाती थी. लेकिन फिर उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का प्राथमिकता दी और फिर परिवार के लालन-पालन के लिए उन्होंने घूंघट को छोड़ दिया. वो साइकिल से रोजाना 70 से 80 किलोमीटर का सफर तय करती थीं. उन्होंने अब तक ब्लाक के 18 गांव में 500 से ज्यादा हैंडपंप की मरम्मत का काम किया है. हैंडंपप की मरम्मत में उन्हें 150 से 250 रुपये तक मिल जाते हैं.
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महिलाओं को निशुल्क प्रशिक्षण
शीला देवी एक तरफ हैंडपंप ठीक करती है तो दूसरी तरफ गांव की महिलाओं को इसका निशुल्क प्रशिक्षण भी दे रही है. यही नहीं वो गांव की 25 लड़कियों को साइकिल भी चलाना सिखा चुकी हैं. उनका बेटा भी अब बड़ा हो गया है और वो होमगार्ड है. शीला एक संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही हैं जिससे घर का खर्च आसानी से चल जाता है. उनके इस साहस की लोग तारीफ करते नहीं थकते हैं. उनका बेटा करण भी मां के संघर्ष को लेकर बताता है कि उसकी मां ने कई कठिनाईयों का सामना किया है.
शीला महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं. बढ़ती उम्र भी उनका जज्बा नहीं डिगा सकी. वो महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में सराहनीय काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि साल 1995 में मध्य प्रदेश के दमोह में महिला सशक्तीकरण के लिए ‘मुझे भी गिनो’ अभियान चलाया गया. इसमें एमपी-यूपी के बुंदेलखंड के 14 जिलों को शामिल किया गया. इस अभियान में भी उन्होंने हिस्सा लिया था.
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