UP Politics: अखिलेश यादव की चाचा शिवपाल से मुलाकात नहीं होने से अटकलों का बाजार गर्म, लग रहे ये कयास
UP News: एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी तक चाचा और भतीजे की लखनऊ में मुलाकात नहीं हुई है. हालांकि बीते 3 दिनों से शिवपाल यादव लखनऊ में ही थे और हर दिन अपने कैंप कार्यालय जा रहे थे.
Uttar Pradesh News: यूपी के मैनपुरी उपचुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद जिस तरह से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) और प्रसपा का विलय कराया उसके बाद यह साफ हो गया कि शिवपाल यादव का ओहदा पार्टी में बढ़ने वाला है. खुद अखिलेश यादव ने इस बात को कहा कि चाचा को पूरा सम्मान दिया जाएगा, लेकिन इस नतीजे को आये लगभग एक हफ्ता बीत चुका है और अभी तक चाचा और भतीजे की लखनऊ (Lucknow) में मुलाकात नहीं हो पाई है. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इसके लिए किस बात का इंतजार हो रहा है.
मैनपुरी उपचुनाव (Mainpuri by-election) के नतीजों के बाद शिवपाल यादव की ताकत का एहसास एक बार फिर सभी को हुआ. खुद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और उनकी पार्टी प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय कराया. जसवंतनगर में शिवपाल यादव का जादू ऐसा चला कि डिंपल 1 लाख 6 हजार वोटों से आगे रहीं. शिवपाल यादव की क्या अहमियत है इस बात को खुद अखिलेश यादव ने मैनपुरी में बताया और कहा कि चाचा का जल्द सम्मान किया जाएगा.
चाचा-भतीजे की नहीं हुई मुलाकात
इसके बाद कयास लगने शुरू हो गए कि शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी में क्या जिम्मेदारी दी जा सकती है. क्या उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी, प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी या उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में भेजा जाएगा. चर्चा तो यहां तक हुई कि उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया जा सकता है. हालांकि एक हफ्ता बीतने के बाद भी अभी तक समाजवादी पार्टी की तरफ से ऐसा कोई भी पत्राचार विधानसभा सचिवालय से नहीं किया गया है. वहीं एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी तक चाचा और भतीजे की लखनऊ में मुलाकात नहीं हुई है. हालांकि बीते 3 दिनों से शिवपाल यादव लखनऊ में ही थे और हर दिन अपने कैंप कार्यालय पर जा रहे थे, जहां रोज समाजवादी पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता और समर्थक उनसे मिलने के लिए भी पहुंच रहे थे.
मुलाकात नहीं होने पर उठे सवाल
हालांकि अखिलेश यादव लखनऊ के बाहर थे इसलिए उनके लखनऊ आने का इंतजार हो रहा था. मंगलवार शाम को अखिलेश यादव लखनऊ पहुंचे तो यह चर्चा शुरू हुई थी कि बुधवार को दोनों के बीच शायद मुलाकात हो जाए, लेकिन बुधवार को अखिलेश यादव केसीआर की पार्टी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए फिर दिल्ली चले तो वहीं चाचा शिवपाल भी इटावा चले गए और दोनों की मुलाकात फिर नहीं हो पाई. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यह इंतजार इतना लंबा क्यों हो रहा है.
पूर्व कैबिनेट मंत्री ने क्या कहा
पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आर के चौधरी साफ तौर पर कह रहे हैं कि शिवपाल यादव का पार्टी में आना ही सबसे बड़ी बात है. इससे समाजवादी पार्टी को बहुत बल मिलेगा. उनका यह भी कहना है कि शिवपाल को क्या जिम्मेदारी मिलेगी यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष ही तय करेंगे लेकिन जिस तरह से शिवपाल यादव अपनी गाड़ियों पर सपा का झंडा लगा रहे हैं वह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. उनका यह भी कहना है कि शिवपाल की उपयोगिता सपा को आगे बढ़ाने में हर स्तर पर होगी. संगठन से लेकर सरकार बनाने में उनकी भूमिका होगी. हालांकि एक हफ्ता बीत जाने पर उनका कहना है कि अभी तक अखिलेश यादव भी पार्टी कार्यालय पर नहीं आए हैं, लेकिन शिवपाल यादव का सम्मान करते हुए अखिलेश यादव उन्हें काम देंगे.
शिवपाल नहीं गए हैं सपा दफ्तर
वहीं सवाल इसे लेकर ही उठ रहा है कि क्या केवल शिवपाल यादव की गाड़ी पर ही सपा का झंडा लगेगा वह सपा कार्यालय कब जाएंगे. 2017 के बाद से 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव सिर्फ एक बार समाजवादी पार्टी कार्यालय गए थे, लेकिन मैनपुरी के नतीजे आने के बाद से फिलहाल शिवपाल यादव सपा दफ्तर नहीं गए हैं जबकि खुद अखिलेश यादव ने उन्हें सपा में शामिल कराया था और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का भी ऐलान किया था.
बीजेपी ने इसे लेकर साधा निशाना
अब बीजेपी साफ तौर पर इसे लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना साध रही है. बीजेपी नेता कह रहे हैं कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं. मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाजवादी पार्टी को खड़ा किया है, लेकिन अखिलेश यादव से हमेशा शिवपाल यादव को धोखा ही मिला है और फिर आगे भी धोखा ही मिलेगा. पार्टी के नेता यह भी कह रहे हैं कि आखिर कब तक शिवपाल यादव अपना आत्मसम्मान अलग रखकर सपा में बने रहेंगे.
हालांकि शिवपाल यादव के वापस समाजवादी पार्टी में आने पर पार्टी कार्यकर्ता बेहद उत्साहित हैं. इस बात का प्रमाण शिवपाल यादव के शिविर कार्यालय पर लगने वाली भीड़ है. वहीं स्थानीय निकाय चुनाव में भी चाचा भतीजे की जोड़ी कहीं न कहीं बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है, लेकिन सवाल यही है कि आखिर यह इंतजार और कितना लंबा होगा.