Mainpuri Lok Sabha by-election: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में वैसे तो 3 सीटों पर उपचुनाव (UP by-election) हो रहे हैं लेकिन समाजवादी पार्टी और बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में लगा रखी है. समाजवादी पार्टी के लिए यह सीट जहां प्रतिष्ठा वाली सीट हो गई है तो वहीं बीजेपी 2024 से पहले यह सीट जीतकर पूरे देश में एक बड़ा संदेश देने की तैयारी में है. हर पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है लेकिन इस सीट पर दलित वोटों को गेम चेंजर माना जा रहा है. मैनपुरी लोकसभा सीट पर एक तरफ जहां पूरा समाजवादी कुनबा प्रचार में जुटा है और छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं हो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने मंत्रियों की पूरी फौजी उतार दी है. यह चुनाव वैसे तो मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हो रहा है लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी को बीजेपी कड़ी टक्कर दे रही है.
मैनपुरी में अगर वोटों के गणित को समझा जाए तो यहां तकरीबन 17 लाख के आसपास लोकसभा के कुल वोटर हैं. इनमें सबसे ज्यादा ओबीसी वोट बैंक लगभग 45 फीसदी है. इसमें भी सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक मैनपुरी में है जो लगभग 4 लाख 30 हजार से ज्यादा है. मुस्लिम वोट बैंक की बात करें तो वह भी लगभग 70 हजार के आसपास है. इस तरह समाजवादी पार्टी इन दोनों वोट बैंक के आधार पर अपने पक्ष में 5 लाख वोट मान रही हैं.
बीजेपी का क्या है दावा
बीजेपी का दावा है कि इस सीट पर यादव के बाद सबसे ज्यादा शाक्य बिरादरी के वोट हैं और इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्य को अपना उम्मीदवार बनाया है. शाक्य वोट यहां लगभग 2 लाख 90 हजार से ज्यादा है. क्षत्रिय वोट भी लगभग दो लाख के आसपास है. 1 लाख ब्राह्मण वोटर हैं. ऐसे में यह संख्या लगभग 6 लाख हो जाती है. वहीं बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाने वाला लोधी और वैश्य वोटर भी इस सीट पर लगभग 1 लाख 70 हजार है.
यही वजह है कि बीजेपी इस बार मैनपुरी में कमल खिलने का दावा कर रही है लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका इस सीट पर दलित वोट बैंक की है जो लगभग 1 लाख 80 हजार के आसपास है. माना जा रहा है कि यह वोट बैंक जिधर जाएगा वह इस बार चुनाव में बाजी मारेगा. यही वजह है कि चाहे समाजवादी पार्टी हो या बीजेपी हो इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने में जुटी हैं. हालांकि सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि अब आंकड़े कोई मायने नहीं रखते और अब मोदी जी की नीतियों पर हर समुदाय के लोग बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं और मैनपुरी में भी ऐसा ही होगा.
क्या है बीजेपी का तर्क
दरअसल बीजेपी जो दावे कर रही है उसके पीछे वह हर बार यही तर्क देती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सपा-बसपा एक साथ थे तब मुलायम सिंह यादव लगभग 92,000 वोटों से ही जीत पाए थे. यानी दलित समाज का आधा वोट तब भी सपा-बसपा गठबंधन को मिला था और अब जब बसपा-सपा के साथ नहीं है तो बीजेपी साफ तौर पर कह रही है कि दलित बीजेपी के साथ आएगा. पार्टी के नेता कह रहे हैं कि दरअसल दलितों और पिछड़ों तक सरकार की योजनाएं पिछली सरकारों में नहीं पहुंच पाती थीं.
बीजेपी नेताओं का कहना है कि, सरकार ने योजनाओं का सीधा लाभ दलित समाज के लोगों को दिया है और ना केवल विधानसभा चुनाव में बल्कि जो उपचुनाव हुए हैं उसमें भी दलित बीजेपी के साथ आए हैं और इस बार इस चुनाव में भी प्रदेश का दलित बीजेपी के साथ ही रहेगा. अगर आंकड़े देखे जाएं तो हर दल अपनी अपनी मजबूती को साबित करने में जुटा है लेकिन यह बात भी काफी महत्वपूर्ण है कि इस उपचुनाव में दलित वोट बैंक जिसके भी पाले में जाएगा कहीं ना कहीं 2024 के लिए भी वो एक संदेश होगा.