(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Makar Sankranti 2024: उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है घुघुतिया पर्व, खाने के लिए बुलाए जाते हैं कौवे
Uttarakhand News: उत्तराखंड के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. विशेष दिन पर पकवान पकाने का भी चलन है. त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा होता है.
Uttarakhand News: मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2024) पर कुमाऊं में 'घुघुतिया' पर्व (Ghughutiya Festival) धूमधाम से मनाया जाता है. लोकपर्व घुघुतिया की धार्मिक मान्यताएं है. त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा होता है. बच्चे दिन की शुरुआत घुघुते खिलाकर करते हैं. अमूमन पक्षियों में कौवे को अच्छा नहीं माना जाता लेकिन सनातन धर्म में कौवे का विशेष स्थान है. लोकपर्व के माध्यम से कौवे की महत्ता दर्शाई गई है. एक कथा के अनुसार, त्रेता युग में एक कौवे ने भगवान राम की पत्नी सीता के पैर में चोंच मार दी. इससे माता सीता के पैर में घाव हो गया.
धूमधाम से मना 'घुघुतिया' पर्व
भगवान राम बुरी तरह क्रोधित हो उठे. उन्होंने एक तीर से कौवा की आंख फोड़ दी. दर्द से कराहते कौवे को देख भगवान राम द्रवित हो उठे. उन्होंने कौवे को वरदान दिया कि तुम्हें भोजन कराने से पितृ प्रसन्न हो जाएंगे. इसके बाद कौवे को सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा. यह कौवा कोई और नहीं, इंद्रदेव का बेटा जयंत था. कौवा यमराज का संदेश वाहक भी माना जाता है. कौवा पितरों का आश्रय स्थल के रूप में भी चिह्नित है. उसकी खूबियों के कारण शनिदेव ने वरदान दे रखा है. कौवा कभी किसी बीमारी से नहीं मर सकता. उसकी मृत्यु सिर्फ आकस्मिक दशाओं में हो सकती है. कालांतर में भी इस किवदंती को काफी बल मिला है. कौआ अपने पूरे जीवन काल में लगभग रोगमुक्त बना रहता है.
लोकपर्व की है प्रचलित कथा
उत्तराखंड में त्योहार के पीछे एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार बात उन दिनों की है, जब कुमाऊं में चन्द्रवंश के राजा राज करते थे. राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी. उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था. उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा. एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की. बाघनाथ की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई. उसका नाम निर्भयचंद पड़ा. निर्भय को उसकी मां प्यार से 'घुघुति' बुलाया करती थी. घुघुति के गले में एक मोती की माला थी.
माला में घुंघुरू लगे हुए थे. घुंघरू से सुसज्जित मोती की माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था. जिद करने कर मां कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी. उसको डराने के लिए कहती कि 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'. मां की बात सुनकर कई बार कौवा आ जाता. उसे देखकर घुघुति जिद छोड़ देता. कौवे के आने पर मां खाने को दे देती. धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई.
राजपाट की उम्मीद लगाए बैठा मंत्री घुघुति को मारने की सोचने लगा. मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा. एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब उसे चुप-चाप उठाकर ले गया. घुघुति को जंगल की ओर ले जाने के दौरान एक कौवे ने देख लिया. कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा. उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा. उत्तराखंड में त्योहार का मतलब पुरानी संस्कृति को याद करना है. आज भी कुमाऊं में त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है. सुबह से बच्चे काफी उत्साहित रहते हैं. सुबह सुबह घुघुती की माला गले में डालकर कव्वे को बुलाते हैं.