कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रहने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी इस वक्त एक तरफ यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर मैदान में पुरजोर ताकत लगा रही है, वहीं पंजाब में भी पार्टी के अंदर उथल-पुथल है. हाल ही में पंजाब से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नई पार्टी बनाने की घोषणा की है. हालांकि कांग्रेस के लिए यह नई बात नहीं है. अब तक तकरीबन 60 बार से ज्यादा बार कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी बनाई है लेकिन इनमें से इक्का-दुक्का को छोड़कर ज्यादातर लोग सफल नहीं हुए हैं.


आपको बताते हैं उन नेताओं के बारे में जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई.


मोरारजी देसाई


साल 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनने की रेस में थे लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया. वहीं मोरारजी देसाई उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री बने. हालांकि बाद में उनसे वित्त मंत्रालय वापस ले लिया गया. इंदिरा गांधी के इन कदमों के चलते उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. जब साल 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ तो मोरारजी देसाई इंडियन नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन में चले गए. इस पार्टी के कर्ता-धर्ता वहीं थे. आपातकाल के बाद सभी विपक्षी दल जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक जुट हो गए. साल 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई. जनता दल ने मोरारजी देसाई को संसदीय दल का नेता चुना और इस तरह वह देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने. हालांकि उनका कार्यकाल केवल 24 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई 1979 तक ही रहा.


प्रणब मुखर्जी


पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी एक बार कांग्रेस पार्टी से बगावत कर चुके हैं. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार माना जाता था. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया और प्रणब मुखर्जी को वित्तमंत्री.




बाद में राजीव गांधी से मतभेदों के कारण प्रणब मुखर्जी ने वित्तमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और साल 1986 में अपनी एक नई पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई. हालांकि 1989 में वीपी सिंह ने राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगाया. दूसरी तरफ प्रणब मुखर्जी भी अपनी नई पार्टी में कुछ खास नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी ने सुलह कर लिया. बाद में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का कांग्रेस पार्टी में विलय हो गया. 


शरद पवार


साल 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई थी. जिसमें शरद पवार कांग्रेस (यू) के सदस्य थे. साल 1978 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दोनों हिस्सों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. लेकिन जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई. कुछ महीनों के बाद ही शरद पवार ने कांग्रेस (यू) से नाता तोड़ते हुए जनता पार्टी में शामिल हो गए और उसके सहयोग से मुख्यमंत्री बने. हालांकि साल 1986 में शरद पवार दोबारा कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. साल 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का विरोध किया था. जिसके कारण तीनों को ही पार्टी से निकाल दिया गया. इसके बाद तीनों ने मिलकर 25 मई साल 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया. हालांकि इसके बाद लगातार 15 साल तक महाराष्ट्र में राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार रही. यह पार्टी आज भी महाराष्ट्र में सक्रिय है. 


ममता बनर्जी


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1976 में महिला कांग्रेस महासचिव के रूप में किया. साल 1984 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने माक्सवादी नेता सोमनाथ चटर्जी को हराते हुए सांसद बनी थीं. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में उन्हें युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया. साल 1989 में वह जादवपुर लोकसभा सीट से चुनाव हार गई. लेकिन साल 1991 में हुए आम चुनाव में वह कोलकाता दक्षिण सीट से जीत हासिल करते हुए दोबारा सांसद बनीं.




नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें मानव संसाधन मंत्री, युवा मामलों और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री बनीं. इसके अलावा उन्हें खेल मंत्री भी बनाया गया. लेकिन इसके दो साल बाद ममता बनर्जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद साल 1998 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई. यह पार्टी जल्द ही राज्य की मुख्य विपक्षी दल बन गई. साल 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने शानदार जीत हासिल करते हुए मुख्यमंत्री बनीं.


पिता के निधन के बाद जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस का छोड़ा साथ


साल 2009 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत के बाद उनके बेटे वाईएस जगमोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में सियासी खालीपन भरने की कोशिश की. साल 2009 में वह कडप्पा से सांसद बने. पिता के अचानक मौत के बाद जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस से अलग वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बनाई. साल 2019 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में जगनमोहन रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री बने.


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