प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। लॉकडाउन के मुश्किल वक्त में तमाम लोग अपने घर-परिवार से दूर दूसरी जगहों पर फंसे हुए हैं। अपनों की याद में तड़पने और जल्द से जल्द घर पहुंचने की बेताबी के बावजूद इनमे से ज़्यादातर लोगों को लॉकडाउन के ख़त्म होने का इंतज़ार है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर पहुंचने की चाहत में तरह -तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। इस लॉकडाउन में हज़ारों किलोमीटर का सफर पैदल या साइकिल से ही तय करने की खबरें खूब सामने आ रही हैं, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज के प्रेम मूर्ति पांडेय ने मुम्बई से अपने परिवार के बीच वापस आने के लिए जो हथकंडा अपनाया है, वह बेहद अनूठा और दिलचस्प तो है ही, लेकिन साथ ही शर्मनाक भी। मुम्बई एयरपोर्ट पर नौकरी करने वाले प्रेम पांडेय के कारनामे को सुनकर आपको हंसी भी आएगी और गुस्सा भी। हफ्ते भर के जतन के बाद वह परिवार के बीच पहुंच तो गए, लेकिन सरकारी अमले ने उन्हें वहां से हटाकर क्वारंटीन सेंटर भेज दिया है। इतना ही नहीं उन पर एफआईआर दर्ज होने का खतरा भी मंडरा रहा है।


दरअसल, संगम नगरी प्रयागराज के कोटवा मुबारकपुर इलाके के रहने वाले बावन साल के प्रेम मूर्ति पांडेय पिछले कई सालों से मुम्बई एयरपोर्ट पर ट्रॉलीमैन का काम करते हैं। प्रेम पांडेय का परिवार ज़्यादातर प्रयागराज में ही रहता है। परिवार में पत्नी- दो बेटी और एक बेटे के साथ ही बूढ़े मां- बाप भी हैं। प्रेम मुंबई के अंधेरी ईस्ट इलाके की आज़ाद नगर बस्ती की एक चाल में किराए पर रहते थे। देश में कोरोना की शुरुआत होने पर हवाई उड़ानें बंद हुईं तो तमाम दूसरे कर्मचारियों की तरह प्रेम पांडेय को भी छुट्टी मिल गई। वह प्रयागराज आने की तैयारी में थे, तभी ट्रेन और बस सेवाएं भी बंद हो गईं और पूरे देश में इक्कीस दिनों का लाकडाउन घोषित हो गया। पांडेय जी ने इक्कीस दिन तो जैसे -तैसे काट लिए, लेकिन पंद्रह अप्रैल से जब सेकेंड फेज़ का लॉकडाउन शुरू हुआ तो उनके सब्र का पैमाना छलक पड़ा। जनाब ने कई जतन भिड़ाए। ई-पास लेना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। खुद को बीमार बताकर एम्बुलेंस का सहारा लेने की कोशिश की, लेकिन वह तिकड़म भी काम नहीं आई। ज़रूरी सेवाओं से जुड़े वाहनों में पैसा देकर उसकी सवारी करनी चाही, लेकिन वहां भी तकदीर दगा दे गई। मुम्बई से बाहर निकलते ही पुलिस ने रोक लिया।



कोई रास्ता नहीं सूझा तो किसान बनने की ठान ली। दस हज़ार रूपये खर्च कर एक छोटी गाड़ी पर तेरह क्विंटल तरबूज़ खरीदा और उसे मंडी में बेचने के बहाने से प्रयागराज की राह पर निकल पड़े। उन्हें लगा कि छोटी गाड़ी और थोड़े से सामान के साथ किसान को जाने की छूट नहीं मिलेगी तो उन्होंने मुम्बई से आगे पीपलगांव मंडी में औने-पौने दाम पर ये तरबूज़ बेच दिए। प्रेम पांडेय किसी भी कीमत पर प्रयागराज छोड़ने की ज़िद ठान कर ही घर यानि अपनी चाल से निकले थे, इसलिए वह उसी मंडी के पास ही रुककर तरकीब लगाने लगे। वह रोज़ाना आठ किलोमीटर का सफर पैदल तय कर मंडी में पूरा दिन बिताते थे और दिमाग में खिचड़ी पकाते थे। चार दिन के होमवर्क के बाद आखिरकार उन्हें जो रास्ता सूझा, उसके ज़रिये वह प्रयागराज आने में कामयाब भी हो गए।


दरअसल पिंपल गांव सब्ज़ी मंडी में चार दिन बिताने के बाद प्रेम पांडेय को यह समझ आया कि अगर वह व्यापारी बनकर एक ट्रक सामान बुक करा लेंगे तो ट्रक के साथ उन्हें भी कहीं जाने की इजाज़त मिल जाएगी। ये फार्मूला समझ आने के बाद उन्होंने इसी मंडी से दो लाख बत्तीस हज़ार रूपये कीमत की एक ट्रक प्याज खरीदी। पचीस हज़ार पांच सौ बीस किलो प्याज प्रयागराज की मुंडेरा सब्जी मंडी तक पहुंचाने के लिए उन्होंने सतहत्तर हज़ार रूपये में एक ट्रक भाड़े पर लिया। प्रेम पांडेय के पास इतने पैसे नहीं थे तो अपनी बेटी से कुछ पैसे अपने एकाउंट में ट्रांसफर कराए। इसके बाद वह इक्कीस अप्रैल की रात को महाराष्ट्र से प्रयागराज के लिए रवाना हुए और तेईस अप्रैल की रात को यहां पहुंच गए।


प्रेम ने जो प्याज खरीदी थी, वह उन्हें नौ रूपये किलो मिली थी। रास्ते में इस शातिर दिमाग ने तिकड़म भिड़ाई कि ट्रक के भाड़े को लेकर उनकी प्याज करीब साढ़े बारह रूपये किलो पड़ेगी। अगर वह थोड़े बहुत कम पैसे में इसे प्रयागराज की मंडी में बेच देंगे तो उनका पैसा निकल आएगा और घर तो वह पहुंच ही आए हैं। लेकिन प्रयागराज के आढ़तियों ने या तो प्याज की कम कीमत लगाई या फिर उधार मांगते रहे। आधा ट्रक बेचने के बाद बाकी प्याज वह घर ले गए और इसे वहां स्टोर कर दिया। पास- पड़ोस के लोग जब एतराज और कानाफूसी करने लगे तो 25 अप्रैल को उन्होंने थाने में फोन कर खुद के मुम्बई से प्रयागराज आने की सूचना दी। पुलिस और मेडिकल टीम ने उनके घर पहुंचकर पूछताछ और शुरुआती मेडिकल जांच की। उनसे क्वारंटीन सेंटर चलने को कहा तो उन्होंने घर में ही क्वारंटीन रहने का भरोसा दिलाया। आज पुलिस को शिकायत मिली कि वह घर में क्वारंटीन रहने के बजाय बाहर टहल रहे हैं तो उन्हें शहर के एक गेस्ट हाउस में बनाए गए क्वारंटीन सेंटर में भेज दिया गया।


क्वारंटीन सेंटर भेजे जाने से पहले ABP गंगा चैनल से की गई ख़ास बातचीत में उन्होंने अपनी तिकड़मबाजी की पूरी कहानी बताई, लेकिन साथ ही खुद के फैसले को सही साबित करने की ज़िद पर अड़े रहे। उन्होंने तमाम दलीलें दीं और मुकदमा होने पर जज के सामने खुद बहस करने की चुनौती भी देते रहे। वो यह मानने को भी राज़ी नहीं थे कि उन्होंने अपने इस कदम से अपने परिवार वालों के लिए खतरा पैदा किया है। वह बस बूढ़े माता पिता की सेवा और लगभग बालिग़ हो चुके बच्चों की देखभाल करने की बहानेबाजी करते रहे।


रविवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम जब पुलिस के साथ प्रेम पांडेय को क्वारंटीन सेंटर पहुंचाने के लिए उनके घर पहुंची तो वहां उनके परिवार ने थोड़ा विरोध और हंगामा किया। यहां सहयोग के बजाय उलटे सवाल किये। प्रेम पांडेय की तरह ही उनका परिवार भी बेतुकी दलीलें देता रहा। मजबूरियां गिनाता रहा और यह साबित करने की कोशिश करता रहा कि प्रेम पांडेय ने जो कुछ भी किया, वह सही किया।


प्रेम पांडेय ने घर पहुंचने के लिए हफ्ते भर तक जो जतन किये, उसमें वह कामयाब भी हुए। उन्होंने जो हथकंडा अपनाया वह अनूठा -रोचक और दिलचस्प रहा। तरबूज़ और प्याज पर तीन लाख रूपये खर्च कर उन्होंने परिवार वालों से मुलाकात भी कर ली। उनकी तिकड़मबाजी और चालबाजी के किस्से सुनकर लोग चटखारे ले रहे हैं, उस पर बहस कर रहे हैं और सिस्टम की खामियों का मज़ाक उड़ा रहे हैं। बेशक प्रेम पांडेय जैसे आर्थिक रूप से मजबूत लोग तीन लाख रूपये के तरबूज़ और प्याज खरीदकर व्यापारी बनने का तमगा तो ले सकते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि लॉकडाउन के इस मुश्किल वक्त में क्या ये गैरज़रूरी कदम कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ छिड़ी जंग में देश की जगहंसाई कराने और महामारी को बढ़ावा देने वाला नहीं है ?. क्या ऐसे लोगों को सिर्फ क्वारंटीन सेंटर भेज देने भर से काम ख़त्म हो जाएगा या ऐसे तफ़रीहबाजों को जेल भेजा जाना भी ज़रूरी है। सरकारी अमला अब यह मंथन कर रहा है कि उनके खिलाफ किस तरह से कार्रवाई हो सकती है ?.